लालच बुरी बला
लालच बुरी बला
बहुत समय पहले की बात है कि एक गाँव का एक व्यक्ति आर्मी में किसी पद पर कार्यरत था। उन्होंने अपनी नौकरी के कार्यकाल को पूर्ण करते हुए अपने पद से मुक्त हो गए अर्थात सेवानिवृत्त हो गए। अब उन्होंने अपने कार्यस्थल को छोड़कर अपने गाँव (घर) की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में यह सोचते रहे कि अब समय को कैसे व्यतीत किया जाएगा ?
खेती-किसानी या अन्य कोई व्यवसाय कर लिया जाएगा जिससे कि समय आसानी से व्यतीत होने लगेगा अर्थात इसी विषय पर मंथन करते हुए आखिर अपने गाँव की ओर आ पहुँचे जहाँ रास्ते में एक नदी पड़ती थी जिसे पार करते हुए गाँव में पहुँचना होता है तो जैसे ही नदी पार किए तो एक साधु से मुलाकात हुई तो बातचीत के दौरान अपनी दास्ताँ बताने लगे तो उस साधु ने कहा कि नौकरी वाले तो हो ही और व्यवसाय करके भी पैसा कमाना है तो हम आपको ऐसा उपाय बताते हैं जिससे शोहरत भी मिल जाएगी तब फौजी ने कहा कि हाँ बताइए।
इस प्रकार साधु ने एक पत्थर दिया और कहा कि जिसको दिखाई न दे रहा हो उसके आँख में इस पत्थर को रगड़ अर्थात स्पर्श करने से उसको दिखाई देने लगेगा परंतु यह तब तक काम करेगा जब तक यह सेवा निःशुल्क देते रहेंगे फौजी ने सोचा कि यह तो बेहतर है और उन्हें काफी उत्सुकता हुई सच जानने कि इसी उत्सुकता के दौरान उन्हें एक गाय नजर आई उस पर वैसा ही किया जैसा साधु ने बताया था और उस गाय की आँख में रोशनी आ गयी।
इस प्रकार घर जाते ही उनके गांव में जितने भी इस समस्या से पीड़ित थे उनको सही करने जाने लगे जबकि उनकी माँ बोलीं कि पहले खाना तो खा लो लेकिन नहीं ख़ैर इस प्रकार गाँव में ख़बर फ़ैल गई कि फलां फौजी आँख सही करने की विद्या जानते हैं तो काफी भीड़ आने लगी तब सोचा कि ऐसे तो मैं अपने व्यवसाय की ओर ध्यान नहीं दे पाउंगा इसलिए उन्होंने सप्ताह में दो दिन देखने लगे बाकी दिन व्यवसाय इत्यादि।
कुछ लोग उनके पास आए और बोले की सुनो जब आप अपने दो दिन इसमें बर्बाद करते हो तो क्यों न तुम इससे भी कमाओ क्योंकि आपके इस कार्य से लोग लाभवन्तित भी हो रहे हैं इस प्रकार फौजी के दिमाग में ये बात बैठ गई और उन्होंने कुछ शुल्क लेना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप वो पत्थर भी काम न करने लगा और शोहरत (पहचान) भी धूमिल होती गई।
