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Abdul Rahman Bandvi

Others

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Abdul Rahman Bandvi

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घर-घर की कहानी (सामाजिक बुराई)

घर-घर की कहानी (सामाजिक बुराई)

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आप सभी ने सुना है कि छोटा परिवार एक सुखी परिवार कहलाता है लेकिन आइए देखते हैं ऐसे ही एक परिवार की कहानी जिसमें अक्सर ऐसा हर परिवार में होता है:-


एक गाँव में निर्धन परिवार निवास करता था जिनका परिवार छोटा था जिसमें रमेश,माता-पिता व एक बहन थी जिसमें कमाने वाला एक ही व्यक्ति जिसका नाम रमेश (काल्पनिक नाम) था लेकिन जीवन यापन करने हेतु रोजमर्रा के काम करता जिससे परिवार चलता रहे इस प्रकार गाँव में काफी वक़्त गुज़ारा फिर उसके माता-पिता ने उसका ब्याह अंजु (काल्पनिक) नामक लड़की से करा दिया इस प्रकार घर का भार बढ़ता जा रहा था।

अब उसके सामने दो समस्याए कि वो घर का इकलौता यदि घर छोड़ कर कहीं बाहर कमाने जाता है तो घर में कोई नहीं और यदि सभी को लेकर बाहर जाता है तो खर्च बढ़ेगा फिलहाल शुरुआती दौर में वो कमाने के लिए शहर में अकेला चला गया ये सोच कर कि चलो बूढ़े माता-पिता की देखभाल लिए मेरी बहन व पत्नी अंजू तो है। शहर में पहुँचते ही उसको रोजगार की तलाश करने में काफी समय व्यतीत हो गया फिर काफी समय बाद उसे एक कंपनी में सुरक्षा गार्ड के रूप में 8000 रुपये प्रतिमाह वेतन के रूप नियुक्ति हो गई इस प्रकार घर में खुशहाली छा गई ।

इधर भी उसकी पत्नी का काफी समय इस परिवार के साथ व्यतीत होता गया लेकिन जैसा कि अक्सर प्रचलित है कि नंद-भाभी व सास-ससुर में ज्यादा मेलजोल नहीं रहता ठीक ऐसा ही यहाँ भी हो रहा था जिससे रमेश के माता-पिता भी दुःखी रहते खास तौर पर बेटी को लेकर और वो सोचते कि यदि रमेश को बताते हैं तो बहु कहेगी कि शिकायत कर रहे हैं आखिर ये बात उन्हें बतानी ही पड़ी तो रमेश ने समझया कि छोटा सा परिवार है उसमें भी तुम मिलजुल कर नहीं रह सकती हो जबकि मालूम है कि कुछ दिन में बहन की शादी हो जाएगी फिर वो अपने घर की और तुम अपने घर की तब आख़िर क्यूँ ऐसा व्यवहार करती हो मेरी बहन तुम्हारी बहन जैसी और सास-ससुर को अपने माता-पिता के जैसे मानो लेकिन उसकी पत्नी कहती कि नंद कभी बहन नहीं व सास-ससुर कभी माता पिता नहीं बन सकते। आखिर अंजु को जैसा मन करे वैसा ही करती(करना भी चाहिए लेकिन कुछ बातों को ध्यान में रखते हुए) कि नंद से बात-बात पर चिड़चिड़ाना व सास-ससुर को समय पर भोजन इत्यादि का ध्यान न देना और आखिर इस बुढ़ापे में उनको क्या चाहिए सिर्फ सम्मान,देखभाल व समय पर भोजन जो इनको इतना भी नहीं मिल पाता था यहाँ तक कि उचित तरीके से बातचीत करना भी उचित न समझती जबकि उन्हीं के सामने अन्य व्यक्तियों व मायके के लोगों से बेहतरीन तरीके से बातचीत एवं उनका हर प्रकार का ख़्याल रखती नजर आती परन्तु अक्सर सास-ससुर को नज़र अंदाज़ करना बस इनको यही बात लग जाती जिसमें से सास को तो तनिक बराबर भी तवज्जो न देती इसीलिए सास अंदर ही अंदर घुटती रहती लेकिन मुँह से कुछ न कह सकती ऐसा इसलिए कि यदि वो रमेश से शिकायत करती है तो घर में झगड़ा ही बढ़ेगा और रमेश ने कई बार पत्नी को भाँपा तो इसकी शिकायत अपने साले से की लेकिन साले ने अपने बहन का ही पक्ष लेते हुए कहा कि मैं कुछ नहीं समझा सकता जबकि पत्नी को अपनी भाभी से अपने माता-पिता, भाई-बहन इत्यादि को सम्मान व हर चीज़ समय से मिलने की उम्मीद करती लेकिन ख़ुद पर एक भी बात अमल में न लाती। ख़ैर ख़ासतौर पर स्त्रियों में ज्यादा तू-तू,मैं-मैं हो जाती क्योंकि पुरुष तो बाहर कमाने या अन्य कामों में बाहर ही होता परन्तु स्त्रियाँ अंदर रहती इसलिए आपस में मतभेद जन्म लेता रहता व छोटी-छोटी बातों को नज़र अंदाज़ न करते हुए उस पर ज्यादा ध्यान देना...

ख़ैर कई साल बाद रमेश को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तब फिर घर में खुशहाली छाई क्योंकि वो छोटा बच्चा किसी का पुत्र, किसी का भतीजा तो किसी का पोता जो था। रमेश को ख़बर दी गई घर आया और जो कुछ धन इकठ्ठा किया तो माता-पिता से सलाह ली कि अब बहन के लिए रिश्ता ढूँढ लेते हैं लेकिन बीवी तो अपनी ही लगाए कि देखो अब बच्चा हो गया है इसलिए नंद का जल्दी ब्याह कर हम शहर चलते हैं और माता-पिता अपना गाँव में रहें या जहाँ जाना हो जाए। रमेश ने अपनी बहन का ब्याह रचा दिया और अब फिर अपनी पत्नी को समझाया कि सुनो चुपचाप यहीं ठहरो और माता-पिता का ख़्याल रखो अब तो बहन भी अपने घर की हो गई इसलिए बच्चे के साथ-साथ मेरे माता-पिता का भी ख़्याल रखो फिर जब अच्छे से कमाने लगे तो हम सभी शहर की चलेंगें लेकिन वो नहीं मानी और साथ जाने की जिद ठानी और बोली कि यदि साथ नहीं ले जाना तो मुझे मायके छोड़ कर आओ।

फिलहाल ये कहावत बेकार हो गई कि छोटा परिवार - सुखी परिवार। यदि मानसिक सुकून न हो तो छोटा परिवार भी बेकार होता नजर आता है। इसी क्रम में वो रमेश सपरिवार शहर की ओर चल पड़ा अब शहर में सभी का रहना अर्थात गाँव के हिसाब से खर्च का ज्यादा बढ़ जाना। अब बच्चे का स्कूल जाना शुरू हो गया तो बच्चे की फीस, कमरे का किराया व अन्य ख़र्चे इत्यादि तो वही कहावत हो गयी कि "आमदनी अठन्नी, ख़र्च रुपैया"। गाँव से शहर तो आ गए परंतु व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया इसलिए रोज-रोज की कलह को देखते हुए रमेश के पिता ने कहा कि बेटा हमें गाँव छोड़ आओ हम गाँव मे अकेले रह लेंगें............।


संदेश:-

1. यदि प्रत्येक बहु पति के घर वालों को अपने ही घर वालों जैसा मानने लगे व पति के घर वाले भी दूसरे घर से आई लड़की को अपनी ही लड़की मानने लगे तो शायद समाज में काफी सुधार हो सकता है। (भेदभाव का कारण है-सोच)



2. शत प्रतिशत कोई भी सही नहीं होता(भले ही 1% कमी हो) कुछ कमियाँ हममें होती हैं तो कुछ अगले में भी व कुछ खूबियाँ आपमें होती हैं तो कुछ खूबियाँ हममें भी इसलिए आपसी समांजस्य बनाकर रहना चाहिए।



3. छोटा(गरीब) परिवार हो या बड़ा(अमीर) परिवार इन दोनों स्थितियों में मानसिक सुकून का होना जरूरी है।


 



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