ओम् शांति ओम्

ओम् शांति ओम्

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बहुत दिनों बाद दो दोस्त मिले...दोनों के बीच अभिवादन हुआ, जैसा कि दस्तूर है...एक-दूसरे से उनका हालचाल पूछा। एक दोस्त बहुत क्लांत दिख रहा था तो पहले वाले ने पूछ ही लिया ... क्या हुआ है...

बड़ा हलकान दिख रहा है ? कोई परेशानी है तो बोल, हो सकता है कि मैं तेरी कुछ मदद कर पाऊँ....अगर बताना चाहता है तो...

पहले दोस्त ने कहा कि यार तू मदन को जानता है न ?

वही न, जो एक दिन बहुत बुरी हालत में तेरे घर में शरण लिया था...

हाँ, यार वही...शरण दिया...मदद किया...रोजी-रोटी का इंतजाम किया....बहुत दिनों तक संकोचवश कहा नहीं

कि अब तो सक्षम हो, अपने रहने का इंतजाम कर लो...

और जानते हो कि जब कहा तो उसने मुझे ही धमकी दे दी है कि मैं यह घर नहीं छोडूंगा, बहुत दिनों से रह रहा हूँ, अब यह मेरा घर है, तू होता कौन हूँ कि मुझे यहाँ से निकाले। जो करते बनता है....वह कर लो, ?

बहुत परेशान हूँ ...वह अब मुझे और मेरे बच्चों को राह चलते मार-पीट भी देता है। कुछ कहें तो मानवाधिकार वाले आ जाते हैं कि वह उसका अधिकार है। हकदार मैं पर वह उनके तरफ, मेरे मानवाधिकार तो है ही नहीं.....

तो क्या हुआ....तेरे पास तो एक और मकान है ही...दे ,दे उन्हें यह घर....शाँति तो रहेगी।

गजब बात करता है तू....शाँति के लिए अपना घर सौंप दूँ उन्हें, कल वह मेरा दूसरा घर भी आंखें दिखाकर लेना चाहे तो वह भी उन्हें सौंप दूँ तो कहाँ जाएँगे मेरे बाल-बच्चे...??

तो क्या करेगा...?

अरे ! तुझसे पूछ तो रहा हूँ कि मैं क्या करूँ ....?

पूछने वाले कभी कुछ नहीं करते, करने वाले कभी पूछते नहीं, आज यह घर दे, कल दूसरा घर दे दे....फिर हिमालय की राह पकड़..वहाँ भी वह आ धमके तो समंदर में छलाँग लगा दे.... मछलियाँ तुझे खा लेंगी,

वह उन मछलियों को खा लेगा....तेरा किस्सा खत्म फिर...तो ओम् शांति ओम्.....


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