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Vijaykant Verma

Abstract

4.0  

Vijaykant Verma

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न्याय या अन्याय

न्याय या अन्याय

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एक ढाई साल की मासूम बच्ची को तड़पा तड़पा कर मार डाला दरिंदों ने..! चारों आरोपित गिरफ्तार हैं..! पक्का सबूत है, की इन्हीं चारों का हाथ है मासूम बच्ची को मारने में..! अगर सरकार चाहे, तो सिर्फ दो दिन के अंदर ही सारे सबूत को अदालत में पेश कर एक सप्ताह के भीतर ही इन्हें मौत की सज़ा दे सकती है..! और अगर उन्हें एक हफ्ते में ही फांसी दे दी जाये, तो भविष्य में इतना आसान नहीं होगा किसी दरिन्दे का किसी अन्य मासूम के साथ रेप करने का, या उसकी हत्या करने का..!

पर इतने सारे सबूत होने के बावजूद कोर्ट कचहरी, वकील, दरखास्त, प्रत्यक्ष गवाह, आरोपी की शिनाख्त, दसियों तरह की जांचें, पोस्ट मार्टम रिपोर्ट, डॉक्टर की गवाही, पुलिस की गवाही और भी न जाने कितने नाटक होंगे इन हत्यारों को सज़ा सुनाने से पहले..!

और फिर भी शायद ये फांसी से बच जाएं, और शायद इनमें से कुछ बाइज़्ज़त बरी भी हो जाएं, इस आधार पर, की कोई प्रत्यक्ष गवाह ऐसा नहीं मिला, जिसने वारदात को अपनी आंखों से देखा हो..!

और इस तमाशे का कारण होगा न्याय में देरी का होना, क्योंकि इस लंबी अवधि के दौरान बहुत से गवाहों को खरीद लिया जाएगा, बहुत से गवाहों को डरा दिया जाएगा और बहुत से गवाह कोर्ट कचहरी के चक्कर से परेशान होकर खुद ही अपनी बात से मुकर जायेंगे।

अज़ब है इस देश का न्याय, जहां हत्यारों को दस मिनट नहीं लगता किसी मासूम की जान लेने में, जबकि कानून को दसियों साल लग जाता हैं उन्हें सजा देने में..!



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