Mukta Sahay

Horror Fantasy Thriller

4.6  

Mukta Sahay

Horror Fantasy Thriller

नया घर और......(भाग-10)

नया घर और......(भाग-10)

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हवा के भँवर की तेज़ी और रौद्रता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता था कि जिन गमलों को रजनी ने आसपास सजाए थे वे सभी गुरुजी के चारों तरफ़ घूम रहे थे। शायद उन गमलों से ही गुरुजी को वह शक्ति आहत करना चाहती थी। अब गुरू जी के कपड़े भी फटने लगे थे लेकिन वह मज़बूती से वहाँ खड़े थे और झूले की तरफ़ देख लगातार कुछ बुदबुदाए जा रहे थे। अब तो गुरुजी की शरीर पर खरोंचे और चोटें भी आने लगी थी किंतु गुरुजी अपनी जगह से टस से मस नही हुए और ना ही उनकी पलकें झुकीं। गुरुजी की आँखें लाल हुई जा रही थी और चेहरा तमतमाया जा रहा था। तभी अचानक सब कुछ शांत हो गया और पीछे छोड़ गया टूटे-फूटे अवशेष।

इतना सब हो जाने के बाद भी गुरुजी उसी शांत भाव से घर के अंदर आने लगे। रजनी-रमेश की तो साँसे अब भी गले में अटकी पड़ी थी। वे कुछ भी बोल ही नही पा रहे थे। गुरुजी ने कहा मुझे अंधेरा होने से पहले इस घर के हर कोने को ध्यान से देखना है। गुरुजी बैठक से बढ़ कर रसोई घर में गए। एक तरफ़ के किचन के प्लेटफ़ॉर्म को देख कर पूछे ये यहाँ ऐसा क्यों है, बिलकुल सपाट कोई दरवाज़ा या रैक नही है। इस पर रजनी ने बताया यहाँ पर एक पुराना कोयले से जलने वाला चूल्हा था, ऊपर चिमनी थी और नीचे राख निकलने के लिए एक गुफा सा था जो घर के बाहर, पीछे के बगीचे में निकलता था। अब तो इस तरह के चूल्हे का प्रयोग कोई नही करता है इसलिए मैंने इसे बंद करवा दिया और चिमनी तुड़वा दी। गुरुजी ने पूछा और वह राख वाली गुफा का क्या किया। रजनी ने कहा बहुत ही गहरा था तो अंदर और बाहर दोनो तरफ़ से सुंदर पत्थर लगवा कर बाद करव दिया। जल्दी से खुलवाओ इसे मैं देखना चाहता हूँ । रमेश बाहर से एक हँठौड़ा उठा लाया और उस जगह को तोड़ने लगा। जैसे ही जोड़ें कमजोर हुई गुरुजी नीचे जक कर वहाँ लगे पत्थर और बाक़ी की चीज़ें हटाने लगे। अब रजनी-रमेश भी गुरुजी के साथ मलबा हटाने में जुट गए। थोड़ी ही देर में वह राख वाला गुफा दिखने लगा। सभी मिल कर उसमें जमे वर्षों की गंदगी को हटाने लगे। थोडा गहरा जाते ही कुछ टूटी चूड़ियाँ निकलने लगी अब तीनों के हाथ और भी तेज़ी से चलने लगे। थोडा और नीचे बढ़ने पर वह गुड़िया मिली जिसे रजनी ने सपने में देखा था। देखते ही रजनी कहने लगी यह तो वही गुड़िया है जिसे मैंने सपने में देखा था और जो यहाँ कमरे में आ गई थी।

गुरुजी ने आगे और खोदने को कहा और स्वयं उठ कर रसोईघर के दूसरे कोने के देखने लगे तभी टूटी चूड़ी का टुकड़ा जो मलबे में निकला था बहुत तीव्रता से गुरुजी के कान के पीछे लगता है। इस बार भी गुरुजी झटके से हाल गए तो चोट ज़्यादा नहाई आई बस हल्का खरोंच सा आया। गुरुजी ने झुक कर उस गुड़िया को कस कर अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया और रजनी और रमेश से कहा अब तुम दोनो मिल कर जड़ी से जड़ी इस जगह को साफ़ करो और कमरे से बाहर चले जाओ। मुझे कुछ उपाय करने है और उस शक्ति से संवाद करना है। कुछ भी हो जाए, कैसी भी शोर सुनाई दे रसोईघर में नही आना, अपने कमरे से बाहर नही आना।

दोनो ने जगह को साफ़ किया और अपने कमरे में चले गए। गुरुजी उस साफ़ किए हुए जगह पर आसन लगा कर बैठ गए और वह गुड़िया अभी भी उन्होंने मुट्ठी में ही जकड़ रखा था। मंत्र उच्चारण की हल्की आवाज़ रजनी-रमेश को सुनाई दे रही थी। थोड़ी देर बाद अजीब सी आवाज़ें आने लगीं। गुरुजी ने पूछा रजनी से क्या चाहती हो तुम फिर पल भर का सन्नाटा, फिर आवाज़ आई बताओ नही तो यह गुड़िया नष्ट कर दूँगा। अब जो अजीब से आवाज़ आई उसमें दर्द का अहसास था बस हुंकार ही समझ आ रहा था बाक़ी तो बस गरगराहट ही लग रहा था रजनी -रमेश को। गरगराहट, हुंकार, दर्द की आवाज़ लम्बे समय थक आती रही इस बीच फिर गुरुजी की आवाज़ आई ठीक है सब सही हो जाएगा लेकिन तुम्हें किसी को नुक़सान नही पहुँचाना होगा और तुम इसके बाद निष्काम हो जाओगी। अभी जाओ झूले पर, गुड़िया मेरे साथ सुरक्षित रहेगी। यह तो तुम्हारी बेटी रजनी की गुड़िया हैं ना तो मैं इसे इस रजनी को खेलने के लिए देता हूँ तुम्हें अच्छा लगेगा। अब हर तरफ़ शांति थी। गुरुजी रसोईघर से बाहर आए। रजनी को गुड़िया दी कहा इसके साथ खेलो वैसे जैसे इस घर की पूरानी मालकिन की बेटी रजनी खेलती थी। रजनी थोड़े आश्चर्य और थोड़े डर से गुरुजी को देखती है। गुरुजी कहते हैं भरोसा है ना मुझ पर तो इस गुड़िया से खेलो, इसे साफ़ करो, कपड़े बदलो, खाना खिलाओ और ऐसा क़्यों करो यह भी मैं बताता हूँ। रजनी गुरुजी की बात मान कर अपने दुपट्टे से गुड़िया को साफ़ करने लगी। गुरुजी ने कहा दरसल यह कोई बुरी शक्ति नही बल्कि एक अतृप्त माँ की आत्मा है जो रजनी को उसके नाम की वजह से अपनी बेटी जैसा समझने लगी। वह इसके साथ रखना चाहती है। गुरुजी ने आगे कहा अभी कुछ कार्य और भी पूर्ण करने है बाक़ी की बात उसे पूर्ण करके बताता हूँ। रजनी को गुड़िया से खेलता छोड़ गुरुजी फिर से रसोईघर में गए और साथ में रमेश को भी ले गए।जब रजनी गुड़िया साफ़ कर रही थी तब उसने बाहर झूले पर देखा तो झूला उसे आराम से झूलता हुआ दिखा जैसे कोई उसपर बैठा हो। क्रमशः


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