Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

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Dr Jogender Singh(jogi)

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नशे के रंग

नशे के रंग

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हार की गारंटी होने के बाद भी मैं कोशिश करता रहता हूँ । धो / पोंछ कर उन निशानों को मिटाने की जो गहरे घाव बन गये है । जो भेदते शूल से हृदय को हर पल । एक दिखावे का स्वस्थ आदमी , पीड़ा से टीसता आदमी ।शुष्क आँखों से रोता आदमी ।अभिनय का सर्वोत्तम रूप ।कैसे सम्भव हो पाता है , बिना दर्द के आंसू निकाल लेना ।दर्द का भी मज़ाक़ उड़ाता आदमी , दर्द को व्यापार बना दिया । 

फिर इंसान को उसकी औक़ात बताने , प्रकृति और ईश्वर को कुछ करना पड़ता है ।जैसे कोरोना , बाड़ , भूकम्प ,तूफ़ान आदि ।

उस संकट की घड़ी में भी संग्रह करने की वृति को पोषते सफल इंसान , सम्मान पाते , उदाहरण बनते दूसरों के लिये । दर्द से तड़पते किसी को जैसे नशे का इंजेक्शन दे दिया गया हो । नशे के अधीन हो, दर्द भूल कर दौड़ने लगता । तालियाँ बजती पर जीत किसकी है ? दर्द की , नशे की , या। नशे का कारोबार करने वालों की । कुछ नहीं पता , वो भागता है सरपट , तालियों की आवाज़ के सहारे , अपनों को साथ लिये ,साथ छोड़ देने के लिये ।

अपनी पीठ को ख़ुद ही थपथपाना इस काल की सबसे बड़ी उपलब्धि है , पर कैसे ? सम्भव हुआ अपनी पीठ को थपथपाना ? चतुर इंसान ने हाथों को छोड़ , जीभ पर पूरा ध्यान लगाया, जीभ को इतनी बड़ी और अपनी तारीफ़ में माहिर कर लिया कि बिना किसी परेशानी के अपनी पीठ थपथपाई जा सके ।

मार्च में डरा हुआ इंसान प्राणों की रक्षा के लिये बिल में जा छुपा , सब मिट्टी होता नज़र आ रहा था , बेमानी लग रही थी , बड़ी कारें , बड़े घर , ढेरों रुपये । फिर उसी दौड़ में शामिल , वही होड़ बेकार चीजों को इकट्ठी करने की।समझदारी की उम्र छोटी होती है क्या ? इतनी छोटी , तीन चार महीनों में ख़त्म ।भिन्न भिन्न नशों के सहारे नशेड़ियों सा जीवन जी रहें है सभी । पद , पैसे , संपति , सुन्दर पत्नी , काबिल बेटा , मोटा बैंक बैलेन्स , कई ऐकड़ ज़मीन , महँगी गाड़ियाँ , सोना जवाहरात , तंदरुस्त बदन और जाने कौन / कौन से नशे पाले हुआ है इंसान । फिर यही नशा सिर चड़ जाता , दूसरे को छोटा दिखाने की कोशिश ।उखड़ती साँसे वापिस जब नहीं आयेंगी ( वेंटिलेटर से भी नहीं ) तब शायद याद आये , उस भूखे की जिसे मैं खाना खिला सकता था , बहुत आराम से , या उस मरते इंसान की जिसे अगर वक़्त पर अस्पताल पंहुचा दिया होता , तो शायद वो ज़िंदा बच गया होता (परन्तु जान से ज़्यादा क़ीमती अपनी गाड़ी लगी थी शायद ) । 

इन भिन्न भिन्न प्रकार के नशों के अधीन होता इंसान , इंसान होना भूल गया है । उसकी अपनी ज़रूरतें रोज़ बड़ जाती है , पड़ोसियों को देख कर । नशे में धुत्त यही इंसान एक शानदार उपदेशक बन जाता है , दूसरे को ज़ोरदार भाषण देता है । कोई भी दूसरे की नहीं सुनता । सभी बोलना चाहते हैं । 

कोशल सच को छुपाने का आप को कामयाब बनाता है , सच बोलना गुनाह की श्रेणी में आता है । मूरख है , सच बोलता रहता है ।नशेबाजों के इसी हुड़दंग में हर एक आदमी अपनी कामयाबी की बीन बजा रहा है । चुपचाप देखता कोई कोरोना , कोई तूफ़ान , बाड़ , भूकम्प , बीमारियाँ आदि मुस्कुरा रहीं है , मानो बोल रहें हो " एक दिन तुम सब का नशा उतार देंगे " । जागने के समय , और भी गहरे सोते तथाकथित इंसान ।



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