निशि डाक -11
निशि डाक -11
दो दिन बाद ( अमावस की रात)
रात के ठीक बारह बजे निशीथ के दरवाज़े पर दस्तक हुई।वह निष्ठा ही थी। इधर निशीथ भी नहा धोकर, नई धोती- कुर्ता पहनकर पहले से ही तैयार बैठा था! निष्ठा के आते ही दोनों उस अरण्य की दिशा में चल पड़े।
वह जंगल निशीथ के घर से कोई दस मील की दूरी पर स्थित था। निशीथ चलते चलते काफी थक गया था। वह और आगे बढ़ने में असमर्थ था। घर से खाना खाकर चला था। अतः वहीं सड़क किनारे एक पत्थर पर बैठ गया!यह देखकर निष्ठा ने उसे अपने कंधे पर चढ़ा लिया और फिर थोड़ी दूर तक वह निशीथ को लिए हवा में उड़ती हुई चली!चारों ओर घुप्प अंधेरा था। एक तो अमावस की काली रात थी ऊपर से प्रेतिनी भी साथ थी!! मारे भय के निशीथ के कंठतालु तक सूखने लगा था। वह सोचने लगा कि कहीं इस प्रेतिनी ने उसे जंगल में मारकर खा लिया, जैसा कि उसने दूसरे लड़कों के साथ किया था, तो किसी को कुछ पता न चल पाएगा! उसकी लाश भी नहीं मिलेगी, शायद!!
इस समय निशीथ को अपनी विधवा माँ का चेहरा याद हो आया! माँ शुरु से ही नहीं चाहती थी कि निशीथ घर से इतनी दूर यहाँ कलकत्ता पढ़ने के लिए आए! कितनी मन्नतों के बाद जाकर माँ राज़ी हुई थी और उसे कलकत्ता भेजने को तैयार हुई थी।माँ तो इतनी नाराज़ थी उससे कि आने से पहले उन्होंने दो दिनों तक निशीथ से बिलकुल बात भी न किया था!!कितनी सही थी माँ,,, शायद उनका मातृहृदय सारी मुसीबतों का पता पहले से ही पा जाता होगा!
अपने उद्गत अश्रुदलों को निशीथ हथेली के पीछे वाले हिस्से से जल्द ही पोछ डालता है! कहीं निष्ठा उसे रोते हुए न देख ले!इसके बाद निशीथ ने अपना दिल मजबूत किया। अपने आप को यह कह कर समझाया कि अब ओखल में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना! अब जो होगा,,, देखी जाएगी!
जब मनुष्य के आगे सारे रस्ते बंद हो जाते हैं तो वह खुद को ईश्वर के पैरों में सौंप देता है। निशीथ का भी इस समय वही हाल था!
उसने अपनी आँखें मूँद कर के इष्ट देव को स्मरण किया और मन ही मन में बोला--
" हे पालनहारे!!अब यह जान तुम्हारे हवाले!"
इतना कहना था कि निशीथ ने महसूस किया कि जैसे उसके पैर अब जमीन पर उतर आए हैं!
" लो, निशीथ पहुँच गए, हम तो!"
" कहाँ है वह पेड़? मुझे तो यहाँ कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, निष्ठा!"
" निशीथ, मैं और आगे नहीं जा पाऊँगी। उस पेड़ के गंध से मुझे मितली आने लगती है!
तुम्हें रास्ता बताती हूँ, तुम अकेले चले जाओ!"
" पर निष्ठा, मुझे तो अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है!! आगे कैसे बढ़ पाऊँगा?"
"धीरे- धीरे तुम्हारी आँखें इस अंधेरे को सह लेगी, निशीथ,,,और तब तुम सब कुछ दिखाई देने लगेगा!
सुनो, तुम्हें पहले ईषाण कोण में चार कोस तक जाना है, फिर वहाँ से जब बायें मुड़ोगे तो शाल के पेड़ों से घिरा हुआ एक जंगल तुम्हें नज़र आएगा।
उसी जंगल के बीचोंबीच एक ऊँचा त्रिकोण आकार का टिला है। उस टिले के ऊपर एक काँटेदार झाड़ी है। उसी झाड़ी के बगल में यह वाला पेड़ है। इसके पत्ते छोटे मगर चौकोर आकार के हैं! सुगंध से तुम उसे आसानी से पहचान लोगे।
उसका गंध कुछ- कुछ चंदन जैसा होता है। उस पेड़ के ढेर सारे पत्ते तुम पहले तोड़ लेना और फिर पेड़ के तने को पत्थर से रगड़ - रगड़ कर थोड़ी सी उसकी खाल भी निकाल लेना।
ये दोनों ही चीज़ जब धूप में सूखाकर अपने शरीर में धारण करोगे तो वह प्रेतिनी तुम्हें कभी छू भी न पाएगी!"
निशीथ ने सारी बातें ध्यान से मन में नोट कर ली। फिर निष्ठा के बताए हुए रास्ते पर जाकर वह उस पेड़ के पत्ते और उसका बल्कल तोड़ लाया।
परंतु वापस आने पर निष्ठा उसे कहीं पर नहीं दिखी। वह घबराकर चारों ओर देखने लगा--! सोचने लगा,
"अब घर कैसे जाऊँगा?"
फिर उसने जोर जोर से निष्ठा को पुकारनी शुरु कर दी--
" निष्ठा, निष्ठा!"
इतने ज़ोर से उसने पुकारी थी कि उस बीहड़ जंगल में उसे अपनी आवाज़ की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ने लगी! सुनकर निशीथ सिहर उठा था! उसके सारे रोंगटे खड़े हो गए थे!इतना डरा देने वाला माहौल था! तभी दूर से एक क्षीण सी आवाज़ आई--
" मैं यहाँ पर हूँ निशीथ। " आवाज़ की दिशा में देखने पर एक पेड़ की ऊँची टहनी पर उसे निष्ठा दिखाई दी!!!
" अरे, वहाँ क्या कर रही हो? नीचे तो आओ। ज़रा देख कर तो बताओ कि सही चीज़ लाया हूँ अथवा नहीं?"
" हाँ सही ही है, मैं गंध से ही पहचान पा रही हूँ। तभी तो तुम्हारे पास नहीं आ पा रही हूँ!"
" ओह!" निशीथ दुःखी स्वर में बोला!
इसके पश्चात् निष्ठा उड़ कर आगे- आगे पथ दिखाती हुई चली!! और उसके पीछे- पीछे बुटी हाथ में थामे हाँफता हुआ निशीथ घर की ओर चला।
दस मील की दूरी इसी तरह निशीथ ने तय की। आते समय वह उड़कर आया था, अभी चलते- चलते उसके पैरों में छाले पड़ गए थे! मगर, दूसरा उपाय भी कुछ न था, उसके पास!
घर के नज़दीक पहुँचकर निशीथ के कदमों ने जवाब दे दिया! वह पार्क की बेंच पर बैठ गया। आगे एक भी और कदम उठा पाना उसके लिए संभव न था!
निष्ठा यहाँ तक निशीथ को सही सलामत पहुँचाकर , उसका माथा चूमकर लौट गई थी।जाने से पहले उसने कल फिर आने का वादा वह कर के गई थी!
****** अगले भाग में समाप्त****

