निर्मला
निर्मला
हां, ना कि इस कशमकश में आखिर निर्मला का विवाह निश्चित हो गया। निर्मला तीन भाइयों की इकलौती बहन थी और माता पिता की आंख का तारा। निर्मला का स्वभाव भी अपने नाम के स्वरूप ही शांत और निर्मल था। किसी से उलझना या लड़ाई झगड़ा उससे कोसों दूर था। विवाह निश्चित समय पर बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। दहेज के नाम पर हर वह चीज में भेजी गई जो रोजमर्रा के काम को सरल व सुचारू रूप से चलाने में मददगार होती है। जैसे वाशिंग मशीन मिक्सी स्कूटर फ्रिज इत्यादि। ससुराल में भी परिवार काफी बड़ा था , 3 बड़े भाई जो विवाहित और दो अविवाहित ननदें। कुल मिलाकर 12 सदस्य थे। रमेश, सबसे छोटा भाई था और विदेश में नौकरी करता था। जाहिर है पैसे की कोई कमी न थी। अक्सर माता-पिता द्वारा तय किए गए रिश्ते में वर का परिवार उसकी आय रहन -सहन और बोलचाल पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है, और जहां विदेश की नौकरी का टैग लगा हो माता पिता स्वभाव और आदत को नजरंदाज कर देते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ निर्मला के साथ।
कुछ समय ससुराल में रहने के बाद वह और रमेश इराक चले गए जहां रमेश किसी विदेशी कंपनी में काम करता था। पैसे भी अच्छे मिलते थे तो घर गाड़ी गाड़ी सब कुछ अव्वल दर्जे का था। यही नहीं रमेश निर्मला की सादगी और निर्मल के स्वभाव से मंत्रमुग्ध सा हो गया था, प्रेम करने लगा था उससे।
गाड़ी ठीक ठाक ही चल रही थी पर एक बात जो निर्मला को अंदर से खाए जा रही थी- रमेश पीने का आदि था। वह भी हर दिन। और उस पर यदि कभी निर्मला ने आपत्ति जताई तो रमेश भड़क जाता, शायद एक आध- बार उसका हाथ भी उठ गया। नशे से बाहर आने पर वह निर्मला से माफी मांगता और दोबारा ना पीने की कसम लेता। परंतु आदत तो कुत्ते की दुम की तरह होती है जितनी मर्जी सीधी कर लो फिर से टेढ़ी हो ही जाती है। वही हाल रमेश का भी था।
समय बीता गया फिर अचानक इराक में युद्ध छिड़ गया और लोग वापस इंडिया लौटने लगे। कई लोगों को अपनी नौकरी छोड़ कर वापस अपने देश लौटना पड़ा। उनमें से एक दंपति रमेश निर्मला और उनकी 2 वर्ष की बेटी रिया भी थी ।
अभी शायद निर्मला की परेशानियों का अंत नहीं हुआ था। ससुराल में आकर जब अपने दहेज की चीजें ढूंढने शुरू करी तो पता चला कि वह सब तो निकाल दी गई हैं। पूछने पर यही जवाब मिला कि घर में जगह नहीं थी इतना सब सामान रखने की, और फिर वह दोनों तो विदेश में ही रहने वाले थे।
संचित धन की ऊंचाई धीरे धीरे कम हो रही थी, क्योंकि पीने की लत बरकरार थी और अब रमेश बेरोजगार। मार पिटाई की आवृत्ति भी बढ़ गई थी। एक दिन निर्मला रिया को लेकर अपने मायके चली गई, शायद सब्र का बांध टूट गया था। माता पिता जो इन सबसे बेखबर थे अचंभे और सदमे दोनों के शिकार बने। माता पिता और भाइयों के सहयोग से जिंदगी को नए सिरे से जीने का निर्णय लिया गया। सबसे पहले तलाक फिर निर्मला को आत्मनिर्भर बनाना।
तलाक भी हो गया और निर्मला को एक कोचिंग सेंटर खुलवा दिया गया। कानूनी कागजों पर लिखे तलाक शब्द निर्मला के दिल से रमेश की स्मृति को हटाने में असमर्थ थे। साथ बिताए सुनहरे पल उसे रह रह कर याद आते थे। शायद इसी कारण वह रमेश से पूर्णता दूरी भी ना बना सकी। चोरी-छिपे उसे आर्थिक सहायता भी करती और एक बार नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती भी करवा दिया। समय बीतता गया और रिया को यही बताया गया कि पापा इराक में है, परंतु अब रमेश के मन में बेटी से मिलने की इच्छा जागृत थी। धमकी, गुस्सा ,नशा मुक्ति केंद्र से भाग जाना यह सब निर्मला को मानसिक रूप से कमजोर बना रहे थे। एक आध बार दूर से बेटी की झलक रमेश को निर्मला ने दिखा दी और भाइयों को पता चलने पर घर में काफी गरमा गरमी हुई। भाइयों ने समझाया की दो नाव में पैर रखकर नहीं चल सकती हो निर्मला।
अब रिया डॉक्टर बन गई थी और निर्मला ने उसे सत्य से अवगत करा दिया था। एक परिपक्व उम्र में सच्चाई को अपनाना शायद सरल होता है। रिया का विवाह था फेरे समाप्त होने को थे । निर्मला के फोन की घंटी निरंतर बजती जा रही थी। कोने में जाकर पर्स से फोन निकालकर निर्मला ने कुछ अपरिचित नंबर देखा और 8 मिस कॉल उसी नंबर की देख उसने तुरंत फोन उठाया और बोली- हेलो! दूसरी ओर से आवाज आई- यह निर्मला चावला जी हैं? निर्मला बोली- जी। दूसरी ओर से आवाज आई ‘मैं सब सफदरजंग हॉस्पिटल से बोल रही हूं मैडम ,यह रमेश चावला जी नहीं रहे।” निर्मला के पांव तले जमीन सरक गई। एक क्षण के लिए जुबान जैसे हलक में अटक गई। साहस करके पूछा -आपको यह नंबर कहां से मिला? दूसरी ओर से आवाज आई-“ मैडम इनके गले में एक लॉकेट था, जिसमें एक महिला की फोटो है, उसके नीचे यह नंबर लिखा हुआ था।“ आंखों के आगे अंधेरा छा गया, मगर यह समय कुछ भी बोलने या करने का ना था। तभी रिया अपने पति के साथ पांव छूने आई और बोली- कौन था मां? निर्मला ने दिल पर पत्थर रखकर बोला- ‘रॉन्ग नंबर ‘सदा सुहागन रहो।