"नई पौध"
"नई पौध"
"कितने पौधे तो पहले ही आँगन में लगे हैं, फिर एक और नया पौधा लगाने की ज़रूरत ही क्या है नंदिनी", अविनाश ने कहा
अपनी फुलवारी में एक और नन्हा पौधा रोपते हुए नंदिनी बेहद खुश थी। उसे ये नन्हें पौधे अपने बच्चों के ही समान लगते थे। पर कुछ इतने सघन और ऊंचे वृक्ष भी थे जो छोटे पौधों तक सूर्य का प्रकाश पहुंचेने ही नहीं देते थे और ऐसे में नतीजा ये होता था कि छोटे पौधे बिना पोषण मिले मर जाते थे। कई बार कटाई छटाई तो होती थी, पर ये कोई स्थाई उपाय नहीं था। सीमत साधनों के चलते घर के आंगन या बगीचे को बड़ा कराने में भी अविनाश असमर्थ था।
अविनाश और नंदिनी के 3 बेटे हैं, जिन्हें माँ बाप का अथाह प्रेम मिलता है। पर कहीं ना कहीं नंदिनी को एक परी जैसी बेटी की भी अभिलाषा थी, जिसे वो सजाये, सँवारे, उसके नखरे उठाये और बड़ी होने पर उसके साथ दिल की बातें साझा करे और एक दिन उसका कन्यादान कर कुछ पुण्य कमा ले। जब ये बात उसने अविनाश से कही तो वो एकदम तिलमिला गया, उसका कहना गलत भी तो नहीं था,
“नंदिनी बेटी की चाह में पहले ही तीन बेटों का बाप बन चुका हूँ, तुम फिर वही बात बोल रही हो। क्या तुम्हें पूरा भरोसा है कि इस बार बेटी ही होगी?", अविनाश के सवाल ने नंदिनी को उलझन में डाल दिया।
“ये कैसा सवाल हुआ अविनाश? इसका क्या भरोसा कि इस बार बेटी होगी", नंदिनी ने जवाब दिया
“जब तुम ये सत्य जानती हो तो इतना बड़ा रिस्क लेने की ज़रूरत ही क्या है। देखो अपने बेटों की तरफ, इनकी पढ़ाई, नौकरी और शादी में ही ना जाने कितना पैसा लग जायेगा। ऐसे में तुम एक और नन्हीं सी जान को इस दुनिया में लाना चाहती हो, मैं इतना संपन्न नहीं। जो सामने हैं पहले उनकी परवरिश ठीक से कर लो और बेटी का सपना देखना छोड़ दो। बेटी हर किसी की किस्मत में नहीं होती, यदि हमारी किस्मत अच्छी होती तो ईश्वर हमें अब तक कन्या धन दे चुके होते", अविनाश ने नंदिनी को समझाया।
नंदिनी फौरन उठी और एक दो हफ्ते पहले लगाई पौध, जो सूरज की किरणें न पहुँच पाने के कारण मरने की कगार पर थी, उन्हें बगीचे की भूमि से निकाल कर अलग अलग गमलों में रोप कर बालकनी में उजली धूप में प्रेम से रख दिया नए लाए पौधे उसने अपनी सहेली को दे दिए।