निगाहें
निगाहें
जो जैसा दिखता है, जरूरी नहीं है कि वह वैसा हो। कभी-कभी कुछ लोग सोच के विपरीत कुछ ऐसा कर जाते हैं कि आँखों को विश्वास ही नहीं होता ।सुधीर मिश्रा के रिटायरमेंट को अभी कुछ ही दिन बचे थे। हर रोज की तरह वे पुलिस थाने जा पहुँचे। चूँकि शहर में चुनाव का माहौल था।फलतः आधे से ज्यादा पुलिस अफसर की संवेदनशील इलाकों में तैनाती थी।
मिश्रा जी ने सोचा, क्यों न जेल का मुआयना कर लिया जाए। कालिया काफी दिनों से इसी फिराक में था। उसने जैसे ही मिश्रा जी को राउंड पर अकेला देखा, वैसे ही हमला कर दिया। आवाज सुनकर
दो और कैदी सलीम-पीटर भी आ पहुँचे। उनमें मिश्रा जी को साक्षात यमराज दिखने लगे और उन्हें लगा आज उनका अंत पक्का है।
पर उन्होंने उनपर हमला करने के बजाए कालिया को धर दबोचा और उन्हें बचाने की कोशिश करन लगे। मिश्राजी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ।जान लेनेवाले आज उनके प्राणरक्षक बन गए।
अपने इतने साल के कार्यकाल में ये अजूूबा होतेे हुए उन्होंने पहली बार देखा जिसने उनका नजरिया बदल दिया। जो कल तक उनकी आँखोंं में शूल की तरह चुुभते थे,आज वेेे उनके निगाहों में सम्मानके पात्र थे।