अधूरा प्यार
अधूरा प्यार
उसे देखा तो देखता ही रह गया। कितनी मासूमियत थी उसकी आँखों में। ऐसा लग रहा है जैसे कल की ही बात हो। मेरी पहली मुलाकात उससे बहन की शादी में हुई थी। काले घुंघराले बाल, बड़ी -बड़ी काली आँखें और सफेद लहंगे में वह किसी परी से कम नहीं लग रही थी ।
बहन को पग फेरे के लिए घर लाने की बात हुई तो मैंने माँ से कह दिया कि मैं ही लेने जाऊँगा। माँ समझ नहीं पा रही थी कि कल तक जो लड़का एक काम करने को तैयार नहीं था आज इतने जोश से हर काम में बढ़ - चढ़कर हिस्सा ले रहा है। इस तरह बहन के घर आना- जाना लगा रहा। इसी बहाने उसे देखने का मौका भी मिल जाता। बहन को यह समझते देर न लगी कि मैं उसकी पड़ोसी जया
पर पूरी तरह लट्टू हो गया हूँ। दीदी ने बात आगे बढ़ाने की बात भी कही। पर मेरा मानना था कि पहले अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ फिर शान से रिश्ता ले जाऊँगा। दीदी ने समझाया कि तब तक देर न हो जाए।
आगे की पढ़ाई के लिए मैं विदेश चला गया और जब लौटा तो पता चला कि जया की शादी हो गयी है। आज पूरे पाँच साल बाद जया को देखा। माँग में सिंदूर, हाथों में चूड़ियां और लाल साड़ी में किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। आज जैसे कुछ खो देने का अहसास था पर इस बात की खुशी भी थी कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश थी। आज जाना प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है बल्कि जिसे चाहते हो उसकी खुशी में भी है।