Ms. Santosh Singh

Others

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Ms. Santosh Singh

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दोहरा चरित्र

दोहरा चरित्र

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   वह माँ दुर्गा का अनन्य भक्त था। औरतों के प्रति आदरभाव व अपनी सज्जनता के कारण समाज में उसका खास मुकाम था। अगर औरतों से जुड़ा कोई मुद्दा हो, तो विशेषकर उस समस्या का समाधान ढूँढने के लिए उसे ही बुलाया जाता था। लोगों का ऐसा मानना था कि उसके रहते किसी भी महिला के साथ अन्याय नहीं हो सकता। पुरुषों के दकियानूसी सोच पर उसने कई बार सवाल भी उठाए थे।

  उसका मानना था कि स्त्री -पुरुष समाज के अभिन्न अंग है। दोनों के समान अधिकार है। पुरुष होने से मर्दों को कोई विशेष हक नहीं प्राप्त हो जाते। औरत कोई खिलौना नहीं है कि जब मन आया उसके जज्बातों से खेला जाए। वह भी एक इंसान है। उसकी भी इच्छा-आकांक्षा हो सकती है। उसे पूरा अधिकार है अपने मन मुताबिक जीवन जीने की। सीमा उसकी बातों से काफी आकर्षित थी। वह अपने लिए ऐसा ही जीवनसाथी चाहती थी। फलतः जब प्रभास का रिश्ता उसके लिए आया तो वह फूली नहीं समाई। उसे विश्वास नहीं हो रहा था जिसके ख्वाब वह देखती थी, वह हकीकत में उसका होने जा रहा था। उसे अपनी किस्मत पर फक्र हो रहा था।

  अब सीमा प्रभास की ब्याहता थी। समाज में उसका खास रुतबा था। खाने -पीने की उसे पूरी आजादी थी। किसी चीज की उसे कोई कमी नहीं थी। पर धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा कि घर से या परिवार से संबंधित कोई भी निर्णय लेने का अधिकार उसे नहीं था। वह तो बस साजो-सामान की वस्तु बनकर रह गई थी। उसका वहाँ कोई अस्तित्व नहीं था। प्रभास की इच्छा के विरुद्ध वहाँ एक पत्ता भी नहीं हिलता था। जो व्यक्ति समाज में स्त्रियों के अधिकारों की बात करता था, उसका ऐसा भी रूप हो सकता है, यह उसने कभी सपनों में भी नहीं सोचा था। प्रभास का यह दोहरा चरित्र देखकर वह दंग रह गई थी।वर्तमान समय की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि बाहर पुरुष औरतों के हक की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं पर घर में उन्हें एक वस्तु से ज्यादा कुछ मोल नहीं। अगर सच में औरतों को उनका हक दिलाना है, तो उसकी शुरुआत पहले खुद के घर से करनी होगी, तभी सच्चे अर्थों में समाज का नक्शा बदलेगा अन्यथा नहीं।



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