जाल भाग - 1
जाल भाग - 1
महत्त्वाकांक्षी होना बुरी बात नहीं है पर उसके जुनून में सब कुछ भूल जाना, ठीक नहीं है। मेरी कहानी की नायिका मनोरमा ने कुछ ऐसी ही ग़लती की। बचपन से ही वह कुछ बड़ा करना चाहती थी। इंटर पास करने के बाद अपनी पढ़ाई आगे जारी रखने के बजाए बॉलीवुड में किस्मत आजमाना चाहती थी। रोल पाने के लिए वह हर तरह का समझौता करने के लिए तैयार थी। बस उसकी चाहत थी किसी तरह छा जाने की। ऐसे में उसकी मुलाकात एक बड़े बिजनेस मैन मि. वाधवा से हुई। बात करने में वह पहले से ही माहिर थी। वह जानती थी कि मि. वाधवा को रंग-रूप से आकर्षित नहीं किया जा सकता था। पार्टियों में कई बार उनका मिलना - जुलना शुरू हुआ और धीरे-धीरे उनकी नजदीकियाँ बढ़ने लगी।
मनोरमा के मोहपाश में मि. वाधवा पूरी तरह से गिरफ्त हो चुके थे। कई बार वह भाई - बहन के बीच कलह का कारण भी बनी। परिवारवालों ने समझाने की बहुत कोशिश की पर मनोरमा के प्यार में वे इतने अंधे हो गए थे कि उन्हें सही गलत का भान न था। यहाँ तक कि नया बंगला खरीद कर उसके साथ रहने लगे। वे पानी की तरह उसपर पैसे खर्च करने लगे। मनोरमा जानती थी कि वे चाहे तो मनोरमा को आसानी से अभिनेत्री बना दे। उनकी बॉलीवुड में अच्छी पहचान व पकड़ थी। वे दो- तीन फिल्मों के प्रोड्यूसर भी थे। धीरे -धीरे वह उनके स्टाफ को बदलकर अपने विश्वसनीय सूत्रों को रखने लगी। इसी बीच किसी बात को लेकर मि. वाधवा और मनोरमा के बीच बहस हो गयी। फलतः वह घर छोड़कर चली गई।
अचानक एक दिन मि. वाधवा के आत्महत्या की खबर आई। किसी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मशहूर बिजनेस मैन होने के कारण मीडिया ने इस खबर को खूब उछाला। दिन-रात लोगों व मीडिया की चर्चा का विषय यही बना रहा कि आखिर मि. वाधवा ने आत्महत्या क्यों की। कुछ लोगों का मानना था कि ये आत्महत्या नहीं हत्या है, इसके लिए वे तरह-तरह के साक्ष्य भी दे रहे थे। पुलिस पर दबाव बढ़ता ही जा रहा था।