समाज का वास्तविक चेहरा
समाज का वास्तविक चेहरा
जब पुत्र का जन्म हुआ तो रामनरेश की खुशी का ठिकाना न रहा।उन्होंने तय कर लिया था कि जो कमी उन्होंने अपने बचपन में महसूस किया था ,उसकी परछाई भी अपने बेटे तक पहुँचने नहीं देंगे। धीरे-धीरे समय बीतता गया और रमेश ने इंजीनियरिंग की डिग्री भी ले ली।बेटे की सफलता से उनकी आँखें भर आईं और उन्हें लगा कि उनका जीवन सफल हो गया ।
कुछ ही दिनों में रमेश को एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिल गयी। अक्सर कंपनी के काम से उसका मुंंबई आना- जाना लगा रहता था।उसने वहीं एक बड़ी कंपनी जाॅइन कर ली और पिताजी को इसकी जानकारी दे दी ।बेटे की तरक्की से रामनरेश बहुत खुश थे।शुरू-शुुरू में रमेश हर हफ्ते पिताजी से मिलने आता था,फिर काम में इतना व्यस्त हो गया कि महीने भर तक उसका आना नहीं होता था।पर पैसे अवश्य भेेेज देता था।कहते हैं कि दूरियाँ रिश्ते में खाईं का काम करती हैं।
काफी दिनों से रमेश न पिताजी से मिलने आया और न ही पिताजी के फोन का कोई प्रत्युुुत्तर दिया।फोन की घंटी बजते ही वे समझ गए कि रमेश का काॅल होगा।"पिताजी मैंने शादी कर ली," ये सुुनते ही उनके पैैरों तले जमीन खिसक गई ।उन्हें अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था ।जिस बेटे के सपनों को पूूरा करने के लिए उन्होंने अपने सपनों की आहुति दे दी, उसी पुत्र ने शादी में बुलाने के काबिल भी उन्हें न समझा । कैसी विचित्र दुनिया है ये।माता -पिता अपने जीवनभर की कमाई बेटे को बड़ा करने में लगा देेते है, वही पुत्र बड़़ा होने पर अपने पिता को अपने समाज में शामिल करने से शर्माता है । सोचता है, उनके आने से उसकी नाक कट जाएगी, लोग उसे जाहिल कहेंगे।वह क्यों भूल जाता है कि उसे इस लायक माता-पिता नेे ही बनाया है ।
बड़े-बुजुर्गों से घर का रुतबा बढ़़ता है न कि घटता। जिस घर में उन्हें मान-सम्मान दिया जाता है ,वहाँ सदैव बरकत होती है । जब तक ये सच्चाई आज की युवापीढ़ी नहीं समझेगी, तब तक इस समाज का चेहरा नहीं बदलेगा ।अभी भी देेर नहीं हुुई हैै ,जब जागो तब सबेरा।