Ms. Santosh Singh

Tragedy

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Ms. Santosh Singh

Tragedy

दोहरी मानसिकता

दोहरी मानसिकता

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क्यों सारी मर्यादाओं का भार औरत के सिर है? कदम-कदम पर औरत को ही अग्निपरीक्षा क्यों देनी पड़ती है? आदमी के लिए क्यों कोई नियम नहींं बने? ऐसे न जाने कितने प्रश्न मन में उठते हैं और अथाह सागर में कहीं विलीन हो जाते हैं।

जब औरत मर्यादा लाँघती है तो उसे करमजली,कुलछिनी न जाने किन -किन नामों से संबोधित किया जाता है पर वही गलती पुरुष करे तो सारा दोष पत्नी के सिर मढ़ दिया जाता है क्योंकि पुरुष तो कोई गलती कर ही नहीं सकता।

समाज की ये दोहरी मानसिकता मेरे गले तो हरगिज़ नहीं उतरती। क्यों औरत के लिए अलग नियम और पुरुषों के लिए अलग? जब लड़का-लड़की एक समान का नारा सुबह-शाम देते मुुँह नहीं थकता तो हक देेेने की बारी आती है तो साँप क्यों सूँघ जाता है? कहने के लिए हम 21 वीं सदी में पहुँच गए हैं पर आज भी हमारी सोच दकियानूसी हैै,इस कड़वे सच को नकारा नहीं जा सकता।समाज के विकास में स्त्री-पुरुष दोनों का योगदान जरूरी है ।अकेला पुरुष या अकेली औरत समाज को नहीं चला सकते। जब तक समाज का नजरिया नहीं बदलेगा, तब तक समाज का उत्थान असंभव है ।


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