नौ दो ग्यारह
नौ दो ग्यारह
एक जना था अपने आप को पंडित बताता था।
बहुत बड़ी-बड़ी बातें करता था।
और जब भी जरूरत जब भी इच्छा होती तब उनके घर पहुंच जाता।
मैं तो पंडित हूं बोलता मैं तो परांठे ही खाता हूं और घी से लथपथ पराठे खाता ऊपर से और घी मक्खन मांगता।
सामने वाले सोचते कि पंडित है खाने दो ।
ज्यादा उसके बारे में तफ्तीश नहीं करी थी कि कौन है, क्याहै कहां से आया है गांव वाले सब जाते इज्जत देते तो वे लोग भी नए आए थे देने लगे ।
और सोचा अच्छा इंसान है घर भी आने देने लगे।
बहुत बड़ी-बड़ी डींगे हाकता था। बड़ी-बड़ी बातें करता था। जिनके घर में जाता था उनकी मिसेज को वह पसंद नहीं था ।
उन्होंने उसके बारे में जानकारी इकट्ठे करने का सोचा।
ऐसे ही बातों में बातों में उसकी सच्चाई पता लग गई तो पता लगा वो वैसे ही है।
थोड़ा बदमाश ले भागु टाइप है। कोई पंडित पंडित नहीं है।
मीठी बातों से लोगों को फंसा देता है।
उसने बोला मेरा उस शहर में मकान है।
संयोग की बात थी उन लोगों का भी उसी शहर में ट्रांसफर हुआ था।
उन्होंने सोचा रोज जिसको खिलाते हैं आज इससे एड्रेस ले लेते हैं इसके घर चले जाते हैं। इसके बारे में जानकारी भी मिल जाएगी पूरी.
उनकी मिसेज ने बोला हम लोग कल उस शहर में शिफ्ट हो रहे हैं तो पहले दो-चार दिन आपके घर ही रह लेते हैं। आप यहां इतना आते जाते हैं।
इससे हमारे जान पहचान वाले हो गए हैं।
पूरे2,3 दिन आपके यहां का आतिथ्य स्वीकार कर लेते हैं।
उसने बोला हां हां मैं कल आता हूं आपके रहने की सारी तैयारी करके आता हूं, आपको एड्रेस भी दे दूंगा। और आप मेरे घर आए ।
और दूसरे दिन ऐसा नौ दो ग्यारह हुआ सारे गांव वाले उसे ढूंढते ही रह गए।
बहुत लोगों से उसने पैसा उधार ले रखा था।
उसने सोचा मेरा भांडा फूट जाएगा इसीलिए अभी गांव में मेरे लिए कोई जगह नहीं है ।
और ऐसा भागा फिर कभी नजर नहीं आया। ऐसा नौ दो ग्यारह हो गया
☺️☺️
इसीलिए किसी से भी दोस्ती करने से पहले उसको परखना उसके बारे में जानना बहुत जरूरी है।
सब लोग उससे अच्छी तरह बोलते हैं इसीलिए अपन दोस्ती करलें ऐसा सही नहीं है।
ऐसे लोग धोखा ही देते हैं। और उनकी सच्चाई खुलने से पहले नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। और आपको हजारों रुपए के नीचे छोड़ जाते हैं।