Piyush Goel

Classics Children

3  

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नारद बने वानर

नारद बने वानर

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यह कथा देवी भागवत पुराण ( गीताप्रेस , गोरखपुर ) से ली गई है। 

एक बार देव ऋषि नारद व उनकी बहन के पुत्र पर्वत मुनि पृथ्वी पर टहलने आए। स्वर्ग से आते समय पर्वत मुनि व देव ऋषि नारद ने यह प्रतिज्ञा करी कि कोई भी किसी से भी किसी भी प्रकार की बात नहीं छुपाएगा। पृथ्वी लोक पर विचरते हुए देव ऋषि नारद व पर्वत मुनि को ग्रीष्म ऋतु समाप्त हो गई और वर्षा ऋतु का आगमन हो गया। वर्षा ऋतु में कोई भी बाहर नहीं जा सकता इसलिए पर्वत मुनि देव ऋषि नारद महाराज संजय के महल में अपना चौमासा व्यतीत करने लगे। महाराज संजय ने पर्वत मुनि देव ऋषि नारद का अत्यंत ही हर्ष के साथ स्वागत करा।

राजा संजय की कन्या का नाम दमयंती था। वह अत्यंत ही सुंदर थी । देव ऋषि नारद सदैव वीणा बजा कर सामवेद गाया करते थे । देव ऋषि नारद की सुरीली आवाज सुनकर दमयंती मोहित हो उठे । और वह देव ऋषि नारद से प्रेम करने लगी । वही देव ऋषि नारद भी दमयंती से प्रेम करने लगे । फिर तो जो भी वस्तु देव ऋषि नारद व पर्वत मुनि को दी जाती उसमें कोई ना कोई भेद अवश्य होता । तब पर्वत मुनि के आश्चर्य की कोई सीमा ना रही और पर्वत मुनि ने देव ऋषि नारद से इस विषय में पूछा तब देव ऋषि ने कहा - " पर्वत मुनि ! वह सुंदर राजकुमारी मुझे अपना पति बनाना चाहती है और वह मुझे मन ही मन अपना पति मान भी चुकी है और मैं भी उससे प्रेम करने लगा हूं।"

देव ऋषि नारद की बात सुनकर पर्वत मुनि क्रोध में आ गए क्योंकि देव ऋषि नारद ने पर्वत मुनि को इस विषय में पहली बार कुछ भी नहीं बताया और पर्वत मुनि ने देव ऋषि नारद को वानर मुख हो जाने का श्राप दे दिया। इस बात से क्रोधित होकर देव ऋषि नारद ने पर्वत मुनि को श्राप दिया कि अब पर्वत मुनि भी स्वर्ग के अनाधिकारी हो जाओ और फिर पर्वत मुनि अत्यंत दुखी होकर वहां से निकल पड़े। वही देव ऋषि नारद का मुख वानर जैसा हो गया। जब राजकुमारी दमयंती को इस बात का पता चला तब दमयंती को देव ऋषि नारद के वानर मुख हो जाने से दुख तो बहुत हुआ पर प्रेम कतई भी कम नहीं हुआ ।

धीरे -धीरे राजकुमारी दमयंती विवाह के योग्य हो गई और महाराज संजय ने अपनी पुत्री के लिए उचित वर ढूंढना आरंभ किया। दमयंती देव ऋषि नारद को अपना पति मान चुकी थी परंतु राजा और रानी को यह बात स्वीकार नहीं की कोई वानर मुख जैसा जीव दमयंती का पति हो परंतु दमयंती ने किसी की भी नहीं सुनी अंत में थक हार कर अपनी पुत्री की खुशी के लिए राजा ने दमयंती का विवाह वानर मुखी नारद से कर दिया राजकुमारी दमयंती देव ऋषि नारद की सेवा करने लगी दमयंती कभी भी देव ऋषि नारद के मुख को लेकर अपनी चिंता नहीं कहती । 

एक बार पर्वत मुनि देव ऋषी नारद से मिलने आए और जब उन्होंने दमयंती और देव ऋषि का विवाह हो चुका है। जब पर्वत मुनि ने देखा कि दमयंती को वानर मुख वाले नारद के साथ जीवन बिताना पड़ रहा है तब पर्वत मुनि को दया आ गई और उन्होंने अपना श्राप वापस लिया तब नारदजी का मुख पहले की भांति हो गया और नारद मुनि ने अपना श्राप भी वापस लिया ।



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