अनाथ की दीवाली
अनाथ की दीवाली
धनतेरस के दिन है , लोग बाज़ार में खरीददारी कर रहे है । कुछ लोग दुकानदार से दाम कम कराने के लिए लड़ रहे है , पूरे बाज़ार में शोर ही शोर मचा हूंआ है , कोई कुछ खरीद रहा है तो कोई कुछ । अक्षय भी अपने बेटे के साथ दीवाली पर नई बन्दूक और पटाखे खरीदने बाज़ार में आया था । अक्षय ने अपने बेटे मयंक को बन्दूक दिखाई और उससे पूछा - " बेटा , यह बन्दूक तुझे पसन्द हो तो ले लेते है "। मयंक ने एक दूसरी बन्दूक की और इशारा करते हूंए कहा कि पापा ! मुझे वो वाली बन्दूक चाहिए । अक्षय के दाम पूछने पर दुकानदार ने बताया कि उस बन्दूक की कीमत इस बन्दूक की कीमत से 50 रुपये ज्यादा है । अक्षय ने दुकानदार से कहा - " चलो कोई बात नही , मेरे बच्चे की खुशी के लिए इतना तो मैं कर सकता हूं , तुम एक काम करो इसे पैक करदो ''।
बन्दूक लेने के बाद मयंक बहूंत खुश हो गया और अपने पापा के साथ पटाखे खरीदने दूसरी दुकान पर जा रहे थे । तभी मयंक की नज़र अपनी उम्र वाले एक बच्चे पर पड़ी जिसने कुछ फ़टे हूंए कपड़े पहने थे , उसका रंग साँवला हो गया था जैसे गरीबी की धूप ने बचपन को सुखा दिया हो । धनतेरस वाले दिन अपनी उम्र के बच्चे को फ़टे कपड़ो में देखकर मयंक हैरान सा रह गया , वो तुरन्त अपने पिता अक्षय के साथ उस बच्चे के पास गया और बोला - " तुम्हारा नाम क्या है ? और आज के दिन भी तुम ऐसे कपड़ो में क्यो हो ''? मयंक की बात सुनकर वह बच्चा घबरा गया और हड़बड़ाने सा लगा । मयंक ने उसे रोका और पूछा - "तुमने पटाखे लिए ? मैं तो इस बार नए से नए पटाखे जलाऊंगा "? मयंक की बात सुनकर वह बच्चा घबरा गया और भागने लगा तभी अक्षय ने उस बच्चे को अपने पास बुलाया औऱ उसे खाना खिलाया और फिर मयंक ने कहा कि अब बताओ न तुमने नए पटाखे लिए ? वह बच्चा मयंक को देख रहा था और उसने बड़ी ही दयनीय आवाज़ में बोला - " मैं पटाखे जलाता नही साहब , मैं पटाखे बेचता हूं और सारा पैसा अपने मालिक को दे देता हूं , अभी मालिक ने मुझे दो घण्टे की छूटी दी है इसलिए मैं बाहर हूं और लोगो से भीख मांग रहा हूं" । यह सुन मयंक आश्चर्य चकित हो गया और बोला - " तुम मालिक - मालिक किसे कहा रहे हो , तुम अपने पापा से कहो न कि तुम्हे पटाखे ला दे "। वह बच्चा बोला - " मेरा बाप होता तो मैं यहां नही होता , तू नरम बिस्तर पर सोता है , मेरी सोने की जमीन में भी काटे लगे हूंए है , तू अभी नही समझेगा " । बच्चे की बात मयंक को समझ नही आई और इससे पहले वो कुछ बोले , वह बच्चा वहां से जा चुका था ।
मयंक ने अपने पिता अक्षय की तरफ देखा , अक्षय की आंखों में पानी था , मयंक ने अक्षय से पूछा कि वो यह सब क्यो बोल रहा था और इसका मतलब क्या था ? अक्षय ने अपने बच्चे की बात को टालते हूंए कहा कि तुम उसकी बातों पर ध्यान मत दो , वो तो पागल था , सुना नही कैसी कैसी बाते कर रहा था । चलो पटाखे लेने चलो । अक्षय ने कुछ समय के लिए तो मयंक को टाल दिया पर अभी भी मयंक उसी के बाड़े में सोच रहा था कि आखिर वो लड़
का था कौन ? बार बार पूछने पर अक्षय ने मजबूर होकर मयंक को बताया - " वो एक अनाथ लड़का था , उसके मम्मी पापा नही थे , वो कहि मजदूरी करता है , वह पटाखे जलाता नही पर बेचता है , वो मजबूर है , पैसों और मम्मी पापा की कमी के कारण वो दीवाली नही माना सकता "। मयंक ने कहा - " तो क्या हम उसकी मदद नही कर सकते "? अक्षय मयंक की बात सुनकर थोड़ा चिड़चिड़ा हो गया और बोला - " अगर ऐसे ही मदद करने लगे तो हम खुद भूखे मर जाएंगे "। मयंक बच्चा था , वो नही समझ पा रहा था कि उसके पापा क्या कहना चाहते है तब मयंक ने कहा कि पापा , हमारे घर दीवाली पर इतनी मिठाईया आती है , ओर कुछ मिठाईया तो बासी होने के कारण हमें फेंकनी पड़ती है , यह मिठाई हम उसे क्यो न दे ? अगर आप मेरे लिए 50 रुपए ज्यादा खर्च कर मुझे महंगी बन्दूक दिला सकते है तो क्या आप थोड़े और पैसे खर्च कर उसे पटाखे नही दिला सकते ? मैंने स्कूल में पढ़ा था कि दीवाली पर तो खुशिया बाटी जाती है तो हमे भी तो ऐसा ही करना चाहिए" । मयंक की सारी बाते सुन अक्षय ने कहा - " यह सारी बाते सुनने और पढ़ने में अच्छी लगती है , पर ऐसा असलियत में नही हो सकता । और तुम्हे पटाखे और कपड़े लाने ह न तो चलो मेरे साथ और इस बारे में बात मत करो ।
अपने पापा की बात सुनकर मयंक को बहूंत अजीब लग रहा था , उसने सोचा कि बेशक ये किताबी बाते हो पर क्या पता किताबी बातों से किसी की दीवाली सच मे दीवाली बन जाए , अगर मैं नए कपड़े पहन रहा हूं तो क्यो न मैं एक शुरुआत करू लोगो की दीवाली सुंदर बनाने की । मयंक का विचार तो अच्छा था लेकिन उसे डर था कि कही उसके पापा उसे डांटने न लग जाए । मयंक ने अपने गुल्लक से पैसे निकाल जो लगभग 4000 थे और बाज़ार में उस बच्चे को ढूंढने निकल पड़ा ।
मयंक उसी जगह पर पहूंचा जहाँ उसे वो लड़का पिछली बार मिला था पर इस बार वहाँ वह लड़का नही था , वो इधर - उधर खोजने लगा तब उसे एक पटरी पर बैठा वह लड़का नज़र आया जो पटाखे बेच रहा था । मयंक उसके पास गया और उसने वो पैसे उस लड़के को दे दिए , वो पैसे देखकर लड़का बोला कि मैं इन पैसों का क्या करू ? मयंक कहने लगा कि दीवाली मनाओ , खुशिया मनाओ । यह सुन वह लड़का बोला कि तुम मेरे लिए लाए हो , यह बात तुम्हारे घर पे पता है ? मयंक ने कहा - " तुम उन सब की चिंता मत करो , तुम बस अपनी दीवाली मनाओ "।
मयंक अपने घर वापस आ गया और वह लड़का बहूंत खुश हो गया । दीवाली आई , अक्षय ने अपने परिवार के साथ पूजा करी और वो गली में जाकर पटाखे फोड़ने लगा तभी मयंक ने देखा कि एक लड़का साँवले से रंग का , सुंदर कपड़े पहने मयंक के पास आया , मयंक ने उस लड़के को पहचान लिया - "अरे ! ये तो वो ही है " मयंक चिल्ला पड़ा । अक्षय ने भी उस लड़के को पहचान लिया , ये वो ही है जो उस दिन बाज़ार में मिला था । वह लड़का आज बहुत खुश लग रहा था क्योंकि मयंक के कारण वो दीवाली मना पा रहा था । अक्षय को अपने बेटे पर नाज़ और खुदपर शर्म आने लगी ।