Piyush Goel

Others

4.6  

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भाषण या स्पीच

भाषण या स्पीच

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स्वंत्रता दिवस आने वाला था , विद्यालय में यह चर्चा हो रही थी कि इस बार स्टेज पर कोंन - कोंन से कार्यक्रम करवाए जाएंगे । हमारी कक्षा तक भी हमारे क्लास टीचर ने यह संदेश पहुचाया और कहा कि जो भी बच्चे इस कार्यक्रम में भाग लेना चाहते हो , वो अपना नाम दर्ज कराए ।

हमारी कक्षा में अधिकतर विद्यार्थियों को स्टेज फियर था इसलिए हमारी कक्षा से मात्र तीन नाम ही गए - चेतना , दिव्यांश और पीयूष । जब यह तीन नाम हमारी क्लास टीचर ने देखे तो उन्होंने कहा कि एक क्लास से सिर्फ दो विद्यार्थी ही हिस्सा लेंगे । अब बात यह थी कि आखिर किसका नाम इस कार्यक्रम से हटाया जाए । हमारी क्लास टीचर ने एक बड़ा ही सुंदर उपाय खोज निकाला । उन्होंने तीनों को अपने पास बुलाया और कहा कि अपनी - अपनी कविता या स्पीच सुनाओ ।

दिव्यांश और मैंने तो अपनी स्पीच सुना दी और अब नम्बर चेतना का था । चेतना का भाषण सुनते ही हमारी क्लास टीचर ने चेतना को रिजेक्ट कर दिया । इसका कोई स्पष्ट कारण तो नही दिया गया पर हम दोनो की स्पीच और चेतना के भाषण में एक अंतर था , वो था भाषा का अंतर , शायद , यही कारण था कि हमारी वलास टीचर ने चेतना को रिजेक्ट कर दिया ।

14 अगस्त को विद्यालय में काययक्रम आरम्भ हुआ , आरम्भ मैनेजर सर की स्पीच से हुआ और एक - के बाद एक विद्यार्थी आकर अपनी प्रस्तुति देता गया । मेरी नज़रे इसी चीज़ पर थी कि अब तक कोई भी हिंदी में प्रस्तुति देने नही आया है । मातृभाषा का ऐसा अपमान मुझसे देखा नही गया और जब मेरा नम्बर आया , मैंने अपनी प्रस्तुति देना आरम्भ करा - " सुप्रभात ! आज हम सभी स्वंत्रता दिवस मनाने के लिए यहां पर एकत्रित हुए है , भारत को स्वंत्र हुए 75 वर्ष बीत चुके है लेकिन आज भी हम मानसिक गुलामी कर रहे है । वो गुलामी है उस अंग्रेज़ी भाषा की जिसने हमपर इतने वर्षों राज किया । हम लोग हिंदी बोलने में हिचकिचाते है , आज भी हमे डर लगता है कि अगर हम हिंदी बोलेंगे तो हमे अनपढ़ कहा जाएगा । यह हमारे लिए सबसे शर्म की बात है कि हम हमारी मातृभाषा को ही सम्मान देना आज भूल चुके है , कई लोगो का कहना है कि हिंदी में विशेषता क्या है जो इसे इतना मां दिया जाए ? सुनिए , जब आप किसी ओर भाषा मे अपना भाषण देते है तो शायद बच्चे सिर्फ तालिया बजाते है पर जब आप हिंदी में अपना भाषण देते है तो हर कोई उसे सुनता है । अलंकारों का प्रयोग कर अपने भाषण में रस घोला जाता है । शब्दो की सुंदर रचना से वाक्य बनते है । इस भाषा का हर एक नियम समान है , इसका कोई अपवाद नही है पर हमारी मानसिकता आज ऐसी बन चुकी है कि जो हिंदी बोले , वो अनपढ़ है । हम भारतवासियो के लिए यह शर्म की बात है कि आज भी हम हिंदी को राष्ट्रभाषा नही बना पाए , छंदों का ज्ञान भी हिंदी भाषा मे ही तो है । आइये इस स्वंत्रता दिवस के दिन हम मानसिक गुलामी से भी आज़ादी पाए और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की पेशकश करे "।

मेरे इस भाषण पर तालिया तो खूब बजी लेकिन मेरी क्लास टीचर की आंखों में कुछ मिश्रित भाव थे - क्रोध के भी और लज्जा के भी ।



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