मटकी वाली बुढ़िया
मटकी वाली बुढ़िया


दो दिन से उसे रोटी नहीं मिली थी, सिर्फ पानी पीकर ही काम चला रही थी। अपने दो साल के पोते को लेकर इधर - उधर भटक रही थी, अपनी मटकी बेचने के लिए अपनी सबसे सुंदर फ़टी हुई साड़ी में वो गाँव से पैदल चलकर शहर की तरफ आ गई थी, एक घर के सामने उसने जोर से आवाज़ मारी - " मटकी लेलो "। उस बुढ़िया की आवाज़ सुनकर एक घर से एक जवान औरत रेशमी साड़ी पहने, माथे पर बिंदी, और हाथो में हरी चुडिया पहने बाहर आई और बोली
जवान औरत ( गुस्से और चिड़चिड़ाहट से ) : क्या हुआ अम्मा ? क्यो चिल्ला रही है ?
बुढ़िया ( लाचार सी बनकर ) : बेटी ! मुझ बुढ़िया को ऐसे मत कहो, मेरी मटकी लेलो ताकि मुझे आज खाने को अन्न मिल जाए।
जवान औरत ( चिढ़कर ) : अरे अम्मा, तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे मैंने तुम्हारा पेट भरने का ठेका ले रखा है, मुझे जरूरत ही नहीं है इस मटकी की, निकल जाओ यहाँ से।
बुढ़िया ( गिड़गिड़ाकर ) : ऐसे मत कहो बेटी, दया करो मुझ पर।
बुढ़िया गिड़गिड़ाती रही और जवान औरत अपने घर का दरवाजा बंद करकर चली गई। वो बुढ़िया अब आगे जाने लगी, रस्ते में उसे एक गाड़ी दिखी जो काले रंग की थी, जिसमें एक सज्जन ड्राइवर के साथ काले कोट में बैठे थे, बुढ़िया उस गाड़ी के पास गई और उसके शीशे को खटखटाया पर शीशा नहीं खोला गया, बस गाड़ी के अंदर ही कुछ गालियों जैसी आवाज़ आई। दो साल के मासूम बच्चे को देखकर भी गाड़ी का शीशा नहीं खुला।
सुबह से दोपहर हो गई पर बुढ़िया की एक भी मटकी नहीं बिकी, वो बेचारी अब इस सोच में डूब गई कि उसकी मटकी वो कैसे बेचे तभी उसने देखा कि एक जगह लोगो ने भीड़ लगा रखी है और वहाँपर कोई मंच बना हुआ है। वहां क्या तमाशा चल रहा था, यह जानने के लिए बुढ़िया वहां गई तो उसने देखा कि एक सुंदर सी जवान लड़की अर्ध नग्न होकर नाच रही है और लोग उसपर 500 - 2000 के नोट उड़ा रहे हैं, तभी उसकी नज़र काला कोट पहने आदमी पर पड़ी जिसने गाड़ी में बुढ़िया के लिए शीशा भी नहीं खोला था।
यह सब देख उस बुढ़िया के मन मे एक ही बात आई कि नग्न लोगों को नग्नता ही पसंद होती है।