अंधकार में प्रकाश
अंधकार में प्रकाश


बाजारों में रौनक लगी हुई थी। पूरे बाज़ार में कहीं पर पैर रखने की भी जगह भी नहीं थी। दुकानें रोड पर आ चुकी थी और पटरियों ने बची कूची रोड को भी घेर लिया था। दीवाली का माहौल ही कुछ ऐसा होता है। हर जगह से आवाज़ें आ रही थी कि हमारा सामान खरीद लो।
इन्हीं आवाज़ों की भीड़ में एक आवाज़ सुनीता की भी थी जो अपने माटी के दीपक पटरी पर लगाकर बेच रही थी। सुनीता एक बूढ़ी महिला थी जिसने तन को एक पुरानी सी साड़ी से ढक रखा था। सुनीता को इस बात की फिक्र सता रही थी कि अगर आज उसके दीपक किसी के घर में उजाला नहीं कर सके तो उसके अपने घर में अंधकार छा जाएगा। लोग आ-जा रहे थे किंतु सुनीता की तरफ किसी की दृष्टि पड़कर भी दृष्टि नहीं पड़ रही थी। इतने में ही अनिशा की नज़र उस बूढ़ी औरत पर पड़ी। अनिशा ने कहा " कितने के दोगी अम्मा "? सुनीता ने कहा - " 10 के 3 दूंगी।" यह सुनकर अनिशा तो जैसे आग बबूला सी हो उठी और चिल्लाकर कहने लगी - "अरे अम्मा , यह क्या बात हुई ? इतने महंगे दिए। सही - सही लगाओ वरना लुंगी नहीं।" अनिशा की बाते सुनकर सुनीता को क्रोध तो आया लेकिन उसके मजबूरी के पानी ने उसके अंदर की आग को भुजा दिया। और सुनीता ने कहा कि तुम कितना दोगी ? तब अनिशा ने कहा कि दस के पांच दिए दे दो। अनिशा की बात सुनकर सुनीता को क्रोध तो आया परन्तु गरीबी की लाचारी ऐसी की उसने दस के पांच दिए अनिशा को दे दिए।
इतने में ही रमेश भी वहां आ पहुँचा, रमेश से भी बुढ़िया की कुछ इस तरह ही बात हुई और रमेश को भी सुनीता को दस के के पांच दीपक देने पड़े। अब सुनीता के पास सिर्फ दस दीप और बचे थे जिन्हें लेकर वह पटरी पर बैठी थी किंतु कोई भी उससे खरीद नहीं रहा था।
छोटी दीवाली का दिन आ गया और सुनीता के पास उसके दस दीपक बचे थे जिन्हें देख वह ईश्वर से कहने लगी - " विधाता ! तू इतना निष्ठुर क्यों है ? तूने भूख के लिए पेट तो दिया पर उसे शांत करने का माध्यम नहीं दिया। यह तेरा कैसा न्याय है कि आज लोगों के घरों में प्रकाश करने वाली के घर में ही अंधेरा हो। तू क्यों मुझे इस प्रकार तरसा रहा है प्रभु ? कुछ तो होगा जो तूने मेरे लिए सोचा होगा। तू कोई रास्ता दिखा प्रभु।"
सुनीता यह सारी बाते अपने घर की चौखट पर रखे दीप से कह रही थी जिसे उसकी पड़ोसन नायरा ने सुन लिया। नायरा को मन ही मन में यह आभास हो गया कि ईश्वर ने उसे किसी की सहायता करने के लिए चुना है। अगले ही दिन यानी दीवाली के दिन नायरा सुनीता की पटरी पर गई और सुनीता ने दस के दस दीपक खरीदे जिसमें उसने एक दीपक की कीमत 20 रुपये लगाई और सुनीता को 200 रुपये दिए। साथ ही साथ सुनीता को दीवाली पर मिठाई और अच्छे कपड़े भी दिए। यह सब देख सुनीता की आंखों का खारा पानी ईश्वर की आरती गा रहा था।
नायरा के कारण अंधकार में प्रकाश हुआ। आइए इस दीवाली हम भी किसी के घर के अंधकार में प्रकाश करे।