Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Piyush Goel

Tragedy

4  

Piyush Goel

Tragedy

आंसू बोलते हैं

आंसू बोलते हैं

4 mins
344


सुबह का समय था , अभिषेक को आफिस जाने के लिए देर हो रही थी , उसे अपनी घड़ी और अपना रुमाल नही मिल रहा था तब वह अपनी पत्नी को आवाज़ लगाकर कहता है

अभिषेक -"अरे शांता ! मेरा रुमाल और घड़ी कहा रखी है ? कितनी बार तुम्हे कहा है कि मेरी चीज़ों को जगह पर रख दिया करो।"

शांता -"अरे , मैं कितनी चीज़ों को संभालू ? तुम्हारी माँ तो कोई काम करती नही है , मुझे ही सारा कुछ करना ही पड़ता है , अपनी चीज़ों का ध्यान तो आप खुद रखलिया करो।"

अभिषेक -"अरे चिल्ला क्यो रही हो ? देख लूंगा मैं अपने आप।"

अभिषेक की माँ चंदा देवी कमरे से बाहर आती है , और अभिषेक को उसका रुमाल और उसकी घड़ी सौपते हुए कहती है।"

चंदा देवी -"ले बेटा ! यह रहा तेरा रुमाल और तेरी घड़ी।"

अभिषेक ( बेमन से ) -"माँ , आपको कितनी बार कहा है कि मेरी चीज़ों को छुआ मत कर , आज तो तूने मेरी चीज़ों को छू लिया पर आगे से मेरी चीज़ों को हाथ मत लगाना।"

चंदा देवी अभिषेक की बातों का बुरा नही मानती , शायद उन्हें अब इन सब की आदत ही पड़ चुकी है।" आज अभिषेक के बेटे सुमेर का जन्मदिन है और पूरा परिवार बाहर खाने जाने की तैयारी कर रहा है लेकिन चंदा देवी को इन सब के बारे में कुछ पता ही नही है , जब अभिषेक , शांता और सुमेर घर से बाहर निकलने के लिए तैयार होते है तब चंदा देवी उनसे पूछती है

चंदा देवी -"क्या हुआ बेटा ? तुम लोग आज कहि जा रहे हो ?

अभिषेक -"हा माँ ! आज सुमेर का जन्मदिन है इसलिए हम सब बाहर खाना खाने जा रहे हैं ।"

चंदा देवी -"अरे वाह , जरा थोड़ी देर रुको , मैं भी तैयार होकर आती हूँ।

शांता ( नाटकीय अंदाज़ में ) -"मम्मी जी ! अब होटल का खाना बूढ़े शरीर को कहा ही पसंद आएगा।"घर पर मैंने आपके लिए पतली दाल और दो रोटी बना दी है।" आप उन्हें खा लीजिएगा"

बहु के मुख की बात सुनकर चंदा देवी बहु के मन की बात समझ गई और झूठी मुस्कान के साथ उन सबको विदा कर दिया। जब शांता और अभिषेक होटल पहुचते है तब वह देखते हैं कि होटल बन्द हो चुका है जिसके कारण वह दुबारा घर को लौट जाते है और अपनी माँ से कहते हैं

अभिषेक -"अरे माँ , हम होटल गए थे , वो बंद था इसलिए भूखे हैं , तू तो घर पे ही पड़ी रही , हमारे लिए रोटी बना दे और अपने पौते के लिए शाही पनीर बना दियो।"

चंदा देवी -"ठीक है बेटा , बना देती हूं।"

चंदा देवी ने थकी हारी हालत में रोटियां बनाई , शाही पनीर बनाया और अपने बेटे - बहु को खिलाया। बड़ा ही स्वादिष्ट बना था लेकिन जब अगले दिन शांता ने देखा कि घर मे आटा तो बचा ही नही तब उसने अभिषेक को अपने पास रसोई घर मे बुलाया और तीखे अंदाज़ में बोली

शांता -"तुम्हारी माँ ने तो हर कर रखी है , कल सारा आटा खत्म कर दिया , अब मैं रोटी कैसे बनाऊ ?"

अभिषेक -"और नही तो क्या , कल जब हम आए तो खुद एक बार भी खाने के लिए नही पूछा, कुछ तो फर्ज होता होगा माँ का।"

शांता -"फर्ज तो बहुत सारे होते है पर तुम्हारी माँ निभाए तब ना , हर महीने लगभग दो हज़ार तो तुम्हारी माँ पर ही खर्च हो जाते हैं।"

अभिषेक -"तो क्या करूँ अब मैं , वृद्धाश्रम में भी तो नही भेज सकता , समाज के डर से।"

अभिषेक और शांता की यह सारी बाते चंदा देवी सुन लेती है और खुद ही अपना समान बांधकर अपने बेटे से कहती है

चंदा देवी -"बेटा ! मैं जानती हूं कि तू मुझसे बहुत प्यार करता है लेकिन अब मुझे इस घर से जाना होगा क्योंकि अब तुम लोगो को अपनी जिंदगी खुद जीनी सीखनी होगी।

अभिषेक ( दिखावा करते हुए ) -"यह क्या कह रही है माँ तू , हमे छोड़ तू कहाँ जाएगी।"

चंदा देवी -"जहां पर विधाता ले जाए।"

अभिषेक -"ठीक है माँ , अगर तेरी यही इच्छा है तो।"

चंदा देवी वहां से चली गई और अब वृद्धाश्रम में रहने लगी। एक दिन अचानक अभिषेक के घर कुछ लोग आ गए और उनमें से एक व्यक्ति ने कहा

व्यक्ति -"अरे अभिषेक , हमारे 30 हज़ार रुपए तू कब चुकाएगा ? इतने महीने हो गए , अगर कल नही दिए न तो इस घर पे कब्जा कर लेंगे।"

अभिषेक ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश करी लेकिन वो लोग लौट गए। जब यह बात चंदा देवी तक पहुची तब उन्होंने अभिषेक का कर्जा चुका दिया।" जब अगले दिन वो लोग नही आए तो अभिषेक को इस बात का पता चला कि उसका कर्जा वृद्धाश्रम द्वारा चुकाया गया है। इतना पता चलते ही अभिषेक तुरन्त वृद्धाश्रम जा पहुचा और अपनी माँ को गले लगाकर आंसू बहाने लगा। कोई कुछ नही बोला पर आसुओ ने बहुत कुछ बोल दिया।



Rate this content
Log in

More hindi story from Piyush Goel

Similar hindi story from Tragedy