छोटी सी चोट
छोटी सी चोट


एक बार की बात है सम्राट वंश अपने दरबारियों के साथ चर्चा कर रहे थे कि हमारे राज्य में हर बच्चा हमारे जैसा हो। हमने देखा है कि हमारे राज्य के बच्चे हल्की सी ही चोट में ही रोने लगते है और इसी कारण हम थोड़े से चिंतित रहते है इसलिए हमने निश्चय किया कि अब से जो भी ऐसा करेगा उसे दंड दिया जाएगा।
महाराज वंश अपनी बात पे अटल थे उन्होंने न जाने कितने बच्चों को मृत्यु दंड दिया। जब प्रजा ने ये सब देखा तब प्रजा चिंतित हो उठी। सम्राट वंश सिर्फ एक इंसान की बात मानते थे वो थे सम्राट वंश के गुरु - गुरु विश्वानन्द। सभी प्रजा राजगुरु विश्वानन्द के घर पहुँची और उन्हें समस्त घटना कर्म के बारे में बताया। गुरु बोले - " तुम सब की तरह में भी चिंतित हूँ मैं क्या कर सकता हूँ ?" प्रजा का एक सदस्य बोला - " हे राज गुरु आप एक बार जाकर राजा को समझाइए।" राजगुरु ने कहा में एक बार जा के सम्राट को समझाने की कोशिश करूंगा। प्रजा की बात मानकर राजगुरु सम्राट को समझाने की कोशिश करते है। परंतु सम्राट उनकी बात को नज़रअंदाज़ कर देते है।
लाख कोशिशें करने के बाद भी सम्राट राजगुरु की बात नहीं मानते। राजगुरु हार मान लेते है पर तब राजगुरु विश्वानन्द प्रजा को एक युक्ति बताते है जिस युक्ति से राजा को अपनी भूल का एहसास हो सके।
एक दिन राजा की शाही यात्रा निकल रही थी। उस वक्त राजा ने देखा कि एक बालक रो रहा था। राजा ने पूछा - "बालक ! तू क्यों रो रहा है" ?। बालक ने कहा की मेरे पैर में चोट लगी है इसलिए मैं रो रहा हूँ। राजा को यह सुन के क्रोध आया और उसने उस बालक को दंड देने के लिए अपनी गोद में बिठा लिया तब बालक ने उस राजा को काट लिया जिससे उस राजा को दर्द हुआ । और राजा चीख पड़ा तभी उस शिशु ने पुनः राजा को काट लिया जिससे राजा के अंग से खून आ गया और तुरन्त राजा ने राज वैदय को बुलाया। यह देख प्रजा में आक्रोश आ गया और प्रजा ने राजा से कहा - " आप खुद तो एक शिशु के काटने से वैद को बुलाते है और हमारे बालकों को चोट लगने पर मरवा देते है।" यह सुनकर राजा को भी प्रायश्चित हो गया। राजगुरु वही खड़े मुस्कुरा रहे थे जिसे देख राजा समझ गए कि यह राजगुरु की ही योजना थी।