Ratna Sahu

Romance

4.7  

Ratna Sahu

Romance

ना प्यार ना ही पगार

ना प्यार ना ही पगार

5 mins
455


"अभी ना जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं।" पतिदेव सुबह-सुबह मेरा हाथ अपने हाथों में लिए गाना गा रहे थे। मैंने हाथ छुड़ाते हुए कहा, "अरे छोड़िए, चाय-नाश्ते का समय हो रहा है, मैं किचन में जाऊं। आप भी जाकर फ्रेश होइए नहीं तो ऑफिस के लिए देर हो जाएगी।"

 

पतिदेव मुझे अपनी बाहों में लेते हुए कहा, "अरे छोड़ो जानेमन! आज तुम्हारे किचन और मेरे ऑफिस दोनों की छुट्टी। आज ब्रेकफास्ट से लेकर लंच और डिनर सब बाहर ही करेंगे। आखिर 3 साल की शादीशुदा जीवन में पहली बार हम दोनों घर में अकेले हैं तो इसका फायदा उठाना ही चाहिए। तो आज कोई काम नहीं। आज बस हम-तुम एक कमरे में बंद हो और........।"

और मैं हंसते हुए पति के गले लग गई। तभी कानों में आवाज सुनाई पड़ी। "रचना! अरे रचना! उठो। आज तो बहुत लेट हो गया। देखो 7:30 बज गए। तुमने जगाया भी नहीं, कितना सोती हो यार?"

 

मैं हड़बड़ाते हुए उठ कर बैठी और सोचने लगी, ओह! तो मैं सपना देख रही थी। कितना रोमांटिक सपना था। काश! कभी सच भी हो जाता।

तभी पतिदेव फिर बोले, "अरे! बैठी रह गई। जल्दी से मुझे चाय दो? दिन में सोती हो, रात में सोती हो फिर भी तुम्हारी नींद नहीं पूरी होती है? मम्मी बिल्कुल सही कहती है कि तुम बहुत सोती हो।"

 

"अरे! आप कितना बोलने लगे? मैं कितना सोती हूं? रात में 2 बजे सिया उठ गई थी। तब से खेलते खेलते 4 बजे के आसपास वो सोई तो मैं भी सो गई साथ में। अलार्म लगाई थी पर आंख नहीं खुली। आप कभी इसके साथ सोएंगे तो पता चलेगा। लेकिन आप तो दूसरे कमरे में आराम से सो जाते हैं। फिर आपको कैसे पता चलेगा कि रात को यह कितना परेशान करती है? कितनी बार जगती है?"

"अच्छा ठीक है। छोड़ो यह बातें अभी, फटाफट मेरे लिए नाश्ता बना दो।"

 

"हां, जा रही हूं।" बोल मैं किचन में गई।

गैस पर एक तरफ चाय और दूसरी तरफ सब्जी चढ़ाकर आटा गूंथने बैठी कि बेटी उठ गई। मैं झटपट उसे उसे हॉल में बिठाकर टीवी ऑन कर दिया और सारे खिलौने भी पास में रख दिए। फिर पराठा सेंकने लगी। अभी थोड़ा पराठा सेंकना बाकी ही था कि बेटी जोर-जोर से रोने लगी। उसे भूख लगी थी। पराठा छोड़, उसके लिए दूध गर्म करने लगी। इतने में पतिदेव बाथरूम से नहाकर टॉवल लपेटते हुए बाहर निकले, "अरे रचना! मेरे कपड़े, रुमाल, मोजे सब निकाल दिया? और हां, मेरा टिफिन पैक है? मेरा नाश्ता जल्दी से टेबल पर रख दो।"

दूध का बॉटल बेटी को पकड़ाते हुए मैंने कहा, "हां, सब तैयार है बस आपके खाने के लिए दो पराठा सेंकना बाकी है। जब तक आप कपड़ा पहनेंगे मैं सेंक दूंगी।"

इतना सुनते ही पतिदेव नाराज हो गए, "अरे यार! तुम कितना स्लो हो? अभी तक नाश्ता नहीं बना। मम्मी सही कहती थी कि तुम बहुत धीरे-धीरे काम करती हो, आलसी और कामचोर हो। तब मैं बेकार में तुम्हारी साइड लेकर मम्मी को खामखा चुप करा देता था। अब सब समझ में आ रहा है।"

 

पति की बात सुन मुझे, इनके साथ सास पर भी बहुत गुस्सा आया लेकिन घर से निकलते समय किच-किच करना सही नहीं लगा और मैं चुप रही। वो भी बिना नाश्ता किए, झुंझलाते हुए ऑफिस के लिए निकले।

मेरी शादी को 3 साल हो गए, एक बेटी की मां हूं। शादी के बाद से सास-ससुर के साथ रह रही हूं। ससुर जी अच्छे हैं पर सास कभी-कभी ताना मार देती है। एक साथ कई काम बता देगी फिर बोलेगी कितना धीरे काम करती हो, आलसी और कामचोर हो। मुझे गुस्सा आता है पर उनकी बातों को ध्यान नहीं देती हूं। हफ्ते भर पहले वे देवरानी के पास गए हैं रहने के लिए। तब मुझे खुशी हो रही थी कि सास ससुर नहीं रहेंगे फिर हम दोनों पति-पत्नी बहुत प्यार से रहेंगे लेकिन यहां तो उल्टा हो रहा है। जब से दोनों गए हैं हम दोनों में रोज किसी-न-किसी बात को लेकर खटपट हो रही है। सुबह की बात सुनकर तो मूड ऑफ हो गया।

 

आज कोई काम करने में मन नहीं लग रहा। बार-बार पति की कही बातें याद आ रही है, बहुत गुस्सा आ रहा है। शाम में जब पतिदेव ऑफिस से आए तो मैं उनके बोलने से पहले ही एक कप चाय बना कर दे दी। उन्होंने कहा, "अरे! तुम अपने लिए चाय क्यों नहीं ली? ले आओ हम दोनों साथ में पीते हैं।"

"मैं एक ही कप चाय बनाई। दो कप बनाती तो ज्यादा समय लगता और मैं तो बहुत स्लो हूं, धीरे-धीरे काम करती हूं। आलसी और कामचोर हूं।"

"अरे यार! क्या तुम भी सुबह की बात को लेकर अब तक नाराज हो। अच्छा, इसमें से आधी चाय ले लो और पास बैठो बातें करते हैं।"

"मुझे नहीं बैठना आपके पास और न ही चाय पीनी। मैं जा रही हूं रात के खाने की तैयारी करने।"

पति ने हाथ पकड़ते हुए कहा, "थोड़ा समझने की कोशिश करो ना। ऑफिस से थका हुआ आया हूं थोड़ा प्यार से तो बात करो। सुबह ऑफिस जाने में देर हो जाती तो बॉस की डांट पड़ती। अभी एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूं अगर वह सक्सेस रहा तो प्रमोशन भी मिल जाएगी और पगार भी बढ़ जाएगी।"

 

"आप ऑफिस में काम करके थकते हैं पर क्या मैं दिन भर घर में काम करके नहीं थकती हूं? क्या मुझे प्यार की जरूरत नहीं है? पहले मम्मी सुनाती थी अब आप सुनाते हैं। आप काम करते हैं तो आपको प्रमोशन, पगार और मम्मी-पापा का प्यार भी मिलता है पर मुझे? मैं तो कितना भी काम कर लूं एक तारीफ के बोल नहीं निकलते किसी के मुंह से प्यार तो दूर की बात है। मैं तो प्यार और पगार दोनों से गई।"

"अच्छा तो तुम्हें घर के काम करने के पगार चाहिए?"

"अरे नहीं, यह तो सिर्फ कहने की बात थी। पगार नहीं लेकिन तारीफ के दो बोल, थोड़ा प्यार तो मिलना चाहिए कि नहीं। वह तो पिछले 3 सालों में आप के या मम्मी के मुंह से कभी नहीं सुनी।"

 

इतना सुनते ही पति कुछ देर चुप रहे फिर बोले, "मुझसे गलती हो गई। माफ कर दो आगे से ध्यान रखूंगा ऐसा कुछ नहीं बोलूंगा जिससे तुम्हें बुरा लगे। और हां आज रात का डिनर घर में नहीं हम बाहर ही करेंगे। चलो अच्छे से रेडी हो जाओ।"

"नहीं मुझे नहीं जाना!"

"मान जाओ यार! इतनी नाराजगी भी ठीक नहीं।"

"मैंने कहा नहीं, तो नहीं!!"

"हमसे भूल हो गई... हमका माफी दै दो..!" पतिदेव के मुंह से यह गाना सुन मेरी हंसी छूट गई और मैंने कहा, "अच्छा बाबा माफ किया...!" फिर भागी मैं डिनर के लिए रेडी होने।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance