मूक प्यार
मूक प्यार
“कैसे उसके सोये भाव जगाऊँ, कहने को तो हम सभी उसके अपने हैं, लेकिन सूनी आँखों में सितारे कैसे सज़ाएँ ? हर वक्त वह जागती आँखों से स्वप्न देखती है अपनी ममता को पूर्णता प्रदान करने के लिये लोरी गुनगुनाती है। चँदा मामा को अपने पास आने कहती है, उसका लल्ला सो रहा है उसे भूख लगी होगी दूध पीने का मनूहार करती है।”
“बस बस चूप करो और ना सुन पाऊँगा, एक उसने ही नहीं लाल खोया है शहादत ने कई माँओं की कोख उजाड़ी है।आखिर कब तक वह आहें भरती रहेगी दो निवाले तो उसे खाने ही पड़ेंगे, हम सभी पूरे एक सप्ताह से ना ढंग से खाये हैं और ना ही चैन से सो पाये हैं।”
पास में बैठा शेरु उनकी बातें सुन रहा था। काश वह इंसानों की भाषा बोल पाता तो कह देता “तुम सब क्या जानो हमारी मालकिन का दुख वह तो मुझे मनुहार कर खिलाती हैं।
जानवर हूँ शायद इसी वज़ह से भैया से जलता था। भैया भी अम्मा को अपनी गोद में लेकर बादलों की सैर कराते कभी फूलवारी में मस्त पवन से बातें करना सिखाते। वर्षा रानी की रिमझिम फूहारों से संगीत सुनाते थे। अम्मा वही सब याद कर रो रही हैं।
शेरु अम्मा के कदमों में बैठा उनकी हर हरकत पर भैया के साथ बिताये पल को याद कर रहा था।
सबने कह सुन कर हार मान ली, यशोधरा किसी तरह टस से मस नहीं हुई।
शेरु अपना खाली कटोरा लाकर माँ के कदमों में रख दिया। भैया की तस्वीर भी गिरा दी। ऐसा करते देखकर यशोधरा मानो नींद से जागी “नालायक जीते जी तो उससे जलता था अब उसके जाने के बाद भी तेरी जलन शांत नहीं हो रही है काश तू मअअअ....शब्द होठों से बाहर नहीं निकल पाये, वह शेरु को गले लगाते हुए चल बहुत भूखा है तू कुछ खाना देती हूँ।”
“सभी रिश्तेदार अचंभित से मूक पशु के साथ पुत्रवत व्यवहार देख हतप्रद रह गये।
शेरु की आँखें भी भींगी हुई थी, मानो कह रहा हो “अम्मा तू चिंता मत कर स्वामिभक्ति के लिये ही जाना जाता हूँ, मेरे बहाने ही सही रोटी बनेगी पहला निवाला तुम खाओगी फिर मुझे भी देना। भैया के लिए साथ में कभी खुशी कभी ग़म के आँसू बहाऊँगा। चिंता मत कर जानवर हूँ तो क्या हुआ दिलो जान से फर्ज़ निभाउँगा।