ढीली पगड़ी
ढीली पगड़ी
सुनती हो राजू कि माँ इस बार फिर दुर्गा पूजा के दिन से लड़की वाले रिश्ते कि बात लेकर आने शुरू हो जायेंगे,इससे पहले हमें राजू के मन कि थाह लेने कि जरूरत है। पता नहीं पाँच साल हो गये नौकरी करते ,पर जब भी कहता हूँ अब घर गृहस्थी बसा लो तो एक ही जवाब देता है पापा जल्दी क्या है ? समाज मेंं आखिर हमारी इज़्ज़त है कि नहीं ; आजकल जितने मुँह उतनी बातें सुनाई पड़ती हैं।
वर्षों से अपनी पगड़ी सँभाल कर रखी है । बस किसी तरह राजू का ब्याह हो जा ये तो अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाऊँगा । हाँ जी ईश्वर कि कृपा से रानी और रुबी कि शादी मेंं आपकी पगड़ी ही नहीं नाम और इज्जत दोनों बढ़ गई। इस बार भी सब अच्छा ही होगा । अपना राजू बहुत संस्कारी है, वह बाप दादाओं कि पगड़ी संभालना जानता है।
तुम्हारे चाचा का पोता छूट्टन कब से शहर मेंं अपनी पसंद कि बहुरिया के संग रहता था। घर वालों को इ
सकी भनक तक नहीं लगी।
वो तो अचानक छूट्टन कि माँ बीमार हो गई ,और बिना बताए बेटे के पास गई तो पता चला कि छूट्टन शादीशुदा है।
और उसकी बिन ब्याही पत्नी माँ बनने वाली है।
क्या राजू कि अम्मा कहाँ कि खेती किसका बैल और कौन से खेत जोतने पहुँच गई तुम।
अचानक किसी ने द्वार खटखटाया नवरात्रि पूजन के लिये सामने बेटा को खड़े पाया। खुशी और हर्षातिरेक मेंं माथे पर हाथ चला गया । एक छोटा सा बच्चा झुककर प्रणाम करने लगा एक साथ तीन जोड़ी हाथ हर्ष और विस्मय से नजरें स्थिर और शरीर का होश नहीं। पापा नवरात्रि पर सोचा घर का कुलदीपक और बहु दोनों को देवी पूजन दिखा दूँ।
दूर कहीं से आवाज सुनाई पड़ रही थी ,ऐसा लग रहा था कि निवस्त्र बीच चौराहे पर किसी ने खड़ा कर दिया हो। शायद लीव इन रिलेशन सुने थे समाचार मेंं वही सब अब देखना बाकी है, अचानक पगड़ी गिरने लगी ।