सनसनाते बाण
सनसनाते बाण
लगातार परीक्षा के बाद अगली परीक्षा देते हुए उसके कदम शिथिल पड़ गये थे। बोझिल कदमों से घर आकर हाथ मुँह धोकर रसोई घर में गया। रसोई में बड़ी प्यारी सी खुशबू महसूस हुई। अब उसके प्रतियोगिता और परीक्षाएं कैसी जा रही हैं, घर में कोई नहीं पूछता था। पहले की तरह गर्मा गर्म रोटी खाये बरसों बीत गए। पॉकेट मनी भी कम हो गये थे। एक बेरोजगार युवक से सबने नज़रें फेर ली। वह हाथ मुँह धोकर थाली में खाना परोसने लगा।
अररे वाह, राजमा और पराठे, लगता है माँ पापा का मूड ठीक है खाना खाकर उनसे बात करता हूँ। शाम की चाय पीने सभी बैठे थे, माँ पापा और छोटा भाई। उचित समय जानकर वह पापा से मुखातिब हुआ।
“पापा बहुत भटक लिया नौकरी की तलाश में, सोचता हूँ दरवाज़े पर ही कोचिंग क्लास शुरू कर दूँ अच्छी कमाई भी होगी, एवं हमारा शैक्षणिक स्तर भी सुदृढ़ होता रहेगा।"
हाहाहा….एक बेरोजगार माता पिता के टुकड़ों पर पलने वाला युवा ….राष्ट्र निर्माता बनेगा हाहाहा….!!
तीर की तरह दिल में चुभ गया, पलट कर देखा तो भाई के साथ हँसी में माँ और पापा भी साथ दे रहे थे।
“क्या पापा आप भी अब मुझ पर हँस रहे हैं ?"
“हँसूं नहीं तो और क्या करूँ ! तुम व्यंग्य बाणों को सहने की आदत डाल लो।"
“जमाने की हँसी क्या रोक पाओगे? "
"नहीं, पापा आज आपकी पीड़ा मुझे समझ आ रही है, जब घर वालों के ताने मैं सहन नहीं कर पा रहा हूँ, तो बेरोजगार बेटे के लिए माँ पापा कितने तानों से रोज छलनी होते होंगे। सच ही कहा है किसी ने मर्द को भी दर्द होता है परंतु जताते नहीं।"
