टूटते तारे

टूटते तारे

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सुरा-सुंदरी के सौजन्य से रात मजा आ गया। पूरी रात पार्टी चलती रही। बच्चे तो पहले ही नववर्ष मनाने के बहाने डीजे नाइट्स क्लब चले गये थे। 

पत्नी गुस्सा करते हुए कमरे में चली गई थी। सभी मित्र जा चुके थे सपत्नीक अपने अपने घर। वह सोफे पर निढ़ाल हो कर लेट गये। प्यास से गला सूख रहा था। गले में ऐठन शुरु हो गई थी।आँखें अधखुली बार-बार दरवाज़े की ओर देखने का असफल प्रयास कर रही थी। काश बच्चों एवं पत्नी की बात मान कर देर रात्रि पार्टी का आयोजन नहीं करते। खुद पर हँसी आ रही थी ,लेकिन आँखों की कोर से लगातार आँसू लुढ़क कर गिर रहे थे। आँतें बाहर निकलने को बेताब थी। शायद पार्टी और डाँस के जुनून में हमने होश खो दिया। हाँ हाँ खाना तो हमने छुआ ही नहीं। सिर्फ अल्कोहल और पराई-नारी की सुंदरता में उलझे रहे रात भर। "हेएएए भगवान ; लगता है...सुबह होने के बदले सुर्यास्त हो रहा है।काश अपनी आयु अपनी पत्नी की बातों का मान रखा होता। "

चेतना शायद लुप्त होने लगी थी आश्चर्य ! ये नींबू पानी कौन मुझे पिला रहा है ! मयूरी हाँ शायद मयूरी ही है जिसे कल रात मेहमानों का ख्याल रखने के लिये किराये पर रखा था। 

तभी किसी ने उनके सिर अपनी गोद में रख कर तौलिए से चेहरा साफ करने लगी। जिसे दासी समझ कर हिकारत भरी नज़रों से देखता था वह तो देवी निकली। हाथ खुद बखुद माफी के लिए जूड़ गये। "मैं तो डूबता सितारा हूँ, ओझल होने से पहले क्या मुझे अपनी देवी से माफी मिलेगी ?"


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