आरती राय

Tragedy

2.3  

आरती राय

Tragedy

खिलवाड़

खिलवाड़

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दीपावली पूजन कर सारे घर को सजा कर बालकनी से बाहर का मनोरम दृश्य देखने में मगन हो गई। फुर्सत के पल मिलते ही अतीत चुपके से बिना दस्तक दिये हलचल मचाने लगता है यह किसी को कहाँ समझ आती है।

महत्वाकांक्षाओं की सीढ़ी चढ़ते उसे काफी थकान हो गई थी। बेहतर पोस्ट क्रमबद्ध तरक्की कुल मिला कर जिंदगी रौशन लग रही थी। पति पत्नी दोनों एक ही ऑफिस में काम करते थे। मालिनी की डबल तरक्की हुई ; उसे ऑफिस से ट्रेनिंग के लिये विदेश जाने का अवसर मिला दुसरी ओर माँ बनने के लक्षण भी महसूस हुये।

ओहह माँ तो बाद में भी बन सकती हूँ इतना बेहतरीन अवसर हाथ से नहीं जाने दे सकती हूँ। उसने गर्भपात के लिये कई तरह की दवाइयों का सेवन की। पर मारने वाला से बड़ा बचाने वाला होता है। उस नन्हीं सी जान को इस दुनिया में आने से रोक नहीं पाई। माँआआआँ …...ओहह पता नहीं कितनी देर से किशोर मुझे पूकार रहा है। भागते हुए उसके कमरे तक पहुँची।

वह बिस्तर से नीचे गिरा हुआ था उसके सारे वस्त्र गीले हो गये थे। लंबे इलाज के बाद अब जाकर सिर्फ माँ बोलना ही सीख पाया था। किशोर अब सचमुच किशोरावस्था में पहुंच रहा था। किसी तरह उसके कपड़े बदलवा कर फिर बिस्तर पर लिटा दी। पतिदेव का अपने कंधे पर दवाब महसूस कर आँखें पोछने लगी।

"कहाँ खोई हो ? किशोर तो आराम कर रहा है। काश तुम थोड़ी समझदारी दिखाई होती।"


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