नशापाश
नशापाश
एक मात्र लत और वह भी जानलेवा,
दो घूँट की लत ऐसी लगी कि मौत की आगोश ने जकड़ लिया।
चिंता की चिता में स्वयं को भष्मिभूत करते हुए कब अपनी होश खो बैठा कुछ पता नहीं चला। एक लंबी मुर्छा के बाद शायद उसकी चेतना जग रही थी।
पास ही माँ, पत्नी और बच्चों की आवाज आ रही थी पर होश किसे था कि वह कौन है और कहाँ है ?
कई महीनों की जद्दोजहद के बाद पता चला था कि वह कुछ ही दिनों का मेहमान है। समझ में नहीं आ रहा था कि किसके भरोसे अपना भरा पूरा घर छोड़कर इस दुनिया से विदा ले।
एक बुरी आदत बिल्कुल गीली लकड़ियों की तरह सुलग रहा था।
अरे ! ये कोई सपना है या हकीकत, दिल से आवाज जैसे हो निकली, "माँ"
"हाँ मेरे बच्चे आज एक बार फिर तुझे जन्म दी हूँ तेरा ऑपरेशन सफल रहा। कब तक मुझसे अपनी बुराइयों को छिपाता देखो कितनी देर हो गई। तेरी इन बुरी आदतों की वजह से स्त्रीधन का हवन मुझे और तेरी पत्नी को करना पड़ा।"
कई जन्म भले ही क्यों ना लेना पड़े तुझे जिम्मेदारीयों से आसानी से मुक्त नहीं होने दूँगी।”
चाहकर भी शर्म से आँखें नहीं खुल पा रही थी शायद थोड़ी सी शर्मोहया अभी बाकी थी। फिर भी चारों ओर रंग बिरंगी मनभावन पेय उसकी आँखों के आगे नाचने लगे। अब और नहीं पुनर्जन्म यूँ ही मात्र नशे की वज़ह से व्यर्थ ज़ाया नहीं करुँगा।इस संकल्प के साथ उसने आँखें खोली। माँ एवं पत्नी के सिवा अब कुछ नज़र नहीं आ रहा था।
"उठो बेटा।"
वाहह… इस प्यार से बढ़कर कुछ भी नहीं।
