बदलती बयार

बदलती बयार

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आज एक बार फिर अंशु बरसों बाद खुद दो राहे पर खड़ी थी । अपने और अपनी प्यारी बेटी बुलबुल के लिए फैसला लेने के लिये खुद को कटघरे में खड़ा पा रही थी ।अपनी मर्जी से अपना जीवन संवारने की इच्छा फिर राह में काँटें बिछा चुका था । प्रेम विवाह की शर्त ही थी कि तुम्हें हमारे माता पिता की बात माननी होगी ।

अंशु एक घर से निकल कर बेघर होने के बाद का दर्द सालों झेली थी । 

दूसरी बार माँ बनने वाली थी और जबर्दस्ती गर्भ परिक्षण करवाया गया और अब भ्रूण हत्या के लिये अंकित भी दबाव दे रहे थे । तुम्हीं सोचो अंशु दो दो बेटियों की पढ़ाई लिखाई फिर उनका शादी ब्याह आखिर हमलोग सुख के दिन कब देखेंगे ।बेटियाँ ब्याह कर चली जायेगी ,बुढ़ापे का कोई सहारा तो चाहिए ।

और चिंता में घिरी अंशु एक बार फिर अपने बचपन को याद करने लगी ।बचपन माता पिता के साथ बिताए पलों को याद करने लगी।

कई दिनों से अंशु खामोश थी ,उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी शिक्षा का मार्ग कैसे प्रशस्त करे ।दो साल से इंटरमीडिएट और मेडिकल की तैयारी में घर परिवार से दूर रहकर डॉ . बनने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही थी ।   मेडिकल परीक्षा के परिणाम आ गये थे , उसका चयन हो गया था पर उससे तीन साल बड़े भाई आकाश का रैंक बहुत नीचे था । अब माँ पापा और ताऊ जी सभी आकाश के भविष्य में बाधक अंशु की पढ़ाई को समझ रहे थे ।

माँ बड़े प्यार से मीठी मीठी बातों से अंशु को भ्रमित कर रही थीं । बेटी मेरी मजबूरी को समझो , तेरे पापा की उतनी आमदनी नहीं है कि तेरे और तेरे भाई दोनों की मेडिकल फीस का भार छह सालों तक वहन कर सकें । फिर तेरी शादी के लिये दहेज भी तो चाहिए ,तुम अंग्रेजी से ग्रेजुएशन कर लो फिर आकाश को डोनेशन देकर मेडिकल कॉलेज में नामांकन करा देते हैं । अंशु की आत्मा विद्रोह कर रही थी , ये कैसा प्यार है ? बेटी सफलता की राह पर निकल चूकी थी पर अब उन रास्तों पर चलने नहीं दिया जा रहा था ।

एक तरफ भाई के लिए चालीस लाख डोनेशन को तैयार ,दुसरी ओर अपनी ही संतान को सामान्य ग्रेजुएट बनाने की कोशिश ।

सुबह से सब समझाने आ रहे थे,अंशु मुझे सोचने का समय दो , कहकर खुद अपने आपको कमरे में बंद कर ली । भईया जा रहे थे पर आज अपने ही भाई को विदा करने कमरे से बाहर नहीं निकली । 

शाम के समय अंशु अपनी अटैची लेकर कमरे से बाहर निकली , सभी उसके बदले तेवर से आश्चर्य चकित थे । उसने ताऊ जी और माँ के पैर छुए और बोली “ मैं भाग कर नहीं जा रही हूँ मुझमें हौसला है , हौसले के पंखों पर सवार होकर मैं खुद अपने लिए मार्ग प्रशस्त करूँगी । 

और मैंने ऑनलाइन तत्काल टिकट भी ले लिया है । अब मैं आप सभी की बात मानकर अंग्रेजी ऑनर्स में ही एडमिशन लेने का फैसला लेने में मेरे आत्मसम्मान ने स्वीकार नहीं किया । 

अब मैं पार्टटाइम ऑन लाइन काम भी करँगी ,जरूरत पड़ी तो शिक्षा के लिए बैंक से शिक्षा ऋण भी लूँगी । आगे आप सबको हमारी जिंदगी के फैसलों से वंचित करती हूँ । दुनियाँ बहुत बड़ी है और मैं अब खुद को संभाल सकती हूँ , कल ये मत कहना कि अंशु आवारा हो गई ।मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें कहते हुए झटके से अपने कदम बढ़ा ली ।

तभी सोच को अचानक विराम लगा जब अंकित कमरे की लाइट ऑन किया । 

क्या सोच रही हो अंशु ! कुछ नहीं मैं माँ हूँ और मैं अपने होनेवाली संतान को पिछले चार महीनों से महसूस कर रही हूँ , एक बार मुझे माता पिता की मर्जी के खिलाफ फैसले लेने पड़े थे आज लगता है पुनः कड़े कदम मुझे उठाने पड़ेंगेक्या मतलब है तुम्हारा ; मतलब कुछ नहीं अंकित आप तय करें कि आपको पारिवारिक सुख आज चाहिए कि वंशबेल बढ़ाने की चाहत है । 

तुम समझती क्यों नहीं ...लगता है तुम्हें तुम्हारी औकात दिखानी पड़ेगी । अचानक अंशु उठकर फोन लगाने लगी ; हेलो पुलिस स्टेशन जी “ मैं अंशु स्मिता बोल रही हूँ मेरी जान को ख़तरा है आप आ जाइए ।

ये क्या बत्तमीजी है ; अरे आपने मेरी बत्तमीजी देखी कहाँ है कहते हुए बुलबुल को अपने गोद में उठाये बाहर निकल गई ।

जाते जाते कहती गई अगर प्यार परिवार और पत्नी एवं बेटीयों का साथ चाहिए तो मुझे रोकना ,वरना तलाक के नोटिस का इंतजार करना ।

अंशु सधे हुए कदमों से बाहर निकल रही थी भले ही कदम नपे तुले थे पर सोच बेलगाम हो रही थी ।

बुलबुल का हाथ मजबूती से थामकर बोली बेटा तेरी माँ अब तुझे अग्निपरीक्षा की आग में नहीं झोंकेगी । 


 



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