ब्रह्मभोज
ब्रह्मभोज
वर्षों बाद उस टूटे घर में एक दीप जला देखकर सभी आश्चर्य और कौतूहल से गृह स्वामी को ढ़ूँढ़ने लगे।
लगता है माँ का बिना श्राद्ध किये भागने वाला भगोड़ा आया है।
“ अररे ; आप आशीष भैया हैं ना !! आप तो बहुत बड़े फिल्म स्टार हैं, यहाँ कैसे आना हुआ ?"
“हाँ वक्त और फर्ज ने राह सुझाई और हम चल पड़े।”
तभी किसी ने कहा ; आया है गाँव तो उसके खाने पीने और सोने का इंतज़ाम करो, सालों से बंद परे घर में कैसे सोयेगा ?"
सबको जानने की इच्छा थी, वो मनहूस रात जब यह माँ की लाश को छोड़कर ग़ायब हो गया था।
पूरे गाँव वाले मिल कर उसके वीरान घर को साफ करने में मदद करने लगे।
"अच्छा भैया आप चाची को छोड़कर कहाँ चले गये थे ?"
“माँ की अंतिम विदाई के लिये पैसे का इंतज़ाम करने।"
“हाँ आप लगभग चार पाँच घंटे बाद लौट आये थे।"
“माँ हमेशा कहा करती थी, जब सारे रास्ते बंद हो जायें तो भी प्रयास मत छोड़ना।"
“मेरे घर में माँ के अंतिम संस्कार के लिये पैसे नहीं थे, गुमसुम बैठा रो रहा था। सामने से निकाहनामे के बाद दुल्हन को लेकर बारात लौट रही थी।"
“ बारात में बैंड बाजे के बीच अपनी पीड़ा चंद पलों के लिए भूल कर नाचने लगा,खुशी और उत्साह में ढेरों पैसे निछावर किये गये।
सभी वाह वाह कर उठे ; तेरे नृत्य में समर्पण है,एक अजीब बेचैनी और जुनून है, क्या तुम हमारे साथ चलोगे ?
नहीं चाहते भी मेरी आँखों से आँसू निकल आये, और बता दिया कि माँ की लाश घर में छोड़ कर पैसों के लिए नाच रहा हूँ।"
" उनका नाम असगर भाई था, उन्होंने मुझे दो हजार रुपये और अपना कार्ड दिये, माँ का अंतिम संस्कार करने के बाद पीछे मुड़ ना उचित नहीं लगा।
बढ़ चला एक नई मंज़िल की तलाश में। असगर आर्केस्ट्रा लाइट एंड साउँड डीजे में नौकरी मिल गई। ब्रह्म भोज बाकि था, वही ऋण चुकाने के लिये संघर्ष के दिनों में शक्ति मिलतीअचानक खुसूर-फुसूर होने लगी, "तुम्हारा दीन-ईमान सब खराब हो गया है। चुपचाप वापस लौट जाओ, दूसरे धर्म के लोगों के साथ रह कर कमाये हुए धन से माँ का ब्रह्मभोज करने आये हो ? हम गाँव वाले थूकते हैं ऐसे भोज को।"
"हूँऊऊ उस दिन पूरे गाँव वाले मिल कर भी मेरी माँ के दाह संस्कार का इंतज़ाम नहीं कर पाये थे काश उस दिन आप सब हमारी माँ का संस्कार अगर किये होते तो शायद मैं आपकी बात मान लेता। कुल- गोत्र तो बहुत पहले भूल चुका हूँ, इंसान हूँ इंसानियत के नाते वापस लौटा हूँ,ब्रह्मभोज करने।"
