मुस्कुराहट
मुस्कुराहट
अपनी ज़िंदगी का 48वाँ बसंत देख चुकी सविता जी हाथों में चाय का कप लिये खिड़की पर खड़ी सोच में डूबी थीं। आज वो कुछ अनमनी सी भी दिखाई दे रही थीं, बदलते मौसम से वायरल फीवर था, स्कूल से भी छुट्टी ले ली थी। ये तबीयत खराब होने की वजह से था या उनके पड़ोसी राजीव गुप्ता के प्रस्ताव के कारण, उन्हें खुद समझ नहीं आ रहा था।
सविता वर्मा एक अच्छी और नेकदिल महिला हैं। वो लगभग 22-23 बरस की थी जब परिवार से बगावत करके दूसरी जाति के लड़के से प्रेम विवाह किया था, समाज और परिवार के नियम तोड़ने की सजा के रूप में उनके मायके वालों ने उनसे सभी प्रकार के संबंध तोड़ दिये थे।जिस घर में नई नवेली दुल्हन बनकर आई थीं, उस घर ने भले उनको रहने के लिये छत दे दी थी, पर कभी भी उन्हें मन से स्वीकार नहीं किया। दोनों पति पत्नि एक प्रायवेट स्कूल में शिक्षक बन गये। शादी को एक साल भी नहीं हुआ था कि सविता जी के पति अनमोल वर्मा की एक रोड़ दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
ससुराल वालों ने इस दुर्घटना का सारा दोष सविता जी और उनकी किस्मत को दिया। नई बहू पसंद तो वैसे भी नहीं थी, अब बेटे की मौत ने उनके गुस्से को और बढ़ा दिया था, उन लोगों ने सविता जी को अशुभ बोलकर घर से निकाल दिया था।
जमाना चाहे चाँद तक पहुँच जाये पर औरतों की स्थिति हमेशा खराब ही रहेगी। कहने को तो हम आधुनिक हैं, पढ़े लिखे, आज़ाद ख्याल हैं, फिर भी ये समाज क्यों हर बार औरत को ही निशाना बनाता है, कैसे किसी के शुभ-अशुभ होने पर उनके प्रियजनों की मौत हो सकती है।
मायका तो पहले ही छूट चुका था, अब ससुराल से भी निकाल दिया गया था। सविता एक सूटकेस में अपने कपड़े, अनमोल की तस्वीरें और एक जैकेट लेकर वो घर छोड़ आईं। बीतते समय के साथ उनका दर्द और तकलीफें कम होनें लगीं थीं। उनकी मेहनत और लगन की बदौलत उन्होनें शिक्षिका के रूप में सरकारी नौकरी प्राप्त कर ली और आज जो उनका घर है वहाँ शिफ्ट हो गईं।
दूसरी ओर राजीव गुप्ता रेलवे कर्मचारी हैं। वे दसवीं कक्षा में थे जब उनके पिता बिजली के टूटे तार की चपेट में आने से करंट लगने से मर गये थे। घर में सबसे बडे थे, तो माँ और तीन भाई बहनों की जिम्मेदारी उनपर ही आ गई थी। राजीव ने जिम्मेदारियों के बोझ में दबकर दसवीं के बाद आई टी आई डिप्लोमा करके रेलवे में नौकरी पा ली। घर का खर्चा, भाई बहनों की पढ़ाई, कपडे और कभी ना खत्म होने वाली फरमाहिशें.....। बाद में सबकी शादी और माँ की दवाईयाँ, इन सब में उलझे राजीव को अपनी शादी का तो ख्याल ही नहीं रहा।
जिन भाई बहनों के लिये उन्होनें कम उम्र में काम करना शुरू किया था, जिनकी बेहतरी के लिये खुद शादी नहीं की थी कि कहीं उनकी पत्नी घर में पैसा देने से ना रोक दे, वे सभी भाई बहन शादी होने के बाद अपने परिवारों में इतने व्यस्त हो गये थे कि त्यौहारों पर भी फोन करके हाल-चाल नहीं पूछते थे। आखिरी बार सभी भाई बहन 8 साल पहले तब इकट्ठे हुये थे, जब उनकी माँ का स्वर्गवास हुआ था। तब से आज तक कोई फोन नहीं आया था।
52 साल के राजीव कभी कभी तो झल्ला जाते थे, क्यों उन्होनें अपने बारे में नहीं सोचा था। फिर खुश भी हो जाते हैं कि उनके भाई बहन मानें या ना मानें पर भगवान जानता है कि उनकी खुशियाँ और ऐशोआराम राजीव के त्याग के कारण ही हैं।कोरोनाकाल में जब कहीं भी बाहर आने जाने पर रोक लग गई थी, तब सविता और राजीव जी दोनों ही अकेलेपन से तंग आ चुके थे। घर में पसरा सन्नाटा खाने को दौडता था।
एक दिन सविता बीपी लो होने के कारण सीढ़ियों से गिर पड़ी थीं। राजीव जी की बालकनी से सविता का आँगन साफ दिखता है, उन्हें आँगर में गिरा देखकर राजीव जी दौड़कर उनके घर पहुँचें। राजीव जी ही उनको लेकर अस्पताल गये थे। राजीव जी ने सविता के खाने पीने से लेकर दवाईयों और आराम बहुत ख्याल रखा था। धीरे धीरे दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद आने लगा था। सुबह का नाश्ता, शाम की चाय और कभी कभी डिनर भी साथ ही करते थे।
किसी भी रिश्ते में दर्द का रिश्ता सबसे बड़ा होता है और इसी दर्द और अकेलेपन ने राजीव और सविता को एक दूसरे से बाँध दिया था। अब वो एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानने लगे थे। दोनों साथ में किताबें पढ़ते, कैरम-लूडो खेलते और जगजीत सिंह की गज़लें सुनते। ज़िंदगी में पहली बार राजीव जी को किसी से निस्वार्थ प्रेम प्राप्त हो रहा था।
एक दिन राजीव जी ने सविता के सामने विवाह प्रस्ताव रखा। पहले तो सविता मजाक समझकर हँसनें लगीं थीं, पर जब उन्हें पता चला कि राजीव जी गंभीर हैं तो पहले तो वो बहुत गुस्सा हुईं। राजीव जी के समझाने और अपने प्यार का यकीन दिलाने पर ना जाने क्यों उनकी रूलाई फूट पड़ी। वो कहने लगीं -
- "मुझे आपका साथ पसंद है, लेकिन मैं आपसे शादी नहीं कर सकती। समाज-परिवार क्या कहेगा?"
- "सविता, किस समाज और परिवार की बात कर रही हो? वो जिसने पिछले 25 सालों में एक बार भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि तुम ज़िंदा भी हो या नहीं। कल बुढ़ापे में कोई नहीं होगा जो तुम्हारे बीमार होने पर एक कप चाय बनाकर दे, जब तुम किताब पढ़ते पढ़ते सोफे पर सो जाओ तो कोई नहीं होगा जो तुम्हें कंबल उढ़ा जाये। मैं तुम्हारे लिये ये सब करना चाहता हूँ, अगर तुम्हें स्वीकार हो तो।"
- "लेकिन अगर मेरी मनहूसियत के कारण तुम भी अनमोल की तरह.......।" - कहते कहते सविता रूक गई।
- "मैं नहीं मानता उस हादसे में तुम्हारा कोई दोष था। एक अकेले तुम्हारी किस्मत कैसे अनमोल का बुरा कर सकती थी। अनमोल के माता पिता की किस्मत , उसकी खुद की किस्मत और अच्छे कर्म उसे क्यों नहीं बचा पाये? सविता समझने की कोशिश करो, उन लोगों ने तुम्हें कभी अपनाया ही नहीं था, इसलिये एक बहाना बनाकर तुम्हें घर से निकाल दिया था।" - राजीव ने संजीदा होते हुये कहा।
( सविता लगातार रोये जा रही थी। )
- " सविता, प्रेम कभी उम्र, जाति धर्म देखकर नहीं होता, तुमसे बेहतर ये कौन समझ सकता है। मुझे भी प्रेम हो गया है तुमसे। जवानी का प्रेम जहाँ दैहिक आकर्षण और आर्थिक आधार पर होता है, मेरा ये अधेड़ उम्र का प्रेम आत्मीय है, पवित्र है। मुझे बस कोई चाहिये जो कुछ सालों बाद मेरे काँपते हाथों को थाम सके। तुम सोच लो, मैं तुम्हारे फैसले का सम्मान करूँगा। - ये कहकर राजीव जी सविता के घर से चले गये।
सविता खिड़की से बाहर झाँकते हुये यही सोच रही थी कि क्या कहा जाये, क्या इस उम्र में शादी सही फैसला होगा?
वो उठकर अंदर आईं, अपना मोबाईल हाथ में लेकर एक नंबर डायल किया, दूसरी तरफ से फोन उठते ही सविता ने मुस्कुराते हुये कहा - "ज़िन्दगी की सैकेण्ड इनिंग के लिये मैं तैयार हूँ। पर वादा कीजिये आप अनमोल की तरह मुझे बीच में ही अकेला छोड़कर नहीं जायेंगें। "