परिवार का महत्व
परिवार का महत्व
शालिनी जरा सी बात पर अपने पति से झगड़ कर अपने मायके आ गई थी। शालिनी और राघव का एक सात साल का बेटा शिव था, जब से शिव की मम्मी उसके पापा से लड़कर उनसे अलग रहने आई थी, तबसे शिव एकदम गुमसुम रहने लगा था। शुरू में तो उसे लगा था कि बस कुछ दिनों की बात है, जैसे ही मम्मी का गुस्सा शांत होगा वो पापा के पास चली जायेंगीं। लेकिन ना शालिनी का गुस्सा कम हुआ, ना राघव उसे मनाने आया। पति पत्नि की लड़ाई इतनी बढ़ गई थी कि पिछले चार महीनों से शालिनी मायके में ही रह थी और दोनों ने तलाक के लिये भी आवेदन कर दिया था। जब से शिव को मम्मी -पापा के तलाक की बात पता चली थी तबसे उसकी शैतानियाँ, बेफिक्र खिलखिलाती हँसी, मासूम बचपना सब खत्म हो गया था, माँ-पापा की लड़ाई ने उसे वक्त से पहले बड़ा कर दिया था।
शालिनी के मम्मी पापा उसे समझा-समझाकर थक गये थे कि शिव के दिमाग पर गलत प्रभाव पड़ रहा है, बच्चे के भविष्य और मानसिक विकास के लिये माता-पिता दोनों का साथ, दोनों का प्यार चाहिये। लेकिन ना जाने किस बात का घमंड था शालिनी कुछ सुनना-समझना ही नहीं चाहती थी। शालिनी के लगता था कि वो अकेले अपने बेटे को पाल सकती है, वो आज की औरत है, पढ़ी-लिखी नौकरीपेशा महिला है उसे अपने बच्चे को पालने के लिये मर्द की जरूरत नहीं है।
लेकिन क्या ये सही था? क्या पैसे कमा लेने से या पढ़-लिख लेने से परिवार का महत्त्व खत्म हो सकता है? अगर ऐसा होता तो परिवार नामक व्यवस्था तो कब की खत्म हो गई होती। लेकिन ये आज कल के युवा ना जाने किस गुमान में रहते हैं, अपनी सभ्यता-संस्कृति सब भूलते जा रहे हैं। ये क्यों नहीं समझते कि आपकी काबीलियत परिवार संभालने में है, अपने बच्चों को बेहतर जिन्दगी देने में है, एक खूबसूरत समाज की रचना करने में है। यही तो वो गुण है जो इंसान को पशुओं से अलग बनाते हैं, नहीं तो पेट तो वो भी भर ही लेते हैं।
एक दिन शालिनी की माँ अपनी बेटी ओर दामाद को नशा मुक्ति केन्द्र लेकर गईं, उन्होनें वहाँ की डॉक्टर जो उनकी सहेली भी थी, से पहले ही बात कर ली थी। वहाँ कई नाबालिग किशोर लड़के -लड़कियाँ भर्ती थे। शालिनी की माँ ने कहा - "शालिनी, जानती हो यहाँ 31 बच्चे 17 साल से भी कम के हैं। इनमें से कुछ के माता-पिता का तलाक हुआ था, तो कुछ के माता-पिता पैसे कमाने के लिये इनकी परवरिश पर ध्यान ना देकर ज्यादा पैसे कमाने में लगे रहे। और ये बच्चे अकेलेपन और टूटते रिश्तों से दुखी होकर नशे की ओर मुड़ गये। क्या तुम शिव को ऐसी हालत में देख सकती हो? पति-पत्नी में झगड़े होते रहते हैं, क्या मुझमें और तुम्हारे पापा में झगड़े नहीं होते? लेकिन ये झगड़े आपसी तालमेल से सुलझाये जा सकते हैं, अहं में आकर तोड़ने से समस्यायें कभी नहीं सुलझती।"
तभी वहाँ उनकी बातें सुनती डॉक्टर ने कहा - "राघव-शालिनी आप दोनों मेरे बच्चे जैसे हो, इसलिये समझा रही हूँ। बच्चे के लिये माता-पिता दोनों का प्यार जरूरी है। साईकिल सीखते वक्त चोट लगने पर एक माँ दौड कर अपने बच्चे को गले से लगा लेती है और कहती है साइकिल इतनी भी जरूरी नहीं, अब से मत सीखना, माँ के लिये उसका बच्चा जरूरी है। वहीं पिता कहते हैं, मेरे बच्चे शुरूआत में सभी गिरते हैं, मैं भी गिरा था। चलो एक बार फिर से कोशिश करो , मैं पीछे से साइकिल पकड़ लूँगा , मैं तुम्हे गिरने नहीं दूँगा कभी भी….., पिता को पता है बच्चे के लिये क्या जरूरी है। माँ हमें हमारे अपनों के लिये खुद को बदलना सिखाती है। खुद से पहले परिवार की खुशी देखना सिखाती है, माँ चारदीवारी को घर बनाना सिखाती है। पिता अपने अस्तित्व और सपनों के लिये बाहरी दुनिया से हमें लडना सिखाते हैं। हार जाने पर भी हार ना मानना सिखाते हैं, वो हमें जिन्दगी अपनी शर्तों पर जीना सिखाते हैं। माँ हमें अपनी गलती ना होने पर भी कभी रिश्ते बचाने के लिये तो कभी बड़ों के सम्मान के लिये माफी माँगना सिखाती है, माँ हमें विनम्र और अहंकारहीन रहना सिखाती है। पिता दुनिया की परवाह ना करते हुये अपनी बात मजबूती से दूसरों के समक्ष रखना और अपने अधिकारों के लिये जूझना सिखाते हैं, पिता हमें स्वाभिमान से सिर ऊँचा रखना सिखाते हैं। माँ हमें छोटी छोटी खुशियों की अहमियत जानना सिखाती है, वो हमें हमारे होने का मोल बताती है। पिता हमें दुनिया जीतने के हुनर समझाते हैं, वो हमें विपरीत परिस्थितियों में भी निराश ना होना सिखाते हैं। माँ बताती है कि ये समाज और दुनिया कितनी खूबसूरत है, वो हमें लोगों की अच्छाई देखना सिखाती है। पिता हमें समाज का असली चेहरा देखने का नजरिया देते हैं, वो हमें दोहरे चेहरों की परख करना सिखाते हैं। एक लड़के को उसकी माँ के द्वारा किये गये त्याग और प्रेम का अहसास होता है, अनजाने में ही माँ बेटों को नारी का सम्मान करना सिखा देती है। एक लड़की के लिये उसका पिता रियल लाईफ हीरो होता है। लड़की को पता होता है, कुछ भी हो जाये मेरे पापा आखिरी साँस तक मेरा साथ देंंगें, अनजाने में ही एक पिता अपनी बेटियों को सिखा जाते हैं कि हर पुरूष गलत नहीं होता। पर एक बात है जो दोनों हमें सिखाते हैं, वो है कर्तव्यपालन और जिम्मेदारी उठाना। माँ बिना थके, बिना किसी शिकायत या उपहार की लालसा के, कभी कभी बीमारी में भी अपने घरेलू कार्य करती रहती है। खुद उपवास हो फिर भी पूरे परिवार के लिये खाना बनाती है, क्योंकि उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास है। पिता ना चाहते हुये भी हर रोज उसी जगह काम पर जाते हैं, जहाँ कल अधिकारी ने किसी और का गुस्सा उनपर निकाला था। जिस काम को करने पर उन्हे खुशी नहीं होती, फिर भी वो अपनी नौकरी नहीं छोड़ते क्योंकि उन्हे हमारे खाने, पढ़ाई और भविष्य के लिये रूपयों की जरूरत है, उन्हे भी अपनी जिम्मेदारी का अहसास है। एक बच्चे के लिये (चाहे बेटा हो या बेटी) माँ - बाप दोनों का प्यार बराबर अहमियत रखता है। कोई किसी की जगह लेकर उसकी कमी पूरी नहीं कर सकता। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये माता पिता दोनों का साथ और मार्गदर्शन जरूरी है। अपने बच्चे के लिये ही सही एक बार आपसी मतभेद भुलाकर समस्या सुलझाने पर ध्यान दें।"
राघव और शालिनी को अब समझ आ गया था कि वो कितनी बड़ी गलती करने जा रहे थे। बच्चे के लिये, पैसा, महंगे खिलौने, गैजेट्स, कपड़े आदि नहीं एक परिवार ज्यादा मायने रखता है। ऐसा परिवार जिसमें कम से कम माँ-पापा तो उसके साथ हों ही। जिस परिवार में आपसी नोंक-झोंक तो हो पर एक दूसरे लिये प्यार और सम्मान कभी कम ना हो। जहाँ रिश्ते संभालने की सीख मिलती हो ना कि रिश्ते तोड़ने की।
राघव और शालिनी ने एक दूसरे को गले से लगा लिया। दूर खड़ी शालिनी की माँ और डॉक्टर साहिबा भी मुस्कुरा रहे थे उनकी कोशिश रंग लाई थी। आज एक परिवार टूटने से बच गया था।