Ankita Bhadouriya

Inspirational Others

4.3  

Ankita Bhadouriya

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जीने की वजह (एक कहानी तीन अंत)

जीने की वजह (एक कहानी तीन अंत)

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         पूनम एक लाल रंग का जोड़े पहने उदास बैठी थी, कुछ ही देर में उसकी शादी होने थी। यूँ तो लड़कियाँ उम्रभर इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करतीं हैं। जब से लड़कियाँ समझने लायक होतीं हैं तब से पूरा परिवार उनके दिमाग में यही तो भरते रहते हैं कि वो पराया धन हैं और एक दिन ये घर छोड़कर अपने घर जाना है। मानो उनका जन्म ही किसी से शादी करने के लिये हुआ है।


लेकिन पूनम अलग थी, वो अपनी सहेलियों की तरह किसी की पत्नी बनने का नहीं बल्कि अपनी पहचान बनाने का सपना देखती थी। किशोरावस्था में जब उसकी सलेहियों को लड़कों पर क्रश होता था, जब उसकी सहेलियाँ प्रेमपत्र और तोहफों में खुशी ढूँढ़ा करतीं थीं तब पूनम किताबों में खोई रहती थी। पूनम कहती रिश्ते बनाने को तो पूरी उम्र पड़ी है, फिलहाल मुझे नाम बनाना है।


पूनम को किताबों से इतना लगाव था कि सुबह- शाम, भूख-प्यास, दोस्त-रिश्तेदार आदि किसी का भी ख्याल नहीं रहता। एक बार पढ़ने बैठती तो तभी उठती जब उसका पाठ पूरा हो जाता था। पूनम बहुत छोटी थी जब अखबार में भारत की पहली महिला आई पी एस अधिकारी किरण बेदी के बारे में पढ़ा था और उसने मन ही मन ठान लिया था कि वो भी एक दिन आई ए एस अधिकारी बनेगी। किरण बेदी की तस्वीर की जगह पूनम अपनी तस्वीर सोचकर मुस्कुराने लगी थी।


कम उम्र में देखा सपना बढ़ती उम्र के साथ उसके जीने का मकसद बन गया था। दसवीं, बारहवीं में 90% और स्नातक में स्वर्ण पदक हासिल करके उसने साबित कर दिया था कि पूनम ने पढ़ाई को लेकर कितनी संजीदा है। अब पूनम सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गई। लेकिन उसके माता-पिता अब जल्द से जल्द शादी कर देना चाहते थे। पूनम ने सबको खूब समझाया, खूब विनती की, लड़ी भी लेकिन सब उसके सपने को उसका लड़कपन समझ रहे थे। उसके पिताजी ने अपने हिसाब से एक अच्छा लड़का देखकर उसका विवाह तय कर दिया। पूनम हर बीतते दिन के साथ घुलती जा रही थी, लेकिन कुछ नहीं कर पाई।


आज वो दुल्हन बनी बैठी है, मुरझाई सी ,उदास, ख्यालों में डूबी तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी....... "पूनम बारात आ गई है, नीचे चलो पंडितजी बुला रहे हैं।"

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( पहला अंत )

....................आज वो दुल्हन बनी बैठी है, मुरझाई सी ,उदास, ख्यालों में डूबी तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी....... "पूनम बारात आ गई है, नीचे चलो पंडितजी बुला रहे हैं।" कई बार दरवाजा खटखटाने पर भी जब अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो परिवार वालों को एक अंजाना सा भय होने लगा। सबने मिलकर दरवाजा तोड़ा, अंदर आकर देखा तो सबके होश उड गये। पूनम की माँ तो बेहोश ही हो गई।


            सामने पंखे पर पूनम लटकी थी। जिस सितारे वाली लाल चुनरी को पहनकर उसे नई ज़िन्दगी में कदम रखना था, पूनम उसी लाल चुनरी का फंदा बनाकर लटक गई थी। ड्रेसिंग टेबल पर एक कागज़ रखा था, उसके पापा ने उठाया -

पापा/माँ,

मैनें आपको समझाने की लाख कोशिश की थी लेकिन आप नहीं माने। आपने समाज के नियम कायदों के लिये मेरे सपनों को नहीं समझा। अगर मेरी किस्मत भी विवाह मंडप तक ही थी तो क्यों मैंनें रात-रातभर जागकर पढ़ाई की, जब सारी सहेलियाँ फिल्मे देखतीं, पार्टी करतीं, लड़कों के साथ घूमतीं थी तब मैनें अपने आपको इस चारदिवारी के भीतर कैद करके किताबों में डुबों दिया था। मेरा IAS अधिकारी बनने का सपना सिर्फ सपना नहीं था, मेरे जीने की वजह था। आपने मुझसे मेरे जीने की वजह ही छीन ली, तो मैं ज़िंदा लाश बनकर भी नहीं रहना चाहती। काश! आपने मुझे कुछ साल दे दिये होते, काश! आपने विवाह के लिये जबरदस्ती ना की होती।

लव यू माँ-पापा

पूनम

पूनम के पिता ख़त पढ़कर फफक-फफककर रो पड़े।

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( दूसरा अंत )

.................आज वो दुल्हन बनी बैठी है, मुरझाई सी ,उदास, ख्यालों में डूबी तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी....... "पूनम बारात आ गई है, नीचे चलो पंडितजी बुला रहे हैं।"


पूनम ने दरवाजा खोला और विवाह-मंडप की ओर सिर झुकाये चल पड़ी। शादी की रस्में होनें लगीं, कुछ मंत्रोच्चारण के बाद सिंदूर से माँग भरी गई, गले में मंगलसूत्र पहनाया गया। फिर हाथों में हाथ लेकर फेरे लेने लगी, लेकिन हर फेरा उसके दिल को चीर रहा था। दर्द आँसुओं का रूप रख कर आँखों से बहने लगा। सात फेरों के सातों वचन पूरे होते ही पूनम के पति राजीव ने उससे कहा - "मैं जानता हूँ, तुम आई ए एस अधिकारी बनना चाहती हो। तुम्हारे पापा ने तुम्हारे सपने के बारे में बताया था। यकीन करो, मैं तुम्हारे हर फैसले का सम्मान करूँगा, तुम्हारा सपना हम मिलकर पूरा करेंगें। सुख-दुख में तुम्हारा साथ देने का जो वादा अभी फेरों में किया है वो मैं हर दम निभाऊँगा। मुझे गर्व है तुमपर कि तुम एक आम लड़की नहीं, एक सशक्तनारी हो जिसके सपने पति की परछाईं बनना नहीं अपनी पहचान बनाना है। मैं हमेशा से तुम्हारे जैसी ही लड़की से शादी करना चाहता था,जो मेरी बेटी को भी सहना नहीं लड़ना सिखाये, मजबूत बनाये। जो मेरे चरणों में स्थान ना ढूँढे बल्कि मेरे सर का ताज बनकर परिवार का नाम रोशन करे। तुम अर्धांगिनी हो मेरी, अगर तुम्हारी कोई इच्छा अधूरी रह गई तो मैं पूरा कैसे हो सकता हूँ? हम मिलकर तुम्हारे सपने को हकीकत में बदलने की मेहनत करेंगें, वादा रहा। ये मेरा आठवां वचन है तुम्हे।"


वहाँ खडे सभी मेहमान हैरत में थे, ऐसा भी होता है? पूनम जिसका चेहरा थोड़ी देर पहले मायूस था, अब वो गुलाब के फूल की भाँति खिल गया था। और उसकी आँखों के आँसू गुलाब पर छाई ओस की भाँति पूनम खूबसूरती बढ़ा रहे थे।


-----------------------समाप्त--------------------------------

( तीसरा अंत )

....................आज वो दुल्हन बनी बैठी है, मुरझाई सी ,उदास, ख्यालों में डूबी तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी....... "पूनम बारात आ गई है, नीचे चलो पंडितजी बुला रहे हैं।" जब काफी देर तक पुकारने पर भी भीतर से कोई आवाज़ नहीं आई तो दरवाजे को धक्का दिया गया। दरवाजा अंदर से खुला हुआ था, माँ ने अंदर आकर देखा तो वहाँ पूनम नहीं थी वो अपनी साड़ियों की रस्सी बनाकर खिड़की से भाग गई थी।

ड्रेसिंग टेबल पर ख़त रखा था, उसकी माँ ने खोलकर पढ़ा -

"माँ/पापा, मैं मजबूर थी। आपने मुझे बचपन से बहादुरी के किस्से सुनाये थे तो मैं कायरों की तरह किसी और को मेरी जिन्दगी के फैसले नहीं लेने दे सकती थी। मैं किसी लड़के के साथ नहीं, अपने सपनों को पूरा करने के लिये भाग रही हूँ, अभी लोग थोड़ा ताने देंगें पर वादा करती हूँ मैं वो दिन जरूर लाऊँगी, जिस दिन सब आपका सम्मान करेंगें। आपकी बेटी जल्दी वापस लौटेगी, कंधों पर सितारों वाली वर्दी और नीली बत्ती वाली सरकारी गाड़ी लेकर।"


थोड़ी ही देर में ये बात सबको पता चल गई, बारात वापस लौट गई और अपने साथ लड़की वालों का मान-सम्मान, सामाजिक इज्जत सब ले गई। पीछे छूट गये तो बस रिश्तेदारों के ताने, अपमान, गालियाँ और रोते पूनम के परिवार वाले। जिन्हें पूनम के पैदा होने पर ही अफसोस हो रहा था। पूनम के पिता इतने गुस्से में थे कि अगर पूनम सामने होती तो वे खुद ही उसका गला दबा देते। लेकिन अब कर ही क्या सकते थे।

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पाँच साल बाद -

घर के दरवाजे पर एक बड़ी सी नीली बत्ती की गाड़ी आकर रुकी। उसमें से एक बंदूकधारी पुलिस वाले ने उतर कर गाड़ी का दरवाजा खोला, जिसमें से एक औरत निकली।


मोहल्लेवाले जो अपने घर के दरवाजों, खिड़कियों और बालकनी से झाँक रहे थे उस औरत को देखकर बाहर सड़क पर आ गये। ये पूनम थी, जो उसी जिले की कलेक्टर बनकर आई थी।


अब तक पूनम के माता-पिता भी घर से बाहर आ चुके थे। अपनी बिटिया को कलेक्टर वारी गाड़ी से उतरते देखकर उनकी आँखों में खुशी की आँसू आ गये थे। इतने सालों से सोच रखा था कि ये कहेगें वो कहेंगें, अब बिटिया को देखकर गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी। चेहरे पर खुशी और संतोष के भाव थे, पूनम के पिता ने आगे बढ़कर बिटिया को गले से लगा दिया और फिर माँ ने भी माथा चूमकर बलायें उतार लीं।


जो पडोसी पिछले पाँच सालों से उनकी ओर मुँह टेढ़ा करके बेटी के घर से भाग जाने का ताना दिया करते थे आज उनके चेहरों पर भी आत्मग्लानि के भाव थे। वो समझ चुके थे कि पूनम अब उस ऊँचाई पर पहुँच चुकी है जहाँ तक उनके तानों की आवाजें भी नहीं पहुँच सकतीं। अब सबके मन में ही कहीं ना कहीं अपनी बेटियों को भी पूनम की शक्ल में देखने लगे थे। एक सपना जो आज पूरा हुआ था उसने ना जाने कितने लोगों को एक सपना दिखा दिया था। मोहल्ले की ना जाने कितनी बेटियों को उनके जीने की वजह , एक मकसद और उम्मीद मिल गई थी।



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