Ankita Bhadouriya

Horror Thriller Others

4.2  

Ankita Bhadouriya

Horror Thriller Others

रक्तपिपासु वैम्पायर

रक्तपिपासु वैम्पायर

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देहरादून में एक बड़े ही प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हैं, जिनका नाम है- डॉक्टर अरविन्द जैसवाल। तुम्हें पता है जो भी दिमागी मरीज़ उनसे मिलने जाता है वो ठीक होगा या नहीं डॉ. जैसवाल पहली मुलाकात में ही बता देते हैं, और उनके पास जाने वाले लगभग 90% मरीज़ ठीक होकर ही आते हैं। मुझे लगता है तुम्हें उनसे मिलना चाहिए।- राघव ने अपनी पत्नी नैना से कहा।

नैना ने इसका कोई जबाव नहीं दिया, बस राघव की ओर देखकर हाँ में सिर हिला दिया था। फिर बोली- तुम्हारा काम? अगर वहाँ ज्यादा दिन रुकना पडा तो?

अरे बीवी साहिबा, मैं तो फ्रीलांसर हुँ कहीं भी रहकर काम कर लूँगा। और मुझे अभी प्रतिलिपी पर हॉरर फेस्टीवल के लिए कुछ कहानियाँ भी लिखनी हैं, तो मैं वहाँ रहकर लिख लूँगा- राघव प्यार जताते हुए बोला।

नैना आजकल वैसे भी कुछ नहीं बोलती थी, बस खामोश सी उदास आँखों से खिड़की के बाहर चुपचाप घंटों देखती रहती, कभी कभी तो पूरी रात वो खिड़की पर ही खड़ी रहती। कई बार आत्महत्या की कोशिश भी कर चुकी थी। ऐसा लगता था जैसे उसके जीने की हर इच्छा खत्म हो चुकी है, वो साँसें तो ले रही है लेकिन उसकी आत्मा तो उस एक्सीडेंट वाले दिन ही मर गई थी। उस कार एक्सीड़ेंट में नैना के मम्मी पापा और तीन साल की बच्ची की मौत हो गई थी। कार नैना चला रही थी इसलिए वो इन सबकी मौत का जिम्मेदार खुद को मानती थी। वो इस हादसे से इतनी बुरी तरह टूट चुकी थी कि खुदकुशी करने की भी कई बार कोशिश कर चुकी थी। राघव को किसी ने सलाह दी थी कि वो एक बार नैना को किसी मनोवैज्ञानिक से मिलवा दे। छ: महीनों से वो भोपाल के सबसे बड़े मनोचिकित्सक के संपर्क में थी पर उसकी हालत हर गुज़रते दिन के साथ बिगड़ती जा रही थी। हर ओर से निराश राघव और नैना को आज अखबार में डॉक्टर अरविन्द जैसवाल का इश्तहार देखकर उम्मीद की एक किरण दिखाई दी थी। तो दोनों ने वीकेन्ड पर उनसे मिलने देहरादून जाने की तैयारी शुरू कर दी।


शनिवार को वो लोग देहरादून पहुँचे एयरपोर्ट पर एक टैक्सी ली और न्यूफोरेस्ट एरिया की तरफ चलने को कहा। आधे रास्ते में टैक्सी ड्राइवर ने पूछा की - साहब पहली बार घूमने आये हैं तो क्या आपको किसी गाइड की आवश्यकता है? अगर हो तो मैं एक लोकल गाईड को जानता हूँ वो आपको पूरे देहरादून के सभी पर्यटन स्थानों पर ले जाएगा।

राघव ने कहा - नहीं, हम तो बस डॉक्टर अरविन्द जैसवाल से मिलने आये हैं।

डॉ. जैसवाल का नाम सुनकर ड्राइवर थोड़ा अजीब सी नजरों से दोनो को देखने लगा। फिर बोला- साहब आपको उनके बारे में किसने बताया?

राघव ने कोई जबाव नहीं दिया वो किसी अंजान ड्राइवर को अपनी पूरी जानकारी नहीं देना चाहता था।

5 मिनट बाद ड्राइवर फिर बोला- साहब क्या आप वैम्पायर में यकीन रखते हैं? अरे वही जो इंसानों का खून पीते हैं।

राघव हँसा और बोला - नहीं, ऐसा कुछ नहीं होता। बस हॉलीबुड़ फिल्मों में एक कहानी दिखा दी गई और तुम सब उसे सच मानने लगे। तुम कम पढ़े लिखे लोगों की यही तो दिक्कत है, भूत प्रेत, पिशाच- डायन और ये अंग्रेजी फिल्मों का वैम्पायर तुम लोग हर झूठ पर यकीन कर लेते हो।(और फिर हँसने लगा)

साहब, हम अनपढ़ ही सही पर हमारी दुनिया में बहुत से ऐसे रहस्य हैं जो आपका विज्ञान नहीं समझ सकता और हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इंसान नहीं कुछ और हैं, संभल कर रहिएगा- ड्राइवर ने कुछ अजीब तरीके से कहा।

साहब , आपका होटल आ गया। बात तो आप मानेंगे नहीं पर फिर भी बता रहा हूँ, डाक्टर साहब आपको ऐसी कोई भी चीज जो समय बताती हो दें, तो आप लेना मत। - ड्राइवर ने टैक्सी रोकते हुए कहा।

राघव ने हँसकर कहा- चलो तुम्हारी दूसरी दुनिया के किस्सों से पीछा तो छूटा।


अगले दिन राघव और नैना डॉक्टर जैसवाल के हीलिंग सेन्टर में थे। डॉ. जैसवाल ने दोनों से थोड़ा जान परिचय बढ़ाया, थोड़ी इधर उधर की बातें की, तकलीफ और वजह पूछी। फिर गंभीर चेहरा बना कर राघव से बाहर वेटिंग रूम में रूकने को कहा। राघव ने नैना के गालों को थपथपाते हुए कहा - डरना मत , मैं यहीं इस काँच की दीवार के बाहर हुँ। तुम डॉक्टर से बात करो, देखना तुम जल्दी ठीक हो जाओगी। बदले में नैना मुस्कुरा दी।

करीब आधे घंटे बाद डॉ. जैसवाल बाहर आए और राघव से कहा , वो ठीक हो जाएगी। बस अगले 45 दिन तक हर रोज शाम 6 -8 वो नैना को ले आये काउंसिलिंग के लिए।

दोनो होटल रूम में वापस आ गये। खाना खाया, नैना सो गई और राघव अपना लैपटॉप लेकर कुछ पेंडिंग पडे काम निपटाने लगा। फिर उसने ना जाने क्या सोचकर आज ड्राइवर वाली बात को अपने लैपटॉप में लिखना शुरू किया, लिखते समय उसे ऐसा लगा जैसे डॉ. जैसवाल उसे खिडकी से घूर रहे हैं, राघव ने सिर झटक दिया। फिर वो उठा और खिडकी बंद करके जैसे ही बेड पर वापस आने के लिए मुड़ा उसने देखा डॉक्टर जैसवाल बड़े बड़े दांतों और आँखों से खून टपकाते हुए नैना की ओर बढ़ रहे हैं। राघव जोर से चीखा - नैना....., जल्दी से रूम की लाईट ऑन की पर ये क्या यहाँ तो कोई नहीं था।

क्या हुआ- नैना ने हड़बड़ाते हुए पूछा।

राघव ने अपने डर पर काबू करते हुए कहा - कुछ नहीं, तुम सो जाओ।

हफ्ते भर तक नैना रोज शाम को डॉ. जैसवाल के हीलिंग सेन्टर जाती, राघव बाहर बैठा शीशे की दीवारों के पार उन्हें बातें करता देखता। राघव को रोज रात ऐसा लगता जैसे डॉ. जैसवाल खिड़की से घूरते हैं , फिर नैना की ओर बढ़ते हैं और रोज राघव चीख उठता है, नैना.........। ये सिलसिला हर रात दोहराया जाता, लेकिन राघव इसे अपना वहम समझता। अब नैना थोड़ा हँसने बोलने भी लगी थी। राघव को लगता ये सब डॉ. साहब के ट्रीटमेंट के कारण है, इसलिए वो अपने रात वाले वहम को परे रख नैना की हँसी में खो जाता।


दो हफ्तों बाद उसने महसूस किया कि उसकी पत्नी नैना कुछ अलग तरह से बिहेव करने लगी है। वो पूरे पूरे दिन थकी थकी सी लगती, दिन भर सोती रहती लेकिन शाम होते ही वो बहुत एनर्जेटिक हो जाती। अब राघव को कभी कभी होटल के कमरे में मरा चूहा, कबूतर के पंख भी मिलने लगे और बिल्ली के रोने की आवाज़ें भी सुनाई देने लगीं। होटल वालों को जब फोन करके रूम में बुलाता तो वो चीज़ें गायब हो जातीं।

हर बीतते दिन के साथ कमरे में मिलने वाले जानवरों का आकार बढ़ा होने लगा। चूहे और कबूतर के साथ उसे अब मरा हुआ कुत्ता दिखने लगा। उसने एक दो बार रूम भी बदला , होटल भी बदला पर हालात लगातार खराब होते जाते। माँस के सड़े टुकड़ों की बदबू के कारण अब उसका सिर दर्द से फटने लगा। लेकिन ये बदबू सिर्फ उसे आती थी उसने नैना से कई बार पूछा पर हर बार बाकियों की तरह नैना को ना कुछ दिखाई देता ना किसी तरह की अजीब बदबू आती। राघव ने एक चीज़ और नोटिस की थी कि बदबू मात्र दिन के समय आती थी रात में सब सही हो जाता था। इस डर के कारण उसने दिन में रूम में जाना ही छोड़ दिया।

हर रात उसे सपना आता की नैना जानवरों के खाती है, उसका पूरा मुँह खून से सना होता है, नैना धीरे धीरे राघव की ओर बढ़ती अपने बड़े बड़े दाँत उसकी गर्दन में घुसा के खून पीती, फिर वो छत पर ऊपर चमगादड़ों की तरह उल्टी लटक जाती। नैना को ऐसे देखकर वो सुबह जागता तो समझ आता की सपना था। पर नहाते समय उसकी गर्दन पर दो छेद से दिखते मानो सच में किसी ने उसका खून निकाला है। राघव का शरीर कमजोर होने लगा, अब उसे भी थोड़ा डर महसूस हुआ, ड्राइवर वाली बात कि यहाँ वैम्पायर रहते हैं, ये सोच सोच कर उसका हर दिन मुश्किल होता जा रहा था।

राघव पूरे दिन बाहर हॉल में बैठकर लैपटॉप पर काम करता रहता। एक दिन पता नहीं क्या सोचकर वो एयरपोर्ट पर पहुँचा उसी ड्राइवर से मिलने। ढूँढने पर वो वहीं मिल गया। राघव ने उससे कहा - उस दिन तुम दूसरी दुनिया और इंसानों के बीच रहने वाले दूसरे लोगों के बारे में कुछ कह रहे थे। क्या तुम मुझे बताओगे क्या जानते हो उनके बारे में?

टैक्सी ड्राइवर ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। लेकिन फिर जब राघव ने उसे अपने हर रोज के एहसासों और गर्दन पर बने दाँतों के निशान को दिखाते हुए ड्राइवर के आगे हाथ जोडे़ और मदद माँगी तो ड्राइवर बोला - "मैंने अगर कुछ कहा तो वो मुझे मार डालेंगे।"

कौन मार डालेगा? - राघव ने पूछा।

"वैम्पायर्स, यहाँ देहरादून में हमारी आपकी तरह आम इंसान बनकर बहुत सारे वैम्पायर्स रहते हैं। शिकार करते हैं, गुलाम बनाते हैं और अंत में अपने गुलामों को भी अपने जैसा बना लेते हैं।"- ड्राइवर बोला। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- "साहब आप वो क्या कहते हैं!! इंटरनेट.....इंटरनेट पर इनके बारे में पढ़ सकते हैं।" इतना कहकर ड्राइवर भाग गया।

राघव ने अपना लैपटॉप निकाला, इंटरनेट ऑन किया उस पर वैम्पायर्स के बारे में जानने लगा। उस पर लिखा था - "वैम्पायर्स आत्मा के बिना जीवित रहने वाले इंसान होते हैं, इनकी आयु कभी नहीं बढ़ती। ये बेहद आकर्षक होते हैं और ये ठंढे इलाकों में रहते हैं।ये अपने गुलामों का चयन भी इसी आधार पर करते हैं, जिनके जीने की इच्छा खत्म हो जाती है ये उन तक किसी तरह संपर्क करते हैं अपने पास बुलाते हैं , गुलामों की क्षमतायें परखते हैं, उन्हें छोटे छोटे जानवरों का शिकार करने का आदेश देते हैं। धीरे धीरे ये छोटे से बड़े जानवरों की ओर बढ़ते हैं। वैम्पायर्स के नए गुलाम उन जानवरों का शिकार रात में करने निकलते हैं, उनका खून पीते हैं और उन गुलामों की ये खून की प्यास लगातार बढ़ती जाती है,उन्हे इंसानी खून की तलब लगने लगती है फिर वे इंसानों का भी शिकार करने लगते हैं। और फिर अमावस्या की रात मैं वो गुलाम पूरी तरह से खुद भी मानवखोर रक्तपिपासू पिशाच में बदल जाते हैं, वैम्पायर्स की तरह नए गुलामों को भी शक्तियाँ मिल जातीं हैं , शक्तियों के बदले में उन्हें अपने सबसे करीबी चाहनेवाले को मारकर उसका रक्त अपने मालिक को देना होता है।"

राघव का सिर घूमने लगा अब उसे समझ आने लगा, उन्हें अखबार में डॉ. जैसवाल का इश्तेहार मिलना, उनका भोपाल से यहाँ देहरादून आना सब उसे और नैना को यहाँ बुलाने के लिए जाल बिछाना था। नैना का पूरे दिन थका लगना और सोते रहना क्योंकि रात को वो शिकार करती थी। कमरे में चूहे , कबूतर, कुत्ते आदि का बदबूदार माँस होना फिर भी नैना का नॉर्मली रिएक्ट करना। उसे समझ आ गया कि नैना को इसलिए चुना गया क्योंकि वो जीना ही नहीं चाहती थी।

उसने जल्दी से हिन्दी कलैण्डर देखा पता चला कल अमावस्या है और कल नैना पूरी तरह वैम्पायर बन जाएगी। वो अपनी पत्नी को बचाना चाहता है- तरीके खोजता है, तभी उसे इंटरनेट पर एक रिपोर्ट मिलती है जिसमें लिखा होता है कि - "वैम्पायर चाँदी से डरते हैं और अगर कोई पूरी तरह से वैम्पायर नहीं बना है तो उसके अंदर का शैतान चाँदी से खत्म किया जा सकता है लेकिन इसमें उस गुलाम वैम्पायर की जान भी जा सकती है।" इंटरनेट पर सर्च करते हुये उसे एक आर्टिकल भी मिला जिसमें लिखा था कि वैंपायर लोगों को गुलाम बनाने के लिये घड़ीनुमा एक विशेष यंत्र का भी प्रयोग करते हैं।

राघव जल्दी से जाकर आपने रूम में नैना का सामान चेक करता है, वहाँ उसे वही घड़ीनुमा अजीब सा यंत्र मिलता है जिसके बारे में उसने इंटरनेट पर पढ़ा था। अब राघव समझ चुका था कि उसकी नैना के साथ क्या हो रहा है।

राघव कुछ सोचकर पूरी कहानी अपने लैपटॉप पर टाईप करता है और अंत में लिखता है अगर जिन्दा बचा तो परसों कहानी पर आये कमेंट के जवाब दूँगा, वरना समझ जाना दोस्तों मैं मर गया ।

अब वो सुनार के पास जाता है, शुद्ध चाँदी की दो अंगूठी खरीदता है और अपने होटल की तरफ चल पड़ता है। आज अब उसके पास सिर्फ कल का दिन था, खुद को बचाने का , उसकी जिन्दगी उसकी पत्नी नैना को बचाने का। होटल पहुँचते पहुँचते रात के ग्यारह बज गए थे, रूम में आकर वो चुपचाप लेट गया , सोने का नाटक करने लगा। एक घंटे बाद उसे महसूस हुआ नैना उठकर खिड़की खोलकर बाहर जा रही थी, शायद शिकार पर। राघव कुछ नहीं बोला। सारी रात बेचैनी में कटी लगभग 5 बजे नैना उसी खिड़की से वापस अंदर आयी, इस बार उसके हाथ में जंगली सुअर था। राघव चादर के अंदर से देख रहा था, नैना के दो दाँत अजीब तरह से बढ़ गए थे उसने वो दाँत सुअर की गर्दन में घुसाये और उस जिन्दा सुअर का खून पीने लगी। फिर उसने अपने बड़े बड़े नाखूनों से उस सुअर की छाती फाड़कर उसका हृदय निकाला और खाने लगी। नैना ऐसे खा रही थी जैसे वो ये सालों से खा रही हो, जैसे ये हृदय उसे बहुत स्वादिष्ट लग रहा हो, नैना के पूरे शरीर पर खून और माँस के टुकड़े थे पर वो वहशियों की तरह बस खाये जा रही थी। थोड़ी देर बाद नैना ने अपनी जीभ से चाटकर सारा माँस खा लिया बस खाल और दाँत छोड़ दिये। फिर वो चमगादड़ों की तरह कमरे की छत पर उल्टी लटक गयी। 6 बजे सूरज की किरणें खिड़की के सहारे कमरे में आयीं तो नैना अपने बिस्तर पर लेट कर सो गई।

अब उठने की बारी राघव की थी। उसने जो घिनौना दृश्य  अभी देखा था उसके बाद उसका सिर फटा जा रहा था, उसे उल्टियाँ होने लगी, वो उठकर बाथरूम की ओर दौड़ा और पता नहीं कब बेहोश होकर गिर पड़ा । लेकिन नैना आराम से सो रही थी। कुछ घंटे बाद राघव को होश आया, राघव ने कुछ सोचा और कमरे से बाहर निकल गया। वो कहीं से पुरानी कार खरीद लाया, वापस आकर उसने नैना को एक बेहोशी का इंजेक्शन लगाया, और गोद में उठाकर बाहर कार में बिठाया, और कसकर पिछली सीट पर उसे बाँध दिया। होटल का हिसाब किया और चल पड़ा देहरादून की सीमाओं के बाहर । रास्ते में उसने एक चाँदी की अँगूठी खुद पहनी और एक नैना को पहनाई। अँगूठी पहनते ही नैना नींद से जाग गई, और अपने भयानक वाले रूप में आ गयी। वो चीखे जा रही थी पर उसकी चीखों से ज्यादा तेज आवाज में कार में हनुमान चालीसा बज रहा था, राघव ने भी गाड़ी की रफ्तार जितनी हो सके उतनी बढ़ा दी। जैसे ही वो देहरादून की सीमा के करीब पहुँचा उसने देखा की घने जंगलों के बीच उसकी कार के पीछे कोई दौड़ रहा है। कार की स्पीड 180-200 किलोमीटर/घंटा थी पर फिर भी वो दौड़ता हुआ आदमी उसकी कार के करीब आता जा रहा था, इतनी तेज़ कोई कैसे दौड़ सकता है, राघव ये सोच ही यहाँ था कि वो दौड़कर हुआ आदमी उसकी कार की विंडों से गुजरता हुआ कार के आगे जा खड़ा हुआ। राघव ने जब सामने से उसे देखा तो वो हैरान रह गया ये तो डॉ. जैसवाल हैं , वो वैम्पायर है और उसकी नैना को भी उन्होंने ही ऐसा बनाया है । कार के भीतर नैना पूरी ताकत लगा रही थी अपने हाथ खोलने के लिए, जोर जोर से भयानक आवाज में चीखती हुई नैना और कार के बाहर वो पिशाच डॉक्टर, राघव दो वैम्पायर्स के बीच फँस गया था। नफरत और गुस्से से भरे राघव ने कार की स्पीड और बढ़ा दी कार डॉ. जैसवाल रूपी वैम्पायर को रौंदती हुई पहाड़ से नीचे नदी में गिर गयी। अब नैना भी शान्त हो गयी और राघव बेहोश।

जब आँखें खुलीं तब पता चला वो हरिद्वार के सरकारी अस्पताल में हैं। नर्स से पूछने पर बताया कि उनकी कार देहरादून की सीमाओं को पार करती हुई गंगा नदी में गिर गई थी, उसे 4 दिन बाद होश आया था। उसने पूछा और मेरी पत्नी ? नर्स बोली - "चमत्कार था कि तुम्हारी पत्नी को खरोंच भी नहीं आयी थी। वो अभी मंदिर गयी तुम्हारे लिए प्रसाद लाने।"

थोड़ी देर में नैना का मासूम चेहरा दिखाई दिया , जिसकी बड़ी बड़ी आँखों में आँसू तो थे पर चेहरे पर सुकून भी नजर आ रहा था। नैना ने प्रसाद राघव को खिलाया। राघव समझ गया कि देहरादून की सीमाओं से बाहर आते ही उस रक्त पिपासु पिशाच के तिलिस्म से नैना बाहर आ गई थी। जिसमें नैना के माता पिता और राघव और नैना की बच्ची की मौत हुई थी उस हादसे के कई महीनों बाद आज राघव को उसकी नैना वापस मिली है, जिसकी आत्मा भी जिन्दा है और जिसकी जीने की इच्छा भी जिन्दा है। राघव ने हनुमान जी और माँ गंगा को धन्यवाद दिया।

नैना ने पूछा- हम भोपाल से यहाँ कैसे आये?

राघव बोला- "कुछ नहीं हम घूमने के लिए आये थे, हमारी कार का एक्सीडेंट हो गया था और वो गंगा नदी में गिर गई थी। अब सब सही है।" कहकर राघव ने नैना को गले से लगा लिया।

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उदयपुर में एक पिता ने अपने बेटे को अखबार पढ़ते हुए कहा- देहरादून में एक बड़े ही प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हैं, जिनका नाम है- डॉक्टर अरविन्द जैसवाल। तुम्हें पता है जो भी दिमागी मरीज़ उनसे मिलने जाता है वो ठीक होगा या नहीं डॉ. जैसवाल पहली मुलाकात में ही बता देते हैं, और उनके पास जाने वाले लगभग 90% मरीज़ ठीक होकर ही आते हैं। मुझे लगता है तुम्हें उनसे मिलना चाहिए।

(उनके बेटे पुष्कर को दो सदमे एक साथ लगे थे। प्रेमिका द्वारा ठुकराए जाने पर तथा एक्जा़म में फेल हो जाने पर वो दो बार खुदकुशी करने की कोशिश कर चुका था। उसके अंदर जीने की इच्छा खत्म हो गई थी।)

बेटे ने कोई जवाब नहीं दिया बस हाँ में सिर हिला दिया।

अगली सुबह दोनों निकल पड़े देहरादून डॉक्टर जैसवाल से मिलने ...................

समाप्त।



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