राष्ट्रीय राजमार्ग - 75
राष्ट्रीय राजमार्ग - 75
पूणे से बैंगलुरु के बीच पड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 75 पर कुछ संदिग्ध था। यहाँ रात में अकेले सफर करने वाली सवारियाँ अक्सर कहीं गायब हो जातीं थीं। कुछ लोग इसे भूत-प्रेत का साया समझने लगे थे लेकिन दो महीनों में 58 लोगों के गायब होने से पुलिस विभाग में खलबली सी मची थी। सारे प्रयास किये जा चुके थे लेकिन गायब हुये लोगों का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था, किसी पर शक होना तो दूर यात्रियों के गायब होने के अलावा कुछ संदिग्ध भी नहीं था। FIR पर FIR एक थाने से दूसरे थाने घूमती गायब हुये लोगों की तस्वीरें और फाइलें सबके लिये सिरदर्द बन रही थीं।
पुणे में रहने वाले दंपति आशा और वीरेन्द्र को वीरेन्द्र की बहन रेणुका की शादी में जाना था। आखिरी समय पर कुछ जरूरी काम आ जाने के कारण आशा को रुकना पड़ा, अभी विवाह में कुछ दिन बाकी थे अतः दोनों ने ये निर्णय लिया कि वीरेन्द्र विवाह की तैयारियाँ करने पहले से बैंगलुरू जायेगा और अपना काम खत्म करके आशा बाद में आ जायेगी। अगले दिन वीरेन्द्र अपनी कार से बैंगलुरू की ओर निकल गया। गाड़ी में विवाह समारोह में शामिल होने वाले लोगों के लिये उपहार और रेणुका की जरूरत का ढ़ेर सारा सामान भी था। अगले दिन जब रेणुका ने उसे फोन किया तो उसका मोबाइल स्वीच ऑफ आ रहा था। दो दिन बाद रेणुका ने अपने पति की थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई। पुलिस समझ गई कि बाकी लोगों की तरह वीरेन्द्र भी गायब हो गया।
वीरेन्द्र स्वयं पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर था, अतः उसके गायब होने की जाँच कुछ ज्यादा ही गहराई से की गई। इसके लिये एक योजना बनाई गई, पुलिस महकमें में से ही एक अधिकारी कार्तिक को अगली रात उस रहस्यमई हाईवे पर जाना था।
योजनानुसार कार्तिक तय समय पर चल पड़ा, वो लगातार फोन और gps की सहायता से पुलिस हेडक्वार्टर से कनेक्टेड़ था। उसकी गाड़ी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक दूसरी पुलिस वालों की गाड़ी भी चल रही थी।
जैसे ही कार्तिक बेंलगाँव के पास स्थित गहरे जंगलों के बीच पहुँचा उसकी कार के चारों टायर पंक्चर हो गये। वो समझ गया शायद यही वो स्थान है, जहाँ कुछ गड़बड़ होती है। वो कार से उतरकर खड़ा हो गया, तभी दूसरी दिशा से एक कार आती दिखाई दी। वो कार कार्तिक के पास आकर रुक गई, उसमें से एक बेहद सभ्य आदमी ने शीशा नीचे करते हुये उससे परेशानी का कारण पूछा और फिर मदद की पेशकश की। कार्तिक का इयर फोन और कैमरा ऑन था, उस गाड़ी में बैठ गया। थोड़ा आगे जाने पर उस अजनबी ने बड़ी मनुहार करते हुये कार्तिक को पानी पीने को दिया, कार्तिक को कुछ शक तो हुआ पर क्योंकि यहाँ की पूरी घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग पीछे गाड़ी में बैठे पुलिस वालों तक पहुँच रही थी अतः उसने वो पानी पी लिया। पानी पीते ही कार्तिक बेहोश हो गया। उस अजनबी ने कार एक कच्चे रास्ते पर उतार दी, कुछ आगे जाने पर एक तालाब दिखा, जहाँ 3-4 महिला और पुरुष पहले से मौजूद थे। सबने मिलकर कुछ लकड़ियों और कंड़ों की सहायता से आग लगाई। फिर उन लोगों ने बेहोश कार्तिक को गाड़ी से बाहर निकाला, उसके कपड़े उतारकर पूरे शरीर पर तेल का लेप किया फिर जैसे ही वे लोग कार्तिक के शरीर को आग में फेंकने वाले थे वैसे ही पुलिस की गाड़ी वहाँ पहुँच गई। कार्तिक को बचा लिया गया और उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
पहले तो वे लोग मुँह खोलने को तैयार नहीं थे लेकिन पूछताछ में सख्ती और थर्ड डिग्री टॉर्चर के बाद जो उन लोगों ने बताया वो सुनकर सबके पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई, सबके रोंगटे खड़े हो गये।
उन लोगों ने बताया कि - "एक दिन शराब के नशे में हमें इंसानी माँस खाने की इच्छा हुई थी, जब ये इच्छा बहुत तीव्र हो गई तो हमने गाँव से ही एक बच्चा चुराकर उसे भूनकर खाया, हमें बड़ा स्वादिष्ट लगा। अब हमें हर रोज इंसानी माँस खाने की इच्छा होने लगी, क्योंकि इस पर रोक लगी है इस कारण हम हाईवे पर अकेले यात्रा करने वालों को निशाना बनाने लगे। हम लोग जंगल में एक नियत स्थान पर सड़क पर नुकीली कीलें फैला देते थे, जिससे उनकी गाड़ी के टायर पंक्चर हो जायें। हमारा एक आदमी पेड़ों के पीछे छिपकर फोन करता और फिर दूसरा आदमी गाड़ी लेकर उनके पास जाता और मदद की पेशकश करता। मजबूर लोग थोड़ा समझाने पर हमारी मदद लेने को राज़ी हो जाते। हम उन्हें खाने-पीने की चीजों में बेहोशी की दवा मिलाकर दे देते थे, जिससे वे बेहोश हो जाते। बाद में हम गाँव से दूर सुनसान इलाके में तालाब किनारे जाकर इंसानों का गोश्त भूनकर खाते, बच्चों का गोश्त कभी-कभार ही मिल पाता था लेकिन वो सबसे ज्यादा स्वादिष्ट लगता था। ज्यादातर आदमी ही यात्रा करते थे, इसलिये हमें आदमियों का गोश्त ही मिल पाता था। आस-पास के लोग तथा अखबार में इसके बारे में पढ़ने वाले लोग इसके पीछे भूत समझने लगे, इससे हमारा काम और आसान हो गया, हम भी हाईवे पर भूतों के होने की कहानियाँ सुनाने लगे।"
ये सब बताते समय उन लोगों के चेहरों पर पश्चाताप के कोई भाव नहीं थे। लेकिन पुलिस वालों को उन लोगों के प्रति एक अलग प्रकार का गुस्सा, घिन और घृणा हो रही थी, कोई इंसान किसी दूसरे इंसान का माँस खा सकता है ये सोच-सोचकर ही उबकाई आ रही थी।
उनके पापों की सजा के लिये तो फाँसी यानी सज़ा-ए-मौत भी कम ही लग रही थी।
जिस किसी ने भी राष्ट्रीय राजमार्ग 75 पर लोगों के गायब होने के पीछे इस रहस्य की हकीकत सुनी, वो ये सोचने पर मजबूर हो गया कि आज के समय में इंसान हैवानियत की उस सीमा पर पहुँच चुका है कि 'मानवता' शब्द कहीं खोया हुआ सा प्रतीत होने लगा है। फिर चाहे वो निर्भया कांड हो या तंदूर कांड या फिर आये दिन दूधमुँहीं बच्चियों से होने वाली घटनायें, हर बार इंसानियत तार-तार हो जाती है और कहीं कहीं ना मन में सवाल उठता है, "क्या वाकई हम ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति हैं? हमसे ज्यादा इंसानियत और भावनायें तो पशुओं में होतीं हैं, वे कभी अपने मनोरंजन के लिये किसी को नहीं मानते। तो फिर हम किस मुँह से जानवरों को जंगली व हिंसक तथा स्वयं को इंसान और सभ्य जीव की उपाधी देते हैं?" हर बार ये प्रश्न अनुत्तरीय ही रह जाता है।