Ankita Bhadouriya

Others

3  

Ankita Bhadouriya

Others

2080: तस्वीर भविष्य की

2080: तस्वीर भविष्य की

6 mins
414


2080 चंद्रमा

आज 07 अक्टूबर 2080 को टीवी पर कोई बड़ी वैज्ञानिक घोषणा होने वाली थी, जो चंद्रमा पर रहने वाले इंसानों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण थी।

***************

लगभग 50 साल पहले इंसान पृथ्वी छोड़कर चाँद पर बस गये हैं। घरों के भीतर तो कृत्रिम ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई है। लेकिन घर से बाहर रोजमर्रा के कामों-खरीददारी, स्कूल-ऑफिस और खेलों के लिये जब निकलना होता है तो लोगों को अपनी पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर लादना पड़ता है। विज्ञान में तरक्की होने से चाँद पर रहना तो संभव हो गया लेकिन पृथ्वी की तरह बेफिक्री नहीं मिल पाई। आखिर कुछ फर्क तो होता ही है ईश्वर की रचाई दुनिया और इंसानों द्वारा बनाये कृत्रिम वातावरण में।


पृथ्वी पर जहाँ जिन्दगी और साँसें मुफ्त थीं वहीं अब चंद्रमा पर इसके भी पैसे देने पड़ते हैं। पृथ्वी पर मानवों की प्राथमिकतायें रोटी, कपड़ा और मकान की थी वहीं चंद्रमा पर सबसे पहले ऑक्सीजन खरीदने का इंतजाम करना पड़ता है। चंद्रमा पर किसी जिम्मेदार सरकार की अनुपस्थिति में सिर्फ प्रायवेट कंपनियों का ही राज था। कुछ प्रायवेट कंपनियाँ अपने बगीचों में पौधे उगाकर ऑक्सीजन इकट्ठी करतीं हैं और मार्केट में बेचतीं हैं। आम लोगों के लिये पौधे उगाना या बीज जमा करना गैर-कानूनी था। 2028 में जब पहली बार यहाँ मकान बनाने और लोगों के रहने की व्यवस्था की गई थी, तब से अब तक यहाँ किसी ने पानी नहीं पिया था, चंद्रमा पर ही जन्म लेने वाले बच्चों ने तो पानी को देखा भी नहीं था। यहाँ पानी की जगह सभी लोग हर वक्त कोल्डड्रिंक ही पीते थे। चंद्रमा पर स्थापित ऑक्सीजन की बड़ी कंपनी मालिकों को लगता था कि अगर लोगों को पानी मिल गया तो वे पौधे उगा लेंगें और उनका ऑक्सीजन बेचने का कारोबार खत्म हो जायेगा। इस कारण उन्होंने सरकारों को खूब रुपये भरे थे कि चंद्रमा पर रहने वालों तक पानी पहुँच ना सके। लेकिन पिछले कुछ सालों में ये रुपया कमाने से ज्यादा मजबूरी में किया गया काम लगने लगा है क्योंकि प्रथम तो अब इंसान पौधे उगाने की विधि भूल चुके हैं और दूसरा पानी के प्राकृतिक रूप से ना मिलने के कारण चंद्रमा पर एक आम इंसान के लिये पौधे उगाना असंभव जैसा ही है, कोई भी पैसों से पानी खरीदकर बागवानी नहीं करना चाहता था, चंद्रमा पर सबसे महंगी वस्तु पानी ही बन गया है।


ऐसा नहीं था कि लोग चन्द्रमा पर अपनी मर्जी से रहने गये थे। आज से साठ वर्ष पूर्व 2020 में जब पृथ्वी पर कोरोना वायरस का प्रकोप छाया था तब लोगों को पृथ्वी पर रहना सुरक्षित नहीं लग रहा था और वे किसी नई जगह पर बसने की कोशिश कर रहे थे। कोरोना के साथ ही पृथ्वी पर बढ़ता प्रदूषण, संसाधनों की कमी, राष्ट्रों के मध्य युद्ध और अंत में चीन के एक निर्जन द्वीप पर हुये रासायनिक गैस स्राव से संपूर्ण धरती पर हाहाकार मच गया था। 5-7 सालों में हुई भयानक त्रासदी के फलस्वरूप मजबूरी में लोगों ने चंद्रमा पर रिहायशी बस्तियाँ बसाना शुरू किया था। पहले तो बस वीआईपी और बड़े समृद्ध शाली अमीर घरानों को ही वहाँ भेजा गया था। धीरे -धीरे अन्य लोगों ने भी वहाँ रहने का मन बना लिया। अपनी अपनी हैसियत अनुसार लोग धीरे धीरे चंद्रमा पर रहने जाने लगे।


शुरू में वैज्ञानिकों की सोच थी कि कुछ अमीर, स्वस्थ और बुद्धिमान व्यक्ति जो इंसानी सभ्यता को बचाये रखने के लिये जरूरी हैं उन्हें चाँद पर सुरक्षित रखा जायेगा और बाकी लोग पृथ्वी पर ही रहकर इसे सहेजने की कोशिश करेंगे। लेकिन एक दूसरे को देखकर सभी में चाँद पर जाने की होड़ मच गई और लगभग 2035 तक दुनिया की 80% आबादी चंद्रमा पर पहुँच गई। 2040-50 के आस -पास तक पृथ्वी पर रासायनिक प्रदूषण और वातावरण में बढ़ती मीथेन गैस के परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवन पूर्णतः समाप्त हो गया। ना इंसान, ना जीव-जंतु और ना ही किसी प्रकार की वनस्पति, किसी समय हरी-भरी और जल की उपस्थिति से नीले रंग की दिखने वाली पृथ्वी सन 2050 तक मात्र 30 सालों में ही मंगल ग्रह जैसी निर्जन हो गई थी। जहाँ जीवन की कल्पना संभव तो थी पर आसान नहीं।


लोगों ने अपने मतलब और फायदे के लिये पहले पृथ्वी और प्रकृति का दोहन किया, फिर जब पृथ्वी पर जीना दुष्कर हो गया तो इंसान ने चंद्रमा को घर बना लिया। लेकिन इसकी सजा मिली उन निर्दोष जीवों और वनस्पतियों को जो इंसान के कुकर्मों और लालच का परिणाम भोगते हुये विलुप्त हो गये।


इंसान बेहतर जीवन की उम्मीद लेकर चाँद पर आया था लेकिन जिन्दगी तो चाँद पर भी आसान नहीं थी। लोग कुपोषण के शिकार हो गये थे, ब्लडप्रैशर, कैंसर और ना जाने कितनी तरह की नई बीमारियों ने लोगों को घेर लिया था। लोगों को अपने माता-पिता और दादा-दादी से सुनी पृथ्वी की आसान और स्वस्थ जिन्दगी याद आने लगी थी। चंद्रमा पर रहने वाले लोग वापस पृथ्वी पर आना चाहते थे लेकिन पृथ्वी का वातावरण तो इतना दूषित हो चुका था वहाँ पर इंसानों का रहना अब मुमकिन नहीं था।


पृथ्वी पर वापस आने की चाह हर बीतते साल के साथ बढ़ती जा रही थी। इंसानों के अंदर अब लालच की अपेक्षा जिंदा रहने की इच्छा अधिक प्रबल हो गई थी। वैज्ञानिक हों या डॉक्टर, उद्योगपति हों या राष्ट्राध्यक्ष सभी अपने स्तर पर पृथ्वी पर पुनः जीवन की उम्मीदें ढूँढ़ रहे थे और पूरी शक्ति और संसाधन इसी ओर झोंक रहे थे।


आखिरकार 07 अक्टूबर 2080 को चंद्रमा पर वैज्ञानिकों ने सभी को संबोधित करते हुये एक खबर सुनाई - " हमारी पृथ्वी अन्य ग्रहों से सिर्फ इसलिये अलग है क्योंकि ये हमेशा खुद का उपचार करती रहती है। पृथ्वी की इसी सेल्फ-हीलिंग पावर के कारण सिर्फ इसी ग्रह पर जीवन संभव था। पृथ्वी पर कुछ समय पहले चट्टानों पर शैवाल उगी थी, जिससे प्रेरित होकर हमारे काबिल वैज्ञानिकों ने कुछ फसलों को जैनेटिकली मॉडीफाइड करके पृथ्वी के कठिन वातावरण में उगाने लायक बनाया था। उन जैनेटिकली मॉडीफाइड बीजों को कुछ महीने पहले पृथ्वी पर बोया गया था जिनमें से कुछ अंकुर निकले हैं। ये एक सिग्नल है कि आने वाले कुछ वर्षों में हम या शायद हमारी आने वाली पीढ़ियाँ वापस पृथ्वी पर रह पायेंगीं। बस इस बार जब हम वापस धरती जायें तो हमारी पीढ़ियाँ अपने फायदों के साथ पृथ्वी का संतुलन भी बनाये रखने की कोशिश करें। क्योंकि हमारा अस्तित्व हमारी पृथ्वी के होने से ही है, हम अंतरिक्ष में कुछ वर्षों के लिये किसी भी ग्रह पर जा सकते हैं पर सुकून भरे जीवन की कल्पना हम सिर्फ पृथ्वी पर ही कर सकते हैं।"


आज वर्षों बाद लोगों को सच्ची वाली खुशी महसूस हुई, आँखों में पृथ्वी की यादें और बातें दोनों घूमने लगे, वैसी पृथ्वी जो उन्होंने सिर्फ किस्सों कहानियों में सुनी थी। पृथ्वी पर उगे कोमल नन्हे पौधे चंद्रमा पर बसे इंसानों के मन में भी जीवन की उम्मीदों के नवांकुर बनकर उभरे हैं, अपने साथ पृथ्वी का भी ख्याल रखने के लिये लोग अब दृढ़ संकल्पित हैं।



Rate this content
Log in