vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy

5.0  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy

मुन्नी एक गरीब बच्ची

मुन्नी एक गरीब बच्ची

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सुंदर बड़ी बड़ी आँखें, गोल चेहरा कितनी प्यारी थी।

"क्या नाम है तुम्हारा ?" अनायास ही मेरे मुँह से निकला.."मुन्नी.." उसने कहा... दस ग्यारह साल की होगी... "कौन सी कक्षा में पढ़ती हो ? मैंने पूछा... उसने सकुचाते हुए जवाब दिया.. "पढ़ती नहीं हूँ..." "ओह.." मुँह से निकला- "चलो कल से मैं तुम्हें पढ़ाऊँगी...." कह कर आगे चल दी मैं.... अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में आयी थी गाँव में, इसलिए कुछ लोगों से दोस्ती हो गई।

मुन्नी पक्की दोस्त बन गई... "अबके शहर गई तो तुम्हारी किताबें ले आऊँगी, तुम पाठशाला जाना अब से ?

मैंने मुन्नी से कहा तो उसने अपनी बड़ी-बडी आँखों से ऐसे देखा जैसे मैंने कोई खज़ाना देने की बात की हो... रोज दिन यूँ ही निकल जाता... एक दिन मुझे कुछ काम से शहर जाना पड़ा.... "आज पढ़ाई नहीं होगी मुन्नी आज शहर जाना पड़ रहा है... आने में रात हो जायेगी..."

वो तपाक से बोली, "दीदी, मेरी किताबें लाना मत भूलना, वरना मैं आपसे कभी बात नहीं करूँगी..."

अरे बाबा, मुझे याद हैं लेती आऊँगी।"

"और हाँ कितनी भी देर से आओ किताबें देकर ही जाना...."

"ठीक है मेरी माँ और कुछ..."

"नहीं दीदी अब तुम जाओ जल्दी आना..."

बड़े सारे काम थे मुझे लौटने मे कुछ अंधेरा सा हो गया... पर मुन्नी ने तो फरमान जारी कर रखा था पहले मेरी पुस्तकें देकर जाना चाहे कितनी भी देर हो जाय... चलो फिर पहले उस नटखट को ही किताबें दे आऊँ... सोचते हुए मैं उसके घर की तरफ चली गई... मुन्नी ओ मुन्नी आवाज लगाई तो उसकी माँ बहार आई... "बाहर ही थी मेमसाहब खेल रही थी अभी भीतर लौटी नहीं..."

"अरे, पर बाहर तो कोई भी नहीं और फिर अंधेरा भी होने लगा है...."

"अरे, पर यहीं तो खेल रही थी.."

माँ की आवाज मे अब कंपन था... "घबराओ नहीं चलो उसकी सहेलियों को पूछ लेते हैं..."

पूछने पर पता चला की वो काफी देर से गायब थी, सबने सोचा की घर चली गई... अब मुझे भी चिन्ता होने लगी .. मैने उसकी मांँ से कहा- "थाने चलो.." तो उसके पिता ने बीच में ही.. "अरे नहीं, मेमसाहब हम ढूंढ लेंगे आप कष्ट मत करो..." परेशान सी हो गई मैं, बेटी मिल नहीं रही, थाने ये लोग जाना नहीं चाहते, पर क्यूँ समझ नहीं आया... उसकी माँ अनजाने भय से रोती जा रही थी... बड़ी मुश्किल से समझाने पर वो लोग थाने जाने को तैयार हुए.... थाना क्या छोटी सी एक चौकी थी... "एक शिकायत दर्ज करनी है।" मैंने कहा।

"क्या शिकायत.." एक भद्दी सी आवाज... "एक बच्ची नहीं मिल रही, जरा ढूंढने में मदद करें..."

"आ जाएगी ये रोज का काम है यहाँ, बेकार परेशान मत करो..." मुझे गुस्सा आ गया और जब मैंने धमकी दी तो वो हमारे साथ मुन्नी को ढूंढने तैयार हो गया.... उसके घर से कुछ ही दूरी पर झाड़ियों में मुन्नी खून से लथपथ पड़ी थी... मेरा दिल एक अनजान आशंका से बैठ गया.... "चलो जल्दी अस्पताल ले चलो इसे...." अस्पताल में पहुँचे पता चला वो मर चुकी है.... अजीब खामोशी छा गई ये क्या हो गया... "डाक्टर साहब कुछ पता चला रिपोर्ट से...."

"जी बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है और गला घोंट कर हत्या की गई है..."

हत्या दुष्कर्म दिल बैठ सा गया.... "दरोगाजी आप शिकायत दर्ज करें और पूछताछ करें की किसकी करतूत है..." मेरी आवाज से दरोगा चौंक गया, फिर संभल कर बोला- "अरे मैडम, यहाँ ऐसा होता रहता है फिर शिकायत की कौनसी सुनवाई है... इन्हें भी रोज थाने बुलाया जाएगा तफ्तीश के लिए तो इनको अपना काम धंधा छोड़ आना पड़ेगा...."

मैं अवाक रह गई दरोगा की बातें सुनकर... क्या" कहा आपने, रोज होता है ,फिर आप क्या करते हो, किस बात की तनख्वाह लेते हो...."

"हमें भी बच्चे पालने हैं मैडम, आप तो कल चली जाओगी फिर कौन करेगा ये सब...."

"ओह तो आप शिकायत दर्ज नहीं करेंगे...."

"देखो मैडम, वैसे भी जिनकी बेटी है शिकायत तो उनके नाम से दर्ज होगी, उनसे पूछ लीजिये, तो जैसा आप कहें..." मैंने उनकी तरफ देखा... "मेमसाहब जो होना था हो गया, शिकायत दर्ज करने से बेटी तो वापस नहीं आएगी..."

अरे ये क्या, मेरे जोर देने पर शिकायत दर्ज हो गयी... पर ये क्या दूसरे ही दिन वापस ले ली गई... पूछा तो पता चला- "मेमसाहब रहना तो यहीं है, काम नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या, फिर दो बेटियाँ और हैं उनकी हिफाजत भी देखनी है... हमें नहीं पड़ना किसी चक्कर में, आप चली जाओगी पर हमें यहीं रहना है..."

मुझे कहानी कुछ-कुछ समझ आ रही थी.... पर सुबूत नहीं था कुछ, चलो एक बार शहर जाकर अपनी महिला मोर्चा वाली सहेलियों से बात करते हैं शायद वो मदद कर सकें...

"अरे निशी कैसी बात कर रही हो.... गाँव जाकर वो भी ऐसे गाँव जहाँ कोई सुनवाई नहीं... ना बाबा ना हम कुछ नहीं कर सकते... वहाँ जाकर कहीं हमें ही लेने के देने ना पड़ जाए..."

"ओह पर फिर किस मदद की बात करती हो तुम लोग की हम महिलाओं को इंसाफ दिलाते हैं... रेप केस पीड़ितों की सहायता करते हैं... महिलाओं के उत्थान के कार्य करते हैं..."

"अरे निशि हमने ये कार्य कुछ समय पास के लिये किया है नाम का नाम और टाइम पास भी अपनी जान जोखिम में डालने के लिए थोड़े करते हैं हम कुछ....हमारी मानो ज्यादा पचड़ों में मत पड़ो... इनके साथ तो रोज की कहानी है..."

"समझी कोई बात नहीं, चलती हूँ...."

मन भारी था, कैसा समाज है बेटी के साथ इतना कुछ हो गया, पिता मौन है क्योंकि उसके पास लड़ने की ताकत नहीं.... माँ बेबस है उसे बाकी दो बेटियों की धमकी मिल रही है...कानून गूंगा और बहरा हो गया है... और शैतान ताकतवर हो गया है.... फैशन के लिये मोर्चे हो रहे हैं... बेबस मुन्नी के लिये किसी के पास वक्त नहीं... किताबें टेबल पर रखी थीं ले तो आयी थी फिर क्यूँ रूठ गई प्यारी मुन्नी कह कर रो पड़ी थी मैं... संवेदनहीन समाज मे एक मासूम को इंसाफ दिलाने के लिए कोई नहीं था... मानवता सिसक सिसक कर रो रही थी हैवानियत खिलखिलाकर हँस रही थी... ऐसी कितनी मुन्नी होंगी जिनका जिक्र तक दफन कर दिया गया होगा, सोचते ही निकल पड़ी थी मैं एक-दूसरे ही प्रोजेक्ट पर..... कोई तो पहल करे।


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