Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Shubham rawat

Abstract Drama Romance

4.0  

Shubham rawat

Abstract Drama Romance

मुलाक़ात

मुलाक़ात

6 mins
293


देहरादून रोडवेज़ स्टेशन से चलने वाली एक बस, जो आज शाम को छह बजे से अल्मोड़ा के लिए चलेगी। बस से अपने मंजिल तय करने वाले मुसाफिर, बसों तक आ गये हैं। किसी का कोई अपना उसको छोड़ने आया है, तो कोई अकेला।

ऐसा ही एक अकेला मुसाफिर, ललित भी बस में चड़ गया है। और अपने टिकट के अनुसार अपने सिट में जाकर बैठ गया है। सिट में बैठने के बाद वो जेब से अपना मोबाइल फोन निकालता है। उसके बाद अपने बैग से ईयर फोन निकालकर, गीत सुनने लगता है। और फोन में बिजनेस न्यूज पढ़ने लगता है।

बस धीरे-धीरे मुसाफिरों से भर जाती है।

लगभग सभी यात्री गण अपने-अपने सीटों में बैठ चुके होते हैं। तभी बस में एक लड़की चढ़ती है। जो अपने सीट के अनुसार अपने जगह में बैठने के लिए बढ़ती है। और अपने सीट पर बैठ जाती है।

ललित, गीत सुनने में मगन होता है और खिड़की से बाहर ना जाने शून्य में क्या ताकता रहता है। उसे इस बात का भी ध्यान नहीं है कि उसके बगल में कोई लड़की आकर बैठी है।

तभी वो लड़की, ललित का कंधा हिलाते हुए उससे बोलती है,

"हाई!"

ललित एक पल को सोचता है, 'कि ये क्या हुआ।' फिर अपने कानों से ईयर फोन निकालता है, और कहता है,

"हाई!"

खुशी बैठे-बैठे ही गले मिलने के लिए अपने बाहे फैलाती है। ठीक साथ में ललित हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है। ललित का हाथ देखकर खुशी अपना हाथ बढ़ाती है। खुशी की बाहे देखकर ललित अपनी बाहे फैलाता हैं। अब खुशी हाथ बढ़ा देती है और ललित बाहे। दोनों थोड़ा सा हँस देते हैं फिर बैठे-बैठे ही गले मिलते हैं।

"तू तो इतना मगन बैठा है कि कोई बगल में आकर बैठ गया है, ये भी नहीं मालूम।" खुशी ने कहा।

ललित इस पर कोई जवाब नहीं देता है। बस थोड़ा सा मुस्कुरा देता है।

फिर खुशी ही बातों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए बोलती है, "मैं जब सीट में बैठने को आ रही थी, तो मैं कहूं ये लड़का देखा-देखा सा लग रहा है। फिर ध्यान आया ये तो ललित है। वैसे बड़े बालों में अच्छा लग रहा है तू।"

"अरे, थैन कियू।"

बस धीरे-धीरे स्टेशन से निकलकर रोड में बढ़ने लगती है। और अपने सफर की शुरुआत कर देती है।

"घर जा रही है?" ललित बस के चलते ही सवाल करता है।

"हां, कालेज की छुट्टियाँ पड़ गयी थी। दो-चार दिन अपने बुआ के यहां रुकी थी।"

"अच्छा, बुआ लोग रहते हैं यहां।"

"हां, और तू किस काम से आया था देहरादून?"

"मैं भी रिश्तेदारी में ही आया था।"

कुछ देर दोनों चुप-चाप बैठे रहते हैं। रात का सफर और गहरा होते चले जाता हैं। सड़को में वाहन अपनी-अपनी रफ्तार में दौड़े जाते हैं।

चुप्पी तोड़ते हुए ललित बोलता है, "ये रोडवेज़ वाले कितने तेज चलाते हैं ना गाड़ी।"

"हां।" इस पर खुशी सीधा सा जवाब देती है।

"मेरी मम्मी तो कहती है कि ये रोडवेज़ वाले रात को नींद में ही बस चला देते हैं बल।"

खुशी हँस देती है। और कहती है, "मेरी दादी भी ऐसा ही कहती थी।"

"तो तू क्या कर रही है?" ललित पूछता है।

"बी.बी.ए, " खुशी जवाब देती है, "और तू क्या कर रहा है?"

"मैं, बी.कॉम।"

"अल्मोड़ा से ही।"

"हां, और तू तो यहीं देहरादून से कर रही होगी।"

"हां।"

बातों का सिलसिला यूं ही दो घंटे तक चलते रहता है। बस का ड्राइवर, बस को रोड के किनारे एक रेस्टोरेन्ट के सामने रोकता है और इंजन को बंद कर देता है। बस का कंडेक्टर कहता है, "जिसे कुछ खाना-पीना हैं, खालें। बाहर वगैरह जाना हैं तो जाले। फिर बस सीधा अल्मोड़ा ही रुकेगी।"

कंडेक्टर और ड्राइवर बस से उतर जाते हैं। और कुछ मुसाफिर भी बस से उतर जाते हैं।

"कुछ खा लेते हैं।" खुशी कहती है।

"चल।" ललित कहता है।

दोनों बस से उतर जातें हैं। और रेस्टोरेन्ट के अंदर जाकर एक टेबल को खाली देख उसमें बैठ जाते हैं।

"तो क्या खायेगी?" ललित पूछता है।

"तू बता क्या खायेगा।" खुशी कहती है।

"अरे बता ना।"

"अरे तू बता ना।"

"आलू-गोभी की सब्जी और रोटी खा लेते हैं।"

"ठीक है।"

"आलू-गोभी पंसद है ना। नहीं तो कुछ और खा ले।"

"आलू-गोभी फेवरेट है मेरी।"

"चल में ऑर्डर कहके आता हूँ।" ललित ऑर्डर देने काउंटर पे चला जाता है। और ऑर्डर देकर वापस टेबल पे आकर बैठ जाता है।

"दे आया ऑर्डर।" खुशी पूछती है।

"हां।"

दोनों फिर थोडे़ देर के लिए चुप हो जाते हैं। दीवाल में टकी टी.वी की तरफ देखने लग जाते है। जिसमें समाचार चल रहे होते हैं।

ऑर्डर लेकर एक लड़का उनकी टेबल में दो प्लेट में आलू-गोभी और एक प्लेट में रोटिया रख कर चला जाता है।

"तो शुरु करें।" खुशी कहती है।

"चल।" ललित कहता है।

दोनों खाना खाने लगते हैं।

"सब्जी सई होरी ना।" ललित बोलता है।

"हूह।" खुशी कहती है।

थोड़े देर में वो लड़का वापस आकर पूछता है, "रोटी-सब्जी लाऊँ।"

"हां, थोड़ी सब्जी और दो रोटी ले आओ, " लड़के की तरफ देखकर कहता है, "तू और खायेगी, " फिर ललित खुशी की तरफ देखकर कहता है।

"नहीं-नहीं।" खुशी बोलती है।

लड़का दोबारा रोटी-सब्जी लाकर टेबल में रख जाता है।

"इतना खाना खा रहा है। जाता कहां है।" खुशी बोलती है। फिर उठ कर हाथ धोने चले जाती है। और खाने के रुपये भी दे आती है। तब तक ललित भी खाना खाकर हाथ धोने चले जाता है।

"तूने पैसे दे दिये क्या?" ललित पूछता है।

"हां।" खुशी बोलती है।

दोनों खाना खाकर वापस बस में अपने सीट पर बैठ जाते हैं। थोड़े देर में बस भी वापस चल पड़ती है।

कुछ देर फिर दोनों खामोश बैठे रहते हैं। खामोशी तोड़ते हुए खुशी पूछती है, "गर्लफ्रेंड है तेरी?"

"नहीं।" ललित सीधा सा जवाब देता है।

"कोई पसंद तो होगी।"

बस में कुछ लोग सो चुके होते हैं। और कुछ लोग अपनी-अपनी बातों में मशगूल होते हैं। और एक दो लोग उन दोनों की बातों में कान लगाये रहते हैं।

"हां।" ललित, खुशी के तरफ देखकर जवाब देता है।

"कौन है?" खुशी पूछती है।

"क्या करेगी जानकर। ये बता तेरा कोई है, बॉयफ्रेंड?"

"हां, था। पर अब ब्रेकअप हो गया है।"

"अच्छा।" ललित एक प्रतिक्रिया देता हुआ कहता है।

फिर बातों का सिलसिला थम सा जाता हैं। फिर दोनों के बीच खामोशी छा जाती हैं। बस में कुछ लोगों के बातें करने की हल्की-हल्की खूसूर-पूसूर सुनाई देती हैं।

"मुझे ऐसा प्यार समझ में नहीं आता जिनमें ब्रेकअप हो जाता है।" ललित बातों के सिलसिले को वापस शुरू करते हुए बोलता है।

"क्यों?" खुशी पूछती है।

"पहले प्यार हुआ, फिर ब्रेकअप हो गया। फिर दूसरे से प्यार हुआ, फिर ब्रेकअप हो गया। ये कैसा प्यार हुआ?"

"पता नहीं।"

दोनों फिर कुछ देर के लिए खामोश हो जाते हैं। बस में सफर करते मुसाफिर सो चुके होते हैं।

"मुझे तेरी एक स्कूल की वो वाली बात याद है।" खुशी कहती है।

"कौन सी वाली?" ललित पूछता है।

"जब तू क्लास में नया-नया आया था तो तुझको सर ने पूजा के साथ बैठने को कहा था। और तूने मना कर दिया। तो सर ने तुझसे पूछा, 'क्यों।' तो तूने जवाब दिया था, 'मेरे पंडित ने लड़कियों के साथ बैठने को मना किया है।' और पूरी क्लास हँस पड़ी थी।"

"अरे मैं उससे पहले तक केवल बॉयस स्कूल में पढ़ा था ना।"

दोनों उसके बाद बहुत देर तक बातें करते हैं। और बाते करते-करते ही सो जाते हैं।

ललित और खुशी दोनों ने बारहवीं एक ही स्कूल से पास किया था। शायद ही उन्होंने कभी स्कूल के दौरान इतनी बातें करी हो जितनी की आज करी।

इसे ही कितने लोग हैं जिनसे हम बातें करना चाहते हैं। और कितने ही लोग हमसे बातें करना चाहते हैं। पर आज कल लोग बातें कहा करते हैं। सिर्फ सवाल-जवाब करते हैं।

बस अल्मोड़ा पहुँचने ही वाली होती है। दोनों जाग चुके होते हैं।

"मैं तो बस अब उतरने वाली हूँ।" खुशी बोलती है।

"मैं तो स्टेशन में ही उतरूंगा।" ललित बोलता है।

"ला, अपना नंबर दे दे।" खुशी अपना फोन ललित की तरफ बढ़ाते हुए बोलती है।

ललित अपना नंबर खुशी के फोन में सेव कर देता है। और खुशी बस को रुकवाकर अपने जगह में उतर जाती है। एक मिनट बाद बस स्टेशन में पहुँच जाती है और ललित भी स्टेशन में उतर जाता है।

   



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