सुबह सुबह
सुबह सुबह
सागर और पवन दोनों ही बारहवीं में पढ़ते हैं। पढ़ते तो अब क्या ही है; कल ही आखरी पेपर देकर सांस ली है। इसलिए मन हल्का करने के लिए आज सवेरे-सवेरे दौड़ लगाने गये थे। दौड़ तो अब क्या ही लगाई, जितना पैदल यात्रा करके आये हैं।
दौड़ की शुरुआत तो नंदा देवी मंदिर से करी थी पर मुश्किल से एक किलोमीटर भी दौड़े हो। एस.एस.बी पहुंचने तक तो ढंग से ही पैदल हो लिए। और जैसे ही एस.एस.बी के जवान को देखा तो दौड़ने लग गऐ।
गेट पे ड्यूटी करता जवान भी उनको सवेरे-सवेरे दौड़ता देख बोला, "शाबास!" अब जवान को क्या मालूम इनकी हालत कितनी खराब है। अभी उदय शंकर म्यूजिक ऐकडमी तक ही चले थे; कि मन में उनके ख़्याल आया। और वो म्यूजिक ऐकडमी के बगल से ऊपर खूले मैदान में चड़ गये। और अल्मोड़ा की खूबसूरती को देखने लगे। सुबह-सुबह तो वहां से पहाड़ो में बसा अल्मोड़ा और भी प्यारा लगता है। उसके बाद पूरी दौड़ पैदल ही करते हैं। तब जाके वो दोनों धारानौला पहुँचते है।सागर अपने कमरे में चला जाता है। और साथ में पवन भी थोड़े देर सुस्ताने के लिए उसके कमरे में आ जाता है। सागर अपनी चारपाई पे लेट जाता है। और पवन दिवाल में पीठ टिकाकर लेट जाता है। और फिर उनके बातों का सिलसिला शुरु होता हैं।
"पूजा नहीं दिखाई देरी?" पवन ने पूछा।
"टियूशन गयी है। पता नहीं टियूशन भी उसी टीचर से क्यों पढ़ते है, जो स्कूल में ही पढ़ाते है। जैसा स्कूल में पढ़ायेंगे, वैसा टियूशन में भी पढ़ायेंगे। खाली टियूशन के नाम पे पैसा फूकना होता है। और कुछ नहीं।" सागर ने टियूशन के प्रति अपने विचार रखते हुए कहा। पूजा, सागर की बहन है।
"अच्छा! जैसे तु टियूशन ही नहीं गया है ना।" पवन ने तंज कसते हुए कहा।
"चुप रो!" सागर ने होठो पे मुस्कान छुपाते हुए कहा।
"भाई कुछ सोचा है फिर, आगे क्या करना है। ये बी शाली एक टेंशन है। आगे का भी सोचना पड़ता है। पता नहीं क्या करना है, ये बी समझ नहीं आरा। बड़ी परेशानी हैं।" पवन ने अपने भविष्य की चिंता जाहिर करते हुए सारी बात बोल डाली।
"अभी तो पेेपर खत्म हुए हैं। अब जाकर तो मन जरा हल्का-हल्का हो रहा है। और तु लगा है, क्या करना है-क्या करना है।" सागर चारपाई से खड़ा उठ, किचन से पानी का बोतल ले आता है। और पानी पीने लगता है।
"कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं, बाद अर्मत पिलाने से क्या फायदा....... " पवन के इतना गुनगुनाने तक सागर पानी की बोतल पवन को बड़ा द
ेता है। पवन एक सांस में बाकी का बचा पानी बोतल में से एक ही घूट में पी जाता है।
दोनों बातों में मगन थे कि तभी कोई, सागर के कमरे का दरवाजा खट खटाता है। आवाज से जान पड़ता है कि, बगल वाली आंटी है। सागर अपने चारपाई से उठकर दरवाजा खोलता है।
"अरे बेटा, मेरा सिलेंडर खत्म हो गया है, जरा नया वाला लगा दे। मुझसे बदला नहीं जाता है ना। बच्चों के लिए खाना भी बनाना है, स्कूल के लिए देर हो जाएगी नहीं तो।" आंटी ने फटाफट अपनी समस्या बताते हुए कहा।
"ठीक है आंटी। आप चलो मैं आता हूँ।"
और सागर बगल के कमरे में रहने वाली आंटी का सिलेंडर बदलने चले जाता है।
वापस कमरे में लौट कर सागर, अपने और पवन के लिए चाय बनाता है। और दोनों ही चाय के लंबे-लंबे सूडूक मारने लगते हैं।
"ये बगल वाली आंटी इतनी चबरदस्त औरत है ना, अब तुझे क्या बताऊ।" सागर, चाय का घूँट भरते हुए कहता है।
"क्याें, ऐसा क्या किया आंटी ने। जो आंटी जबरदस्त हो गयी?" पवन ने पूछा।
"अबे अब क्या बताऊ तुझे। एक दिन आंटी अपने बेटे से कह रही थी, 'कमलेश पढ़ाई करने बैठ जा हा। नहीं तो तेरी शिकायत तेरे बाप से कर दूंगी।' तो कमलेश कहता है, 'मैं भी कर दूंगा तेरी शिकैत पापा से, कि तू उनकी बिड़ी छुप-छुप कर टॉयलेट में पीती है।'" सागर आंटी की जबरदस्त होने वाली कहानी सुनाता है। और कहानी सुनते ही पवन के नाख से चाय का मारा हुआ घूट बाहर निकल आता है।
"क्या कर रहा है बे। चाय पीनी नहीं आती है!" सागर हँसते-हँसते खुद की हँसी को काबू करते हुए बोलता है।
पवन खांसते-खांसते हँस रहा होता है। और खांस लेने के बाद बोलता है, "हरामखोर कहीका! आंटी बी बड़ी जगब है।" फिर दोनों हँसने लग जाते हैं। और बिना कुछ बोले बची हुई चाय खत्म करने में लग जाते हैं।
चाय पी लेने के बाद पवन ग्लास को चारपाई के टांग के पास रखता है, और चारपाई से खड़ा उठते हुए बोलता है, "चल यार अब मैं चलता हूँ।"
"चल ठीक है फिर जाओ बेटा जी, जाओ।" "पापा बोल बेटा, पापा!"
"चला जा नहीं तो लपेट दूँगा।"
"चल-चल हो गया। फोन करूंगा बाद में, आ जाना टाईम से।"
"चल ठीक है फिर भाई।"
और पवन, सागर के कमरे से बाहर निकल, सिढ़िया ऊतर कर अपने घर की ओर बड़ जाता है।
पवन के चले जाने के बाद सागर बिस्तर पे छत की ओर देखता हुआ लेट जाता है।