मुक्ति एक रूह की भाग 2
मुक्ति एक रूह की भाग 2
("पिछले भाग में आपने पढ़ा कि विप्रांश को जब से दृष्टि मिली, उसे अजीब सपने दिखाई दे रहे थे। एक दिन अचानक वो एक घर के करीब पहुंचता है।")
अब आगे
दीवार अभी आधा ही तोड़ा था कि अंदर एक आदमी का कंकाल दिखाई दिया।
उसने दीवार तोड़ना छोड़ पुलिस को फोन किया।
थोड़ी देर में उस थाना क्षेत्र की पुलिस आई, पुलिस सकते में थी। थाना अधिकारी राजेश के लिए ये बहुत बड़ी चूक थी।
उन्होंने अभी दो महीने पहले ही एक बच्ची की लाश इसी घर से बरामद की थी। आस पास इक्का दुक्का ही घर थे। किसी को उनके बारे में ज्यादा मालूम नहीं था।
पुलिस को कुछ पता नहीं चला। घर की छानबीन में जो कागजात मिले उससे घर के मालिक का नाम शेखर और बच्ची का नाम कुमुद पता चला।एक फैमिली फोटो मिली जिसमें शेखर, कुमुद, और मेघा, (मेघा शायद बच्ची की मां) की तस्वीर थी।
पुलिस को प्रथम दृष्टया शक शेखर पर गया कि पिता ने ही अपनी बेटी की हत्या की है।पु लिस ने जरूरी कागजात वहां से जब्त किए, जिसमें शेखर, कुमुद, और मेघा के आई डोनेशन कार्ड थे।
इसलिए कुमुद की आंखों के लिए डॉक्टर को फोन कर दिया गया। और उसके बाद शव को मोर्चरी में रखवा दिया गया। इन्वेस्टिगेशन अभी चल ही रही थी।
दो दिन बाद एक व्यक्ति पुलिस स्टेशन पहुंचा, उसने अपना नाम ऐलेन बताया ।
उसने बताया मैं शेखर बाबू के घर काम करता हूं। साहब और बेबी को क्या हुआ साहब,लोग बता रहे थे कि बेबी की किसी ने हत्या कर दी।
थानाध्यक्ष राकेश ने कहा_ हां, कुमुद की किसी ने हत्या कर दी है।
और शेखर गायब है, तुम क्या जानते हो इन सभी के बारे में,और वारदात की रात तुम कहां थे?
साहब मैं पिछले साल काम की तलाश में था तो शेखर साहब अपनी बच्ची के साथ इस घर में आए थे, उन्हें भी एक नौकर की तलाश थी।
मैं उनके पास गया तो उन्होंने कुछ पूछताछ के बाद मुझे नौकरी पर रख लिया।कुमुद बिटिया बहुत प्यारी थी।
साहब अक्सर एकांत में होते तो गुमसुम रहते, उनका दुखी चेहरा देख एक दिन मैंने उनसे पूछ ही लिया कि साहब, मेमसाहब कब आएंगी ?
शेखर बाबू की आंखें भर आईं ।
,मुझे लगा मैने शायद गलत सवाल पूछ दिया।
उनसे मुझे पता चला कि, मेम साहब की मृत्यु हो चुकी हैं।
साहब ने बताया था, मेघा मेमसहब और वो कनाडा में मिले थे, वो बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई करने जब कनाडा गये थे। मेघा मेमसाहब, साहब की जूनियर थी।
साहब ने बताया था कि
हिंदुस्तानी होने के कारण वो मेरी ओर खिंच रही थी ।
उसके परिवार के लोग भारत से जाकर कई पीढ़ियों से कनाडा में बस गए थे।
इसलिए भारतीयों से उन्हें विशेष लगाव था।
मेघा और मेरी नजदीकी बढ़ी, आखिर परिवार की रजामंदी से हमारी शादी हो गई।
सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था, अचानक एक शाम मेघा के सर में भयानक दर्द हुआ, हॉस्पिटल जाने पर पता चला कि उसे कैंसर था, जो अब लास्ट स्टेज में है कभी भी उसकी मृत्यु हो सकती है।
करीब 6 महीने बाद, वह जिंदगी की लड़ाई हार गई ।
हमारा तो जैसे सबकुछ लुट गया था,आखिर मैने कनाडा छोड़ने का फैसला कर लिए, मैं वहां नहीं रह सकता था,उसकी यादें मुझे तोड़ राही थीं।
ऐलेन ने इतना कहने के बाद कहा, साहब बहुत अच्छे थे,उनकी यहां कई एकड़ जमीन थी, जिसपर वे फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाने वाले थे।उनका सपना था ऑर्गेनिक खेती कर खेती को नया आयाम देना
लेकिन भू माफियाओं की नजर बहुत दिनों से उनकी जमीन पर थी ।वे इस जमीन पर फ्लैट बनाने वाले थे। इसके लिए उन्हें काफी समय से धमकी दे रहा था।जिससे साहब इन दिनों बहुत परेशान रह रहे थे।
क्रिसमस आने वाली थी, इसलिए मैंने साहब से 15 दिन की छुट्टी मांगी, और अपने गांव चला गया, और जब लौटा तो कुमुद बिटिया की हत्या की खबर सुनी।
जरूर मेरे साहब के साथ कुछ बुरा हुआ है?
थाना अध्यक्ष राकेश ने कहा- उन्हें कौन धमकी दे रहा था, उसका नाम पता है?
जी नहीं साहब- एलेन ने कहा।
और आज जब विप्रांश ने उस घर में किसी आदमी का कंकाल मिलने की बात कही तो, राकेश चौक गया था।
पुलिस ने कंकाल निकालवाया। वहीं पास में एक अंगूठी बरामद हुई।
विप्रांश को थाने बुलाया गया, विप्रांश से राकेश ने पूछा _आप वहां क्यों गए थे?
विप्रांश ने जो बातें राकेश को बताया, उसे सुनकर राकेश को विश्वास ही नहीं हो रहा था, कि किसी मृतक की आंखों के कारण विप्रांश के साथ ये हो रहा था।
विप्रांश ने ये भी शक जाहिर किया कि हो न हो इसमें राणा का भी कोई कनेक्शन है ,राणा की जेसीबी मशीन मैंने उस घर के पास बने फार्म पर देखा था, और वहां राणा कंस्ट्रक्शन का बोर्ड भी लगा था।
राणा के मेरे ऑफिस में आते ही मेरे शरीर में अजीब सी हरकत हो रही थी, मैं उसे देख आग बबूला हो रहा था, जबकि मैं उसे जानता भी नहीं था।
करीब 15 दिन के अंदर फॉरेंसिक रिपोर्ट आ गई, कंकाल शेखर की थी।
अंगूठी की पड़ताल करने गई टीम ने सारे ज्वेलर्स से पता लगाने की कोशिश की। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई अंगूठी के ग्राहक का पता चल गया, वह शहर का बड़ा बिल्डर राणा ही था।
पूछताछ के लिए उसे थाने लाया गया, राणा ने अपने को गिरफ्तारी से बचाने के लिए कई पैंतरे अपनाए लेकिन उसकी एक न चली, आखिर कड़ाई से पूछ ताछ के बाद उसने कबूल किया की उसकी नजर शेखर की जमीन पर थी, वह वहां फ्लैट बनवाना चाहता था ।प्यार से, धमका कर, उसने शेखर को जमीन बेचने को तैयार करने की कोशिश की, लेकिन शेखर किसी भी कीमत पर जमीन बेचने को तैयार नहीं हुआ।
25 दिसंबर की रात थी, चारों ओर जश्न का माहौल था। रात के 11 बजे हम शेखर के घर पहुंचे, शेखर जाग रहा था, हमने उससे दोस्ती का हाथ मिलाया, और खूब शराब पिलाई। ज्यादा शराब के बाद वो बेहोश होता इससे पहले उससे रजिस्ट्री के कागज पर दस्तखत करवा लिया, उसके बाद मेरे गुर्गों ने उसे चाकू मार दिया।
फिर एक आलमारी के अंदर उसे डाल उसे बाहर से सीमेंट से बंद कर दिया।
इस उपक्रम में उसकी बेटी जो सो रही थी, उठ गई, जिससे हम सब डर गए, हम छोटी बच्ची को मारना नहीं चाहते थे, लेकिन उसे अगर छोड़ते तो हम नहीं बचते, इसलिए हमें उसे मारना पड़ा।
पुलिस इंस्पेक्टर राकेश ने कहा, लेकिन उसी बच्ची ने तुम्हें मर के भी सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। अब जेल में बैठ कर फ्लैट बनाना।
राणा को पर्याप्त सबूतों के आधार पर उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
दोनों लाशों का विप्रांश ने विधि विधान से दाह संस्कार किया।
उसके बाद से विप्रांश के साथ कोई भी अजीब घटना नहीं हुई, न ही कोई स्वप्न ही दिखाई दिया।
शायद उस रूह को अपने पिता के गुनाहगारों को सजा दिलवाकर मुक्ति मिल गई थी।

