Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

3.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Drama

मुखौटों में छिपे चेहरे

मुखौटों में छिपे चेहरे

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कभी कभी मुझे मुखौटों में छिपे चेहरों की स्मार्टनेस देखकर मज़ा आता है।उनके लिए कितना सिंपल होता है यह सब! भेड़ की खाल में भेड़िया होना। और यह काम कोई स्मार्ट बंदा ही कर सकता है,नही? क्योंकि कोई सीधा सादा इन्सान चाहकर भी उन मुखौटों को ओढ़ नही पाता है।

वह सीधा सादा इन्सान छिपा ही नहीं पाता है अपनी कमजोरियाँ। अपने अनगिनत दर्द और आँसू।  उनमे छिपी चाह और लाचारगी। और भी न जाने क्या क्या बातें। ताउम्र वह अपनी इन्ही हरकतों के साथ अपनी जिंदगी जीता जाता है। तमाम दुश्वारियों के साथ...इन्ही सब दुश्वारियों के बीच वह सीधा सादा इन्सान जब तब उस मुखौटा पहने वाले के साथ खुद को कम्पेयर करता रहता है। इन सब के बीच वह खुदको और कमतर आँकते रहता है। क्योंकि वह स्मार्ट नही होता है तो गाहे बगाहे ईश्वर को ही दोष देता रहता है।उसे लगता है की ईश्वर ने उसके साथ कितनी नाइंसाफी की है।

दूसरी ओर वह मुखौटे में छिपा इन्सान जिंदगी भर मज़े करता रहता है।उस मुखौटें में वह बड़ी आसानी से न जाने कितनी सारी बातें छिपाता जाता है। अपनी सारी मक्कारियाँ और चालाकियाँ को भी। अपनी इन हरकतों को वाइजली एक्शन्स कहते हुए पूरी जिंदगी बड़े ही मजे से बिताता है। अपने उस मुखौटें को भी वह जस्टिफाय करता रहता है। जिंदगी का क्या ? वह तो वैसे भी गुज़र जाती है। मुखौटें में भी और मुखौटें में ही।  


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