Priyanka Gupta

Tragedy Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Tragedy Inspirational

मुझे तुम्हारे कंधे नहीं चाहिए

मुझे तुम्हारे कंधे नहीं चाहिए

6 mins
400


"पापा, देखो दादाजी की फोटो छपी है अख़बार में" 7 वर्षीय चिंकू हाथ में अख़बार पकड़े ज़ोर-जोर से चिल्ला रहा था।

"अरे दिखाओ तो सही" चिंकू के पापा उमेश ने उसके हाथ से अख़बार छीनते हुए कहा।

तब तक उमेश की पत्नी निहारिका भी किचन से बाहर आ गयी थी। "श्री कुलभूषण अग्रवाल जी को अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस के उपलक्ष्य में उनके सामाजिक कार्यों के लिए राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया जाएगा। ",उमेश ने जोर -जोर से पढ़ते हुए कहा।

"देखा, पापाजी हम सबको इस डब्बे जैसे फ़्लैट में छोड़कर मजे से सम्मानित हो रहे हैं और यहाँ तुम दोनों भाई उनको ढूंढ -ढूंढ कर दुबले होते जा रहे थे। अभी जेठ जी को भी फ़ोन करके बताओ। ",निहारिका ने उमेश से कहा।

लगभग एक साल पहले संयुक्त सचिव के पद से सेवानिवृत हुए ;कुलभूषण जी ग़ायब हो गए थे। कुलभूषण जी की पत्नी उनकी सेवानिवृत्ति से २ साल पहले ही स्वर्ग सिधार गयी थी। कुलभूषण जी ने नाम, पैसा सभी कुछ अच्छा कमाया था। कुलभूषण जी के दो बेटे सुयश और उमेश थे। दोनों की शादियाँ हो गयी थी। कुलभूषण जी ने बच्चों के साथ अच्छे से रहने के लिए शहर में एक बड़ा बंगला बनवाया था। उनका बड़ा

बेटा सुयश चार्टेड अकाउंटेंट था और छोटा बेटा उमेश सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। कुल मिलाकर कुलभूषण जी एक सुखी व्यक्ति कहे जा सकते थे। अच्छे से सेवानिवृत हो गए थे और दोनों बेटे भी अपने पैरों पर खड़े थे। बस कमी थी तो जीवन साथी की।

कुलभूषण जी की सेवानिवृत्ति के बाद सब कुछ बदलने लगा था। दोनों बेटे और बहुओं ने उन पर कई पांबंदियाँ लगा दी थी। अनुशासन पसंद और समय के पाबन्द कुलभूषण जी के दैनिक कार्यों में अब विलम्ब होने लगा था। रोज़ सुबह चाय के साथ अखबार पढ़ने वाले कुलभूषण जी को कभी अखबार नहीं मिलता या कभी चाय नहीं मिलती।

उस पर तुर्रा यह कि दोनों बहुएँ निधि और निहारिका कह देती कि, " पापाजी आप तो घर पर ही रहते हो। थोड़ा देर से अखबार पढ़ लेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा ?थोड़ा देर से चाय पी लेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा ?"

दोनों बेटे उमेश और सुयश भी अपनी पत्नियों की हाँ में हाँ मिलाते। कुलभूषण जी को अपने पोते -पोतियों के साथ खेलना अच्छा लगता था। लेकिन बहुओं ने अब उनके ऊपर पोते -पोतियों को रोज़ शाम को घुमाने की जिम्मेदारी डाल दी।

एक दिन कुलभूषण जी ने अपने दोस्तों के साथ शाम को थिएटर जाने का कार्यक्रम बनाया और जब वह लौटकर आये तो बेटे और बहू सब उन पर नाराज़ होने लगे और कहने लगे कि, " पापा, सारा दिन घर पर बैठे रहते हो। केवल शाम को बच्चों को घुमाकर लाना होता है ;आप से वह भी नहीं होता। इस उम्र में दोस्ती, यारी और थिएटर देखना आपको शोभा नहीं देता। पोते -पोतियों को खिलाओ और भगवान् के भजन घर पर बैठकर करो। "

कुलभूषण जी खून के घूँट पीकर रह गए थे। उन्होंने तो यही सोचा था कि सेवानिवृत्ति के बाद अपने शौक पूरे करेंगे;उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनके बेटे ऐसी सोच रखेंगे।

कुलभूषण जी के दोस्त अगर घर पर आते तो दोनों बहुएं किसी न किसी बहाने से नाराज़गी जता देती। कई बार कहने पर भी चाय -पानी नहीं भिजवाती थी ;जबकि घर में एक 24 घंटे का घेरलू सहायक भी था। कुलभूषण जी अपने घर में ही एक कैदी के जैसे हो गए थे। अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर पा रहे थे। उनके बेटे ही उन्हें नहीं समझ पा रहे थे।

उनके बेटों ने अब उनसे पेंशन और उनकी बचत के बारे में पूछताछ करना शुरू कर दिया था। कुलभूषण जी के लिए अब सब असहनीय हो रहा था, उन्होंने अपने आप से कहा कि, " उन्होंने बेटों से जुड़ी हुई सारी जिम्मेदारी पूरी कर दी है। वे बेटों पर किसी बात के लिए निर्भर नहीं हैं। उन्हें अपनी आगे की ज़िन्दगी ऐसे नहीं, बल्कि स्वाभिमान से बितानी है। "

उन्होंने अगले दिन अपने दोनों बेटों को बुलाया और कहा कि, "तुम लोग बहुत दिन से परिवार के साथ वकेशंस पर नहीं गए हो। मैंने तुम लोगों से बिना पूछे ही तुम्हारी दुबई की फ्लाइट्स बुक करा दी है और पासपोर्ट्स भी वीजा के लिए दे दिए हैं। 15 दिन का टूर बुक करा दिया है। अगले महीने जाना है।"

कुलभूषण जी की बात सुनते ही दोनों बेटे और बहुएँ खुश हो गए और टूर की तैयारियों में लग गए। परिवार के किसी भी सदस्य ने एक बार भी नहीं कहा कि, "पापा आप 15 दिन अकेले यहाँ क्या करोगे ?आप भी हमारे साथ चलते। "

कुलभूषण जी की आखिरी उम्मीद भी टूट गयी थी। एक महीने बाद बेटे और बहुएं दुबई टूर पर चले गए। 15 दिन बाद जब बेटे बहू लौटे तो घर के दरवाज़े पर एक बड़े ताले और चौकीदार ने उनका स्वागत किया। उन्हें देखते ही चौकीदार ने कहा कि, "आप शायद कुलभूषण जी के बेटे हैं। उन्होंने बोला था कि जब आप लौटो तो आपको यह पत्र दे दूँ।"

चौकीदार ने सुयश और उमेश को उनके पापा का लिखा हुआ पत्र थमा दिया था।

"प्यारे बच्चों ,अब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं है। मेरी उपस्थिति तुम्हें बोझ लगने लगी है। मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी स्वाभिमान से जी है और आगे भी ऐसे ही जीना चाहता हूँ। मुझे ढूंढने या पुलिस के पास जाने की कोशिश मत करना। यह घर मैंने बेच दिया है। लेकिन तुम चिंता मत करना ;तुम दोनों भाइयों को घर नहीं बनवाना पड़ेगा ;मैंने तुम दोनों के लिए २ अलग -अलग फ्लैट्स खरीद दिए हैं और तुम लोगों का सामान भी वहीँ पहुंचा दिया है। तुम्हें चाबियाँ अपने पड़ौसी गुप्ताजी से मिल जाएँगी। अब मैं गृहस्थ से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश कर गया हूँ। तुम्हारे पापा। "

सुयश और उमेश गुप्ताजी के घर पहुँचे। गुप्ताजी ने उन्हें हिकारत भरी नज़रों से देखते हुए कहा कि ," कुलभूषण जी ने तुम दोनों बेटों के लिए दो फ्लैट्स खरीद दिए हैं ;यह लो चाबियाँ। उन्हें ढूंढना मत। वैसे भी वे तुमसे अब कोई वास्ता नहीं रखना चाहते। "

सुयश और उमेश पुलिस के पास भी गए ;लेकिन पुलिस ने कोई भी मदद देने से इंकार कर दिया और कहा कि ,"तुम्हारे पापा खोये नहीं हैं ;तुम्हारी हरकतों की वजह से तुम्हें छोड़कर चले गए हैं। हमारा और अपना समय बर्बाद मत करो। "

उधर कुलभूषण जी ने एक होटल में एक रूम स्थायी तौर पर ले लिया और वहाँ स्वाभिमान से रहने लगे। उन्होंने अपने आपको वृद्धों के लिए कार्य करने वाले NGO से जोड़ लिया। सरकार में काम करने का अनुभव तो था ही। उनके अनुभव से NGO को नए प्रोजेक्ट्स मिलने लगे। उनके प्रयास सरकार के भी नोटिस में आये और उसी का परिणाम था कि उन्हें सम्मानित किया जा रहा था।

उमेश सुयश को फ़ोन करने ही वाला था कि सुयश का फ़ोन आ गया। सुयश ने कहा ," उमेश आज का अख़बार देखा ?"

उमेश ने जवाब दिया ," हां भैया ,मैं भी अभी आपको फ़ोन करने ही वाला था। अब क्या करना है ?"

"करना क्या है ?कल सम्मान समारोह में चलते हैं। देखना अपने परिवार को देखते ही पापा कैसे पिघल जाते हैं ?ऐसे भी अभी तो पापा के पास करोड़ों रूपये तो हैं ही और पेंशन भी आती है।हम उनके बेटे हैं ;तो हमारे सिवा और किसे मिलेगा ?अकेले रहते -रहते पापा को अब परिवार का महत्व भी समझ आ गया होगा . ",सुयश ने कहा।

अगले दिन उमेश और सुयश कुलभूषण जी से मिलने के लिए सम्मान समारोह में पहुंचे .कुलभूषण जी ने उन्हें देखकर भी अनदेखा कर दिया .समारोह के बाद जब कुलभूषण जी निकलने लगे ,तब सुयश और उमेश ने कहा ," पापा अब बहुत हुआ .फ्लैट बेचकर हम अपना घर दोबारा खरीद लेंगे और सब साथ में ही रहेंगे ."


"नहीं ,तुम लोग कौन हो ?किसके पापा ?कैसे पापा ?मैं तो तुम्हे जानता ही नहीं .अभी भी तुम्हे घर और पैसे की परवाह है .मेरा तुमसे कोई वास्ता नहीं है .मेरे मरने पर भी मुझे तुम्हारे कंधे नहीं चाहिए. वृद्ध हूँ ,लेकिन स्वाभिमान अभी भी बाकी है",कुलभूषण जी ऐसा कहकर अपने रास्ते चले गए थे .


.........................................................................................................................



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy