मुझे माँ बनना है...
मुझे माँ बनना है...
ऑफिस में वह मेरे साथ ही काम करती थी। हाय हेलो से हमारी बातें शुरू होकर उसकी उस प्यारी सी मुस्कान के साथ ख़त्म हुआ करती थी....
लेकिन न जाने क्यों वह आज मुझे कुछ उदास सी लग रही थी। उसका वह गर्दन झुकाकर फ़ीकी हँसी के साथ निकल जाना मुझे कुछ जम नहीं रहा था। क्योंकि मुझे मीटिंग में जाना था तो बात मेरे दिमाग से उतर गयी। लेकिन मीटिंग ख़त्म होने के बाद अचानक मुझे उसका ध्यान आया और मैंने झट उसे इंटरकॉम कर बुला भी लिया। वह मुस्कुराते हुए बैठ गयी लेकिन फिर से मुझे उसकी वह हँसी बेहद फीकी सी लगी...
मैंने कहा, "तुम मुझे बता सकती हो शायद मैं कुछ हेल्प कर पाऊँ।" वह कहने लगी, "कोर्ट में मेरी बेटी का केस चल रहा है इसलिए...." मैंने मौके की नज़ाकत को समझते हुए कैंटीन से चाय का ऑर्डर दिया। चाय पीते हुए पूछा, " घर में क्या कोई बात हुयी है? आज न जाने क्यों मुझे तुम्हारी हँसी कुछ फीकी सी लग रही थी।"
मेरे पूछते ही वह कहने लगी, "कस्टडी का केस..."
मेरी सवालिया निगाहों को देखते हुए वह कहने लगी," मेरी सिस्टर की डेथ होने के बाद हमने सिस्टर की बेटी को गोद लिया हुआ था लेकिन अब उसके पति बेटी को ले गए है। हम लोग बेटी की कस्टडी चाहते है।" मैंने कहा, "तुम्हारे पास लीगल पेपर तो होंगे फिर क्या प्रॉब्लम?" वह ना में सिर हिलाने लगी। बेहद मुश्किल से उसने आँसूओं को कण्ट्रोल किया हुआ था.... मैंने कहा, "क्योंकि आपके पास अडॉप्शन के क़ागज़ात नहीं है तो लीगल राइट लड़की के पापा का नही होगा ?" वह हाँ में सिर हिलाने लगी....
मेरे सामने अब वह मेरी कलीग नहीं थी बल्कि अब मुझे वह एक माँ नज़र आ रही थी...ममता से भरपूर माँ .....
उसकी ममता और कशमकश को देखते हुए मुझे लगा मैं इसे कैसे कह दूँ की बिना लीगल क़ागज़ात से वह एक हारी हुयी लड़ाई को जीतने की नाक़ाम कोशिश कर रही है....
माँ की ममता कोई कोर्ट कचहरी में प्रूव करनेवाली चीज़ है क्या?