Piyush Goel

Classics

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मरुद्गणों की उत्पत्ति

मरुद्गणों की उत्पत्ति

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देवासुर संग्राम में अपने पुत्रों का बार - बार देवों द्वारा अपने पुत्रों ( दैत्यो ) का वध होते देख दैत्य माता दिती अति दुखी हुई । वह पुष्कर के तट पर आई और ऋषियों के जैसे तपस्य करने लगी । उसे तपस्या करते - करते लगभग १०० से भी अधिक वर्ष बीत गए फिर उसने वशिष्ठ आदि ऋषियों से कहा

दिती बोली - "मुनिवरों ! मैंने अनेको प्रकार के व्रत करे है परन्तु मेरा मनवांछित फल मुझे अब तक नही मिला , कृपा कर आप मुझे बताए कि आखिर ऐसा कोनसा व्रत है जिससे मैं मनवांछित फल प्राप्त कर सकूं ?"

वशिष्ठ बोले -" देवी ! ऐसा तो मात्र ज्येष्ठ की पूर्णिमा का व्रत बताया गया है , एक वह ही व्रत आपकी समस्त आशाओं को पूर्ण कर सकता है ।"

दिती बोली -" ऋषिवर ! आपने मेरी मनोकामना पूर्ण करी , इसके लिए मैं आपकी आभारी रहूंगी , कृपा कर अब आप मुझे व्रत करने की अनुमति दें।"

वशिष्ठ बोले -" सौभाग्यवती भव: पुत्री ।"

अब दिती ने वह व्रत पूर्ण अनुष्ठान के साथ सम्पन्न करा । उस व्रत से प्रसन्न होकर ऋषि कश्यप दिती के पास आए और बोलेकश्यप बोले - "हे दिती ! तुम अपना मनवांछित फल माँगो , मैं वह तुम्हे अवश्य दूंगा ।"

दिती बोली - "महाऋषि ! मैं एक ऐसे पुत्र की कामना करती हूं जो समस्त देवो का संघार करने में सक्षम हो , कृपा कर आप मुझे वैसे ही पुत्र का आशीर्वाद दे ।"

कश्यप बोले - ठीक है दिती ! जैसी तुम्हारी इच्छा , तुम्हारे गर्भ में मैंने एक शिशु को स्थापित करा है । अब तुम्हे इस शिशु का पूर्ण त: खयाल रखना होगा । अब मैं तुम्हे इस व्रत के नियम बताता हूं , अगर तुमने एक भी नियम का उल्लंघन करा , तो तुम्हारी सन्तान देवताओ की परम मित्र होगी ।"

दिती बोली - "आप मुझे नियम बताएं।"

कश्यप बोले - "सुनो दिती !

१ ) सन्ध्या के समय भोजन न करना ।

२) वृक्ष की जड़ के पास जाना भी मत ।

३) जल के भीतर भी जाना मना है ।

४) सूने घर मे प्रवेश मत करना ।

५) अंगड़ाई कभी न ले ।

६ ) बाल खोलकर कभी खड़ी न हो ।

७) सदैव पैर धोकर सोए ।

८) किसी से द्वेष न रखे ।

९) गुरुजनों के साथ आदरपूर्वक बात करे ।

यह सब नियम सुनकर दिती ने इन नियमो के अनुरूप कार्य करना आरंभ करा । देवो को अति चिंता हो गई क्योकि दिती की संतान देवो का वध करने वाली थी।तब देवराज इंद्र दिती के पास आए और दिती की सेवा करने लगे ।उनकी मंशा यह थी कि वह दिती के गर्भ में जाकर पल रहे शिशु का वध करदे ।

एक दिन दिती सन्ध्या के समय अपने पैर धोना भूल गई और सो गई तब इंद्र ने दिती के गर्भ में प्रवेश करा ओर उस शिशु पर अपने वज्र से प्रहार करा तब एक शीशों सात खण्डों में विभाजित हुआ , वह सब शिशु रोने लगे तब देवराज ने पुनः उन सभी पर वार किया और वह ७ अब ४९ में बदल गए और इक्कठे रोने लगे । तब उन्हें चुप करवाने के लिए इंद्र ने मरुद् शब्द का प्रयोग करा और उन सब को मरुद्गणों का नाम दिया । दिती का व्रत खण्डित हो जाने के कारण दिती के सन्तान देवताओं की मित्र हुई । यही कारण है कि दिती के गर्भ से ४९ मरुद्गणों ने जन्म लिया । 


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