मोक्ष-कहानी
मोक्ष-कहानी
वह तेजी से अपने घर की ओर भाग रहा था। पता नहीं बाबा की तबीयत कैसी होगी। आज सुबह से तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब थी ,उसने अपने सेठ से भी जल्दी जाने के लिए कहा था परन्तु सेठ ने गाली देते हुए कहा था- तुम सालों को कुछ ना कुछ काम लगा रहता है।
मन मन ही कोसता हुआ चुप हो गया था...।जानता था बड़ी मन्नतों के बाद उसे काम मिला था.. उसने एक बार फिर आशा भरी दृष्टि से आकाश की ओर देखा हे भगवान मेरे बाबा का ख्याल रखना - -
अचानक छपाक की आवाज आई वह एक पानी भरे गड्ढे गिर गया था, जल्दी से कपड़े पर से पानी झाड़ कर घर की ओर चल दिया। उसे याद आ रहा था बचपन में जब है पानी के गड्ढों में यूं ही छपाक छपाक खेलता था, सारे कपड़े गंदे हो जाते थे मां और बाबा कितना डांटते थे--तेरा बाप कही का कलेक्टर है जो रोज कपड़े गंदे कर लाता है।
वह दारू एक दिन मर्द से ऐसी नामर्द बना गई कि छै माह से खटिया से ही अपना नाता जोड़ बैठे। मां पहले भी घर-घर जाकर काम करती थी, अब उसकी जिम्मेदारी और बढ़ गई थी, घर खर्च के साथ बाबा की दवाई के लिए भी पैसे चाहिए थे। वह भी धीरे-धीरे काम करने लगा था... चारों तरफ झींगरों की आवाज़ आ रही थी। शहर से करीब करीब पांच किलोमीटर दूर उसका गांव था। गांव की रोशनी दिखने लगी थी, धीरे-धीरे भारी कदमों से वह अपने घर के अंदर घुसा ..मां चुपचाप बाबा के सिरहाने बैठी हुई थी -
-- मां बाबा कैसे हैं? अंदर आते ही उसने पूछा ?
--बेटा बाबा ठीक नहीं है, आज वैद्य जी ने दवाई की पुड़िया दी थी और कहा था अब भगवान ही मालिक हैं।
…मां का गला भर आया था, आंख के आंसू सूख चुके थे। कुछ देर चुप रह कर एक लम्बी सांस लेते हुए मां ने कहा -
- बेटा पंडित जी के यहां से गंगाजल ले आ - -
वह दौड़ता हुआ गांव के मंदिर में गया। पंडित जी वहीं रहते थे, पंडित जी सोने जा रहे थे उसका दरवाजा खटखटाया और पंडित जी से गंगाजल देने के लिए कहा। पंडित जी ने एक लम्बी सांस लेते हुए एक छोटी शीशी में गंगा जल् दिया और उसने पंडित जी को ग्यारह रूपये दे दिए, वह पहले भी मुहल्ले के अन्य लोगों के लिए गंगाजल ले जा चुका था। उसकी समझ आज तक नहीं आ रहा था ,तीन माह पहले पडित जी गंगा नहाने गए थे तो वही पंडित जी को छोड़ने गया था और लाने गया था। आते समय पंडित जी के पास एक ही पीपा में गंगाजल था आज तीन माह पश्चात तीन पीपे खाली हो गये थे और एक में अभी भी गंगाजल था। भगवान जाने क्या हिसाब है? वह घर पहुंचा, मां ने जल्दी से बाबा के मुंह में गंगाजल डाल दिया। बाबा की सांस रुक रुक कर चल रही थी धीरे-धीरे खांसी आ रही थी ..।
वह भी चुपचाप मां के पास जमीन पर बैठ गया। दर्द दर्द को पकड़े था। मां बेटे को देख रही थी ...बेटा मां को देख रहा था, अचानक मां का हाथ थरथराया बेटे ने अपने दोनों हाथों से उसके हाथ को थाम लिया दोनों की आंखें बिना कहे बहुत कुछ कह रही थी....
वह चुपचाप मां की गोदी में सिर रखकर लेट गया। आज की रात सचमुच बहुत भारी थी। दिन भर का थका भूखे पेट पता नहीं कब नींद आ गई। अचानक मां की चीख से उसकी नींद खुली -
-- बेटा बेटा तेरे बाबा-
-मां की आवाज नहीं निकल रही थी...। समझ गया था बाबा अब नहीं रहे। नम आंखों से उसने देखा सुबह का सूरज निकल रहा था। उठकर बाहर आया और उसने आस पास सभी को बाबा के न रहने की सूचना दी.. सारे लोग अपने अपने हिस्से का दर्द बांटने आ गए।
वह पंडित जी को बुलाने चला गया। पंडित जी ने आने के बाद पूरा हिसाब लगाया और बाबा को मोक्ष के लिए, क्रिया कर्म के लिए तीन हजार रूपये कम से कम खर्च करने की बात की। वह एकटक देख रहा था जिस के पास खाने के लिए पैसे नहीं थे वह इतने रूपये कहाँ से लाएगा। क्या उसके बाबा को मोक्ष नहीं मिलेगा और उनकी आत्मा भटकती रहेगी..?
वह जानता था कि सेठ बहुत खाड़ूस था। शायद रहम कर जाए। उसने सेठ से अपना हाल बता कर रूपये उधार मांगे लेकिन सेठ ने स्पष्ट मना कर दिया। समझ में नहीं आ रहा था और वह क्या करे.? -चुपचाप वापस लौट रहा था।
वह निराश, थका हारा घर की ओर चल दिया।
मां बेटे को देख रही थी.. बेटा मां को देख रहा था ..पर उत्तर किसी के पास नहीं था। कल सुबह तक किसी भी हालत में बाबा का क्रिया कर्म करना ही था। बाबा की मृत शरीर से कुछ बदबू आने लगी थी।
--- मां 15 मील दूर जो नदिया बहती है। वह सच बहुत बड़ी नदी है और गंगा में मिलती है। यह सच है क्या ?
मां ने बेटे को देखा आश्चर्य से देखा कि वह क्या कहना चाहता है? बेटे ने मां की और देखा ..
अचानक मां दरवाजे के बाहर निकली और सब्जी वाले ठेले को ठीक करने लगी दोनों बिना कहे एक दूसरे की बात समझ गए थे, थोड़ी देर में मां बेटे से एक कपड़ा ठेले पर बिछा कर दिया और दोनों ने बाबा को उठाकर हाथ ठेले पर लिटा दिया ।
भगवान से प्रार्थना की कुछ समय के लिए पानी रोक देना ताकि मैं हम लोग बाबा का देह विर्सजन कर सकें। रात्रि बढ़ रही थी मां और बेटा दोनों हाथठेले पर बाबा का शव रखे तेजी से 15 मील दूर बहती हुई नदी की ओर भाग रहे थे, खाली पेट चेहरों पर थकान नहीं थी, वह तो बाबा के शरीर को इस संसार से मुक्ति दिलाना चाहते थे, वह जानते थे कि यदि सुबह का सूरज निकल आया तो उनके लिए मुसीबत खड़ी हो जायेगी। धीमे धीमे पानी गिरने लगा था....उन्हें अपनी नहीं बस चिंता थी तो बाबा के मोक्ष की.....