Rajeev Rawat

Children Stories Fantasy

4  

Rajeev Rawat

Children Stories Fantasy

जीत

जीत

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बहुत पुरानी बात है। एक राक्षस था, लंबा-चौड़ा शरीर, बलिष्ठ बदन देखने में डरावना लगता था, उसने भगवान की आराधना बहुत सालों तक बिना कुछ खाये पिये की, भगवान उसकी पूजा - आराधना से खुश हो गये और प्रकट होकर बोले -

"हे राक्षस हम तुम्हारी आराधना से प्रसन्न हुए, मांगो कोई वर मांगो।  

"उस राक्षस ने एक मिनट सोचा कि उस जैसी शक्ति किसी के पास नहीं है लेकिन वह फिर भी मरने से डरता है, इसलिए उसने वरदान मांगा कि -


"मैं किसी के द्वारा न मरूं , यह वर दीजिए


     भगवान इस विचित्र वरदान से आश्चर्य थे कि भला ऐसे कैसे हो सकता है, संसार में मृत्यु तो हर जीव की होनी है फिर भगवान ने एक पल सोच कर उसे वर दिया कि"


"ठीक है वत्स तुमको संसार में सिवा तुम्हारे कोई नहीं मार पायेगा।


       भगवान अन्तर्ध्यान हो गये। राक्षस अब घमंड में भर गया और गांवो में घुस कर लोगों को पकड़ लाता और पूंछता कि - 


"-मै सुंदर हूं या नहीं? 


बिचारे जो गलती से सच बोल जाते तो उन्हें जलती आग के अलाव में फेंक देता और जो उसे सुंदर कहते, उन्हें कैद में डाल देता।


      चारों ओर आंतक फैल गया था। राजा के पास खबर भेजी गयी, राजा ने सेनापति के नेतृत्व में अपनी सेना भेजी लेकिन राक्षस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर कैद में डाल दिया और राक्षस सैनिकों को भी भून कर खाने लगा। चारों ओर हाहाकार मच गया।


        गांव के गांव डर से खाली होने लगे। राजा ने डुग्गी पिटवा दी कि जो राक्षस से छुटकारा दिलवायेगा, उसे आधा राज्य ईनाम में दिया जायेगा। बहुत से बहादुर लोग उससे लड़ने गये लेकिन उसे मिले वरदान के कारण कोई राक्षस को मार नहीं पा रहा था। 


        उसी गांव में गरीब ब्राह्मण रामसुख रहते थे, अब इस विकट परिस्थिति में लोगों ने पूजा करवाना बंद करवा दी, जिस कारण उनका परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गया। अंत में पंडित रामसुख ने कहा कि भूखों मरने से अच्छा है कि राक्षस लड़कर मरें यदि हम राक्षस को मार पाये तो ईनाम मिल जायेगा नहीं तो हम मर जायेंगे। अब भूखा नहीं रहा जाता। 


रामसुख के एक बेटा था, उसका नाम श्याम सुख था। वह दस साल का था, लेकिन बुद्धि में बहुत तेज था, वह बचपन से शास्त्रों को पढने में रूची रखता था। उसने अपने पिता से कहा कि - - 

"एकबार राजा से मिलना चाहता हूं, इसके बाद आप जो कहेंगें, मैं वह करूंगा। 


वह दोनों राज दरबार में गये। 


राजा के मंत्री ने आने कारण पूंछा! तब श्याम सुख बोला"


"सरकार, मैं एक आखिरी दांव राक्षस को मारने के लिए चलना चाहता हूं लेकिन आप की सहायता के बिना कुछ नहीं हो पायेगा।


सब उसे अजीब सी नजरों से देख रहे थे। उसने राजा को अपना तरीका बताया। राजा ने मंत्री से चर्चा की और कहा कल तक सारा इंतजाम हो जाना चाहिए। 


दूसरे दिन सारा इंतजाम हो गया। एक सुंदर सी बग्गी में बैठ कर श्याम सुख कुछ मिठाईयां तथा फल रखकर राक्षस के पास चल दिया। 


राक्षस ने सजी धजी बग्गी को आते देखा तो आश्चर्यचकित हो गया तथा लड़ने के लिए तैयार हो गया, बग्गी से श्यामसुख निकला और राक्षस को प्रणाम करके बोला-


- - राक्षस चाचा मुझे राजा जी ने एक संदेश देकर भेजा है कि अब हम अपने राज्य को किसी बहादुर को सौपंना चाहते हैं और हम सब जानते हैं कि दुनिया में आपसे शक्तिशाली कोई नहीं है और आपको कोई मार भी नहीं सकता। 


राक्षस अपनी तारीफ सुनकर फूल गया और बोला-


"कहीं तुम लोगों की कोई चाल तो नहीं है? 


श्यामसुख ने तुरंत अपने साथ लाये फलों और मिठाई की टोकरी सामने रखवा दी और बोला - - 


"चाचा, जब आप राजा बन जाओगे तो जितना भोजन चाहिए, सामने हाजिर होगा और रोज रोज की परेशानी खत्म हो जायेगी। 


इतनी आवभगत देखकर वह खुश हो गया। तभी श्याम सुख ने कहा "चाचा, बस आपको राजा बनाने में एक परेशानी हो रही है।" 


राक्षस फल खाते खाते रूक गया और प्रश्नसूचक निगाहों से देखने लगा.


"चाचा, राज्य की बात सुनकर कुछ और राक्षस वहां आ गये हैं लेकिन आप को क्या चिंता आप को कौन मार सकता है बल्कि आप उन्हें शीघ्र मार डालोगे।" 

 

राक्षस बग्गी पर सवार होकर राजदरबार की ओर चल दिया, रास्ते में राजा के आदेश से उसका स्वागत होता रहा।राजा के महल में राजा ने उसका स्वागत किया। तभी श्यामसुख ने राक्षस से कहा - - 


"चाचा, हमने इस कमरे में और राक्षसों को बंद कर दिया है, आप उन्हें शीघ्र मार डालें तब तक हम राजगद्दी को तैयार कर रखते हैं।"


राक्षस तुरंत बताये हुए कमरे में चला गया। कमरे का दरवाजा बंद कर दिया गया, उसने देखा कमरे चारों और उस जैसे बहुत से राक्षस भरे हुए हैं। वह सामने वाले पर झपट पड़ा, उसके शरीर में दुश्मन राक्षसों ने भालों से घाव कर दिये। वह सोच रहा था कि वह अकेला हैऔर चारों ओर से राक्षसों से घिर गया है, वह उतनी तेजी से झपटता और अधिक घायल हो जाता लेकिन उसे खुशी थी कि उसकी मार से सारे और राक्षस भी बुरी तरह घायल हो गये थे, अंत वह थक कर नीच गिर गया तो देखा सभी राक्षस भी गिर गये थे! वह बोला "गधो मुझसे लड़ोगे तो सब मरोगे क्योंकि मुझे कोई नहीं मार सकता सिवा मेरे।"

वह घायल होकर भी जोर जोर से हंसने लगा। अचानक एक खिड़की खुली और श्यासुख नजर आया बोला "चाचा, अभी अभी हमारे दूत ने एक खबर दी है कि यह सभी राक्षस नकलची हैं और जैसा आप करेगें वह भी ऐसा ही करेंगे, आप के लिए यह सोने की जादुई तलवार है, इससे आप अपनी गर्दन पर थोड़ा सी चोट लगायेगें तो बाकी राक्षस भी अपनी गर्दन काट लेगे। आप जल्दी कीजिए बाहर आपके राजा बनने की तैयारियां पूरी हो गयीं हैं।"


खिड़की बंद हो गयी। राक्षस ने जोश में आकर तलवार से अपनी थोड़ी गर्दन काटी तो देखा सामने वाले सभी राक्षसों ने भी उसकी नकल की। राक्षस खुश होगया और मन ही बोला "सारे के सारे बेवकूफ़ हैं।" उसने थोड़ा और जोश में आकर थोड़ी सी गर्दन और कटी अब उस पर बेहोशी छाने लगी, देखा सारे राक्षस भी उसके गिरते ही गिरने लगे। कुछ समय बाद वह मर गया। 


    चारों ओर नगाड़े बजने लगे। श्याम सुख की जय के नारे लगने लगे। उसने अपनी बुद्धि से भयानक राक्षस को मार डाला था। श्याम सुख के कहे अनुसार राजा ने सारे कमरे में मजबूत आईने लगवा दिये थे और उनके चारों ओर छेद करके सैनिकों को दूसरे कमरे में भाले लेकर बैठा दिया था और राक्षस आईने में प्रतिबिंब देखकर बहुत सारे राक्षस समझ रहा था,वह जब आईने में दिखतेअपने ही प्रतिबिंब से लड़ने के लिए झपटता, दूसरे कमरे मे छिपे सैनिक छेद से भाले आगे कर देते, जब वह बुरी तरह घायल हो जाता और अंत में तो जहर बुझी तलवार से उसके हाथों ही उसका वध करवा दिया। भगवान का वचन भी पूरा हो गया कि उसे दूसरा कोई नहीं मार सकता। 


 वायदे के मुताबिक वह आधे राज्य का राजा बना दिया गया। इस कहानी से प्रेरणा मिलती है कि परेशानी में घबराना नहीं चाहिए बल्कि बुद्धि से उसे मात दे सकते हैं और अंत में जीत बुद्धिमान की होती है। 


               

                   


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