होली-मेरे शब्दों में
होली-मेरे शब्दों में
आओ सजनिया मिलकर खेलें,रंगों की ऐसी होली रे
न भींगें तेरी कोरी चुनरिया,न भींगे तेरी चोली रे
दिल की स्याही से हमने, पैगाम लिखा है होली में
आ दुनिया को भूल कर हम,एक हो जायें होली में
मेरा दिल तो श्याम बना है, तू लागे राधे होली में
दिल कहता है गाल गुलाबी , रंग दू तेरे होली में
तोड़ के बंधन एक हो जायें,हम दोनों इस होली में
जन्म जन्म ये रंग न छूटे,ऐसा रंग दे मोय होली में
मन की बातें कह दीं मैंने,समझ न तू तो ठिठोली रे
न भींगें तेरी कोरी चुनरिया, न भींगे तेरी चोली रे
सबसे से अनोखा रंग प्रेम का,जो इसमें रंग जाता है
जन्म जन्म तक कहां भला,विलग कोई कर पाता है
श्याम रंग में डूब कर राधा, प्यार में हुई दीवानी सी
मीरा रंगी जो श्याम रंग में,पी गई विष का प्याला भी
मन का कलुषित रंग हटा कर,बोलें प्रीति बोली रे
न भींगें तेरी कोरी चुनरिया, न भींगे तेरी चोली रे
सुखदेव,राजगुरु,भगतसिहं ने, जब रंगा बसंती चोला था
बच्चा बच्चा भारत मां का जय हिंद तब बोला था
तुम अपना तो लाल लहु दो, गूंजी सुभाष की बोली थी
चंन्दशेखर ने देश की खातिर खेली खून की होली थी
अपने लहु में रंग दी थी, भारत मां की झोली रे
न भींगें तेरी कोरी चुनरिया, न भींगे तेरी चोली रे
जब बंसत के रंग में रंग कर, धरती भी मुस्काती है
फिर टेसू की ओढ़ कर चूनरिया दुल्हन सी बन जाती है
जाति,धर्म के तोड़ कर बंधनआज गले लग जायें हम
एक देश हो, एक वेश हो, एक ही रंग रंग जायें हम
तू तू मै मै छोड़ यहीं पर, आज बनें हमजोली रे
न भींगें तेरी कोरी चुनरिया, न भींगे तेरी चोली रे
आओ सजनियां मिलकर खेलें, रंगोx की ऐसी होली रे
न भींगें तेरी कोरी चुनरिया, न भींगे तेरी चोली रे।