मां! एक रूप अनेक--एक कथा
मां! एक रूप अनेक--एक कथा
आज फिर आफिस से निकलते निकलते देर हो गयी थी। रामदीन उनका ड्राइवर इंतजार कर रहा था। वह कार की पिछली सीट पर बैठ गये। करीब पन्द्रह किलोमीटर दूर उनका बंगला सरकारी काॅलोनी में था। जैसी की उनकी आदत थी, कार में बैठते ही गर्दन पीछे टिका कर आंख बंद करके आराम करने लगते और सीधे बंगले पर ही आंख खोलते। कई बार तो नींद भी लग जाती, तब ड्राइवर रामदीन ही उठाता।
अचानक रामदीन ने कार का ब्रेक लगाया तो उन्होंने ने आंख खोल कर देखा, कार के सामने खड़ी भिखारिन जोर जोर सेचिल्ला रही थी--
-गाड़ी रोको, बच्चे को अस्पताल पहुंचा दो, वह मर जायेगा।
वह आने जाने वाली कार को रोक रही थी लेकिन कोई भी नहीं रुक रहा था। चौराहे पर कोई पड़ा हुआ था। कुछ पैदल चलने वाले अवश्य तमाशा देख रहे थे और कुछ मोबाइल से फोटो भी खींच रहे थे। वह भिखारिन हाथ जोड़ कर सभी गाड़ियों को सहायता के लिये आवाज लगा रही थी। ड्राइवर रामदीन भी साइड से कार निकाल कर ले गया और बोला-
--देखा साहब! ये भिखारी भीख मांगने के लिये रोज नया नया ड्रामा करते हैं। कभी किसी बच्चे को बीमार कर देते है, कभी भूखा और कभी अपंग, साले सब चोट्टे हैं। यह वही भिखारिन है जो पन्द्रह दिन पहले अपने लड़के को बीमार बता रही थी और आज बच्चे को मरने से बचाने का नाटक कर रही है!
शायद रामदीन सच ही कह रहा था, यह ऐसे लोगों की भावनाओं से खेलकूद अपनी रोजी रोटी चलाते हैं। उन्होंने पीछे की सीट परअपनी गर्दन टिका दी और उन्हें याद आया कि पन्द्रह दिन पहले ही की तो बात है। उस दिन कुछ आफिस में अधिक काम था। आवश्यक जानकारी सरकार को भेजनी थी। सारे जिलों की जानकारी आते आते और समायोजन के पश्चात अतिंम रिपोर्ट बनाते बनाते रात के नौ बज गये थे। शरीर में थकान हो रही थी! आफिस से बाहर आने पर ड्राइवर ने गेट खोला तो वह पीछे की सीट पर बैठ गये और आंख बंद कर सीट से टिक गये।
उन्होंने घर पर फोन किया कि वह आफिस से निकल गये हैं। उस दिन मनु, उनके एकलौते बेटे का जो हायर सेकंडरी कर रहा था, का जन्म दिन भी था। घर पर केक काटने के लिये उनका इंतजार हो रहा था। वह आंखे बंद किये लेटे थे कि अचानक जोर से ब्रेक लगा और वह आगे की सीट पर टकराते टकराते बचे।
--क्या हुआ रामदीन, इतना तेज ब्रेक?
-साहब, गाड़ी के सामने एक भिखारिन आ गयी है।
उन्होंने देखा कि एक भिखारिन जो अपनी गोदी में एक छोटे बच्चे को लिए हुए थी, ठीक कार के सामने आ गयी थी, अगर सही समय पररामदीन ने ब्रेक न लगाये होते तो आज अनहोनी हो जाती।
रामदीन उस भिखारिन को जोर जोर से डाटने लगा--
--क्यों, बुढ़िया मरने के लिए मेरी गाड़ी ही मिली।बीच रोड पर खड़ी तमाशा कर रही है,परे हट--
वह भिखारिन मेरी खिड़की के पास आ गयी और गिड़गिड़ा कर बोली--
---साब! मेरा बच्चा, बुखार से तप रहा है, तीन दिनों से उसने पानी तक नहीं पिया। दवा खरीदने के लिये पैसे नहीं है, कुछ दया कर दीजिए।
उसका मन पसीज गया और वह कुछ बोलता तब तक रामदीन ने उसे फिर से डांटा--
-जाकर सरकारी अस्पताल में क्यों नहीं दिखाती?
-गयी थी साब, लेकिन कोई बिना पैसे के दवाई नहीं देता।
वह जोर जोर से रो रही थी, उसने अपने पर्स से कुछ देना चाहा लेकिन रामदीन ने कार झटके से आगे बढ़ा दी, वह भिखारिन गिरते गिरते बची।
उसने रामदीन की ओर देखा तो वह बोला-
सर! यह सब भिखारियों धंधा है, ये शाम और सुबह ऐसे ही चौराहों पर भीख मांगते हैं।
--लेकिन रामदीन यदि सचमुच वह सच कह रही हो तो और उसका बेटा सच में बहुत बीमार हो तो?
--अरे कहां साहब, ये भिखारी पूरे ट्रेडं रहते है और यह बच्चा भी इस भिखारिन का नहीं होगा सहब, इनका पूरा ग्रूप रहता है।
उसने अपनी गर्दन फिर से पीछे टिका लीं और आंखे बंद कर ली लेकिन उस भिखारिन का चैहरा नजर के समने आ रहा थाबंगले परसभी इंतजार करते मिले और शोर हंगामे में वह भूल गया। और आज भी नये नाटक के साथ सामने आ गयी थी। शायद रामदीन सही कह रहा था कि पैसे मागने के लिये नाटक करते रहते हैं।
बगले पर पहुंचते पहुचते नौ बज गये थे, कपड़े बदल कर और फ्रेश होकर डायनिंग टेबल पर आ कर बैठ गये और उनकी
पत्नी भी वहीं बैठी थी, मनु का इंतजार कर रहीं थीं। वह रोज शाम को कोचिंग के लिये जाता है और आठ बजे वापस आ जाता हेलेकिन आज नौ बज गये।
उन्होंने अपनी पत्नी से पूंछा--
-मनु कुछ बोल कर गया था क्या?
--नहीं ऐसा तो कुछ नहीं कह गया बल्कि कह रहा था कि आज जल्दी आ जायेगा तो नौ से बारह का शो देखने दोस्तों के साथ जायेगा।
साढ़े नौ बज गये थे। उन्होंने मनु के दोस्तों को फोन लगाया तो उन्होंने यही बताया कि हम लोग ही पिक्चर हाल में उसका
इंतजार कररहे थे लेकिन वह नहीं आया।
उन्होंने कई बार उसका फोन भी ट्राई किया, घंटी जा रही थी
लेकिन कोई उठा नहीं रहा था। आंशका से मन घबड़ाने लगा। वह कार लेकर कोचिंग इंस्टीट्यूट का चक्कर लगा आये, वहां पता चला कि आज वह आठ बजे चला गया था।
एक बार पुनः फोन को ट्राई किया तो किसी ने फोन उठा लिया।
-हेलो
-हेलो
--आप कौन बोल रहीं हैं, यह फोन तो मेरे बेटे का है
--आपके बेटे का?
-हां--
-मैं एल एल हास्पिटल से हेड नर्स सूजन बोल रहीं हूं, एक घायल लड़के के बैग में से यह मोबाइल बज रहा था।
--उसे क्या हुआ? उन्होंने ने घबराते हुए पूंछा
--उस लड़के का एक्सीडेंट हो गया था। आप शीघ्र हास्पिटल आ जायें।
वह तेजी से कार चलाते हुऐ एल एल हासपिटल पहुंचे, रिसेप्शन पर दौडते हुए पंहुचे और उन्होंने सिसटर सूजन के बारे में पूछा तो पता चला कि इमर्जेंसी में है, किसीबच्चे का एक्सीडेंट हो गया था, उसका आप्रेशन होना है।
जल्दी जल्दी वह आप्रेशन थियेटर की और दौड़े, वहां सिस्टर सूजन मिल गयी। वह बैग और मोबाइल पहचान गये। वह उनके बेटे मनु का ही था। तुरंत खानापूर्ति के बाद
आपरेशन शुरू हो गया था, हेड इंजरी थी और हाथपैर में
फ्रेक्चर थे।
वह रिसेप्शनहाॅल में घबराये हुए टहल रहे थे, तभी उनकी निगाह कोने में खड़ी एक औरत पर पड़ी - - अरे यह तो वही भिखारिन थी जो भीख मांगते हुए उनकी
कार के आगे खड़ी थी, एक कोने में खड़ी भगवान से कुछ प्रार्थना कर रही थी। उन्होंने एक सिस्टरसे पूंछा कि-
-- उस औरत का बेटा भी भर्ती है क्या?
सिस्टर ने उनकी ओर देखा और बोली--
-नहीं यही औरत तो एक एक्सीडेंट हुए लड़के को हाथ ठेले पर रख कर तीन किलोमीटर पैदल भागती आयी थी और कांउटर पर अपने साड़ी के पल्लू से गांठ खोलकर सारे रुपये पैसे
फैला कर रो रही थी कि बच्चे को बचा लीजिए, जब हमने पूंछा कि -
--यह तुम्हारा दूसरा बेटा है तो जानते हैं वह कह रही थी - -
-यह बेटा है, मेरा नहीं लेकिन किसी मां का तो है।
और साहब यदि वह थोड़ा देर कर देती तो शायद बचचे को बचाना मुश्किल हो जाता,अभी अभी अपने सूखे शरीर से एकयूनिट ब्लड देकर आयी है।
-दूसरा बेटा? उसने आश्चर्य से पूंछा
-हां, सर पन्द्रह दिन पहले यह अपने बीमार लड़के को लेकर आयी थी लेकिन उस दिन तो उसके पास एक भी पैसा नहीं था और वह बहुत दिनों से बीमार था, उसे बचाया नहीं जा सका था।
उसने उस औरत को देखा जो अब भी सके बेटे की सलामती की दुआ मांग रही थी, उनके आंखो के सामने अधेरा सा छा
गया, सहारा लेकर वह वहां पड़ी कुर्सी पर बैठ गये। जब उस औरत बेटा बीमार था और वह बिना सहायता के उसे झूंठा समझ कर चला गया था।काश! उन्होंने कुछ मानवता दिखाकर उस दिन उसे कुछ दे दिया होता तो---अगर इस भिखारिन ने भी यदि उसके बेटे को न बचाया होता तो?
उनकी आंखो से आंसू टपकने लगे,वह औरत जिसने दिन रात भीख मांगे अपने सारे पैसे कांउटर पर किसी दूसरे के बच्चे के लिए फैला दिये थे और खुद हथठेला पर तीन किलोमीटर
लेकर आयी- आज समझ नहीं पा रहे थे कि कौन दानदाता है और कौन भिखारी--
आज रात वह बच्चे को बचाने के लिए सभी से रो रो कर सहायता मांग रही थी लेकिन वह एक पल की मनवता छोड़ कर निकल गये थेज बकि घायल उनका ही बेटा था-उन्होंने ने एक पल भी नहीं सोचा था कि यदि उनका नहीं तो किसी का बेटा तो वह होगा। वह अपनी नजरों से खुद को गिरा हुआ देख रहे थे।
उन्होंने भींगी नजरों से उस औरत को देखा तो उसके चारों ओर एक चमकता हुआ औरा सा दिख
रहा था, उस समय वह भिखारिन नहीं सिर्फ औरत नहीं - एक माॅं थी सिर्फ माॅं और शायद एक माॅं ही ऐसा कर सकती है।
